वर्तमान समय में विशेषकर नोटबंदी के बाद देश के टैक्स चोरी करने वालों का शोर हमें बहुत सुनाई दे रहा है। हमारे माननीय प्रधानमंत्रीजी ने अपने अनेकों भाषणों में जोर-शोर से कहा है कि देश के टैक्स की चोरी करने वालों को बक्शा नहीं जाएगा। उनको कड़ी से कड़ी सजा देने का प्रावधान सरकार कर रही है। वे देशद्रोही की दृष्टि से देखे जा रहे हैं। वे देश के विकास को अवरूद्ध कर रहे हैं, जो कि कदापि सही नहीं हो सकते है।
वहीं दूसरी ओर विदेशी कालेधन को लेकर भी पूर्व की सरकार के समय वर्तमान सरकार की पार्टी ने काफी हंगामा किया था। एक मंत्रीपद से नवाजे गए स्वदेशी बाबा ने तो पूरी लिस्ट ही जारी कर दी थी। उनका संपूर्ण आंदोलन विदेशों में जमा कर रहे कालेधन वालों के खिलाफ था। वहीं पार्टी जब विदेशी कालेधन के खिलाफ खड़ी होकर सत्ता में आई तो उन्होंने भी शुरू में बड़ी घोषणा करने की बात की, फिर कहा जाने लगा कि यदि उन्होंने विपक्ष की मांग पर लिस्ट जारी कर दी तो बवंडर मच जाएगा, कहकर बात को वहीं समाप्त कर दिया और वह देश वासियों के सामने नही आ पाई। आज चर्चा का विषय नहीं रही। ना विपक्ष उस पर बोल रहा है और ना ही सरकार। बस एक ही शोर सुनाई दे रहा है ‘देश के टैक्सचोर’ को नहीं छोड़ा जाएगा।
कौन हैं देश के टैक्स चोर
चोरी कोई सी भी हो गलत होती ही है, फिर चाहे टैक्स की ही क्यों न हो। वे सभी देश के विकास को अवरूद्ध कर देने वाले देशद्रोही कहलाते हैं। ऐसा नहीं है कि टैक्स चोरी अभी की बात है। यह तो लंबे समय से या यूं कहे कि जबसे टैक्स की बात शुरू हुई तभी से होती आई है किंतु वर्तमान दौर में इसका शोर बहुत बड़ा हो गया है। ‘लगान’,‘टैक्स’ शब्द में ही कुछ ऐसी बात है कि ये देशवासी अपने देश के विकास को अवरूद्ध कर, अपनी आय को कम बताकर, आंकड़ों से कलाबाजी कर ‘टैक्स’ की चोरी करते हैं जबकि वे इसी देश के वासी हैं, देश की उन्नति के नायक हैं, उन्हें तो और आगे बढ़कर अधिक से अधिक टैक्स देना चाहिए जो कि डायरेक्ट-इनडायरेक्ट उन्हीं को फायदा पहुंचाते है। फिर भी वे इस रकम को सरकार को नहीं बताते हैं। वहीं दूसरी ओर ये ही लोग सामाजिक धार्मिक स्थानों पर दिल खोलकर, लाखों-करोड़ों रूपए न्यौछावर कर देते हैं। दोनों ही बातें एक-दूसरे के विपरीत है। क्या हम ऐसे लोगों को देशद्रोही करार देंगे? क्या हम इन्हें बड़ी से बड़ी सजा, पेनल्टी लगाने को उचित मानेंगे? निश्चित तौर पर वजह इनका देश के प्रति द्रोह नहीं प्रेम है। कारण कहीं और है, कुछ और है जो हमें समझना होगा।
विदेशी कालाधन और उसका जोर
अपने देश से धन कमा कर, कमाई को नहीं बता कर, टैक्स की चोरी कर, विदेशों में धन को कहीं और जमा या निवेश किया गया धन विदेशी कालाधन माना जाता है। यह बात भी कभी-कभी तीव्र गति से उठती है, उस पर बड़ी कार्यवाही की बात भी होती है, किंतु जब बात कार्यवाही करने पर आती है तो ठंडे बस्ते में चली जाती है। क्योंकि ये वे लोग होते हैं जो देश के बड़े इज्जतदार ताकतवर होते हैं। इनका यह देश-प्रेम देश पर भारी होता है। यह देश को धता बता कर, करोड़ों का चूना लगाकर भाग भी जाते हैं। ऐसे देश प्रेमियों पर चर्चा उठती है और बंद भी हो जाती है। क्यों? इसका कारण भी समझने योग्य है क्योंकि ये देश को ही नहीं सरकार को भी चलाते हैं।
अंत में…
टैक्स की चोरी तो दोनों ओर ओ रही है, कार्यवाही भी होना चाहिए किंतु यहां ‘किंतु’ में बड़ा दम है एक ओर देशद्रोही की तरह सरकार कार्यवाही पर उतारू हैं और दूसरी ओर ‘चुप्पी-मौन’ होना शंकास्पद है जबकि ये पहले की तरह ‘टैक्स-चोर’ का देशप्रेम स्पष्ट है। उनका कमाया धन चाहे काला हो या सफेद हो, उनका कमाया धन चाहे टैक्स के रूप में खर्च हो या दान-धरम पर अपने ऊपर, अपने परिवार के ऊपर, वो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट देश पर, देश के विकास पर, व्यापार व्यावसाय पर ही खर्च होता है और देश को फ़ायदा ही मिलता है। वहीं दूसरी तरह के वे लोग जो देश में प्रभावशाली हैं, बड़े हैं। अपना धन देश से कमाते हैं और विदेशों में निवेश या जमा करा आते है, उनका प्रेम देश में नहीं अपने धन में है। उनका पैसा देश विकास में नहीं अपितु अन्य देशों के विकास की ओर चला जाता है। क्या ऐसे लोग देशद्रोही की सजा में नहीं आना चाहिए? पर नहीं आते हैं। बल्कि उनको बड़े से बड़े पद, फायदे सरकार के द्वारा मुहैया होते हैं।
वजह बहुत स्पष्ट नज़र आती है क्योंकि कोई भी सरकार या राजनैतिक पार्टियां नोट और वोट से चलती है, विकास तो उनका बस चुनावी जुमला भर होता है और ये जो देश के टैक्स चोर हैं वे न नोट की गिनती में हैं और न ही वोट की गिनती में। बड़े लोग गिने चुने हैं वे नोट देते हैं और छोटे लोग बहुत सारे हैं वो नोट तो कुछ नहीं देते, किंतु वोट भरपूर देते हैं। ये दोनों ही बगैर टैक्स जमा करे संपूर्ण देश विकास का फायदा लेते हैं और देश भक्त कहलाते हैं।