हमारा समाज चाहे कितना भी डवलप क्यों न हो जाए, लेकिन अमीर और गरीबी की खाई हमेशा रहेगी। ये बात चाहे पैसों को लेकर हो, मकान को लेकर हो या कपड़ों को लेकर। यहां तक की भारतीयों की फूड हैबिट्स में भी अमीरी-गरीबी का बड़ा अंतर देखा जाता है। इसके बावजूद भी एक आदमी को कितना खाना चाहिए इसकी एक लिमिट है।
साल 2011-12 में एनएसएसओ (National Sample Survey Office) ने एक सर्वे किया था , जिसमें घर की सेवाओं और जरूरतों से लेकर किस समाज का वर्ग क्या खाता है इस पर भी सर्वे किया गया। रिपोर्ट के अनुसार हर समाज के यूजेज को 12 पाट्र्स में बांट दिया गया, जिसे फ्रैक्टिल्स कहा गया।
इस सर्वे में अलग-अलग लोगों की इंकम के बारे में भी पता चला। सर्वे में सामने आया कि पांच प्रतिशत शहरी लोग खाने पर हर महीने 2850 रूपए प्रति हेक्टेयर खर्च करते हैं। जबकि गांव के लोग शहर के लोगों की तुलना में 9 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। शहर के लोग अनाज पर ज्यादा खर्च नहीं करते और जिनने अनाज पर खर्च उनकी संख्या मात्र 5 फीसदी है। अनाज पर ग्रामीण तबके के लोगों के ज्यादा खर्च किया।
लेकिन अगर बात पोषण की करें तो कुछ और ही तथ्य सामने आए। अमीर अगर दालों पर ढाई गुना ज्यादा खर्च करते हैं, तो गरीब मात्र 5 प्रतिशत ज्यादा खर्च करता है। सब्जियों पर वे 3.8 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। नॉन-वेज और दूध 14.5 गुना ज्यादा खर्च करते हैं, वहीं डेयरी प्रोड्क्टस 28.3 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। अमीर फ्रेश फ्रूट्स पर 61 गुना ज्यादा खर्च करते हैं और गरीब मात्र 5 प्रतिशत ही फलों पर खर्च कर पाता है।
शहरी लोग चाय, कॉफी पर करते हैं ज्यादा खर्च-
बात अगर ड्रिंक्स की करें, तो शहर के लोग 11.3 कप चाय, 1.9 कप कॉफी और 20 ग्राम कॉफी पाउडर का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा वे .335 लीटर फ्रूट जूस पी लेते हैं। बात अगर गरीब लोगों की करें तो इस मामले में उनका खर्च 630.86 रूपए था। ये आंकड़े बताते हैं कि किस तरह हमारे असामनता के समाज में हेल्थ को लेकर भी बड़ा अंतर दिखाई देता है।