गिरमिटिया मजदूर से ग्लोबल सीईओ तकः विदेशी जमीन पर हमारी छाप
गिरमिटिया मजदूरों के रूप में भारतीयों के विदेश जाने और वहां बसने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज एक अलग मुकाम पर पहुंच चुका है। अंग्रेजों ने भारतीयों के सस्ते मजदूर होने का फायदा उठाया और अपने उपनिवेश वाले तमाम देशों में उन्हें काम करने के लिए ले गए। इन लोगों को एग्रीमेंट पर लाया गया मजदूर कहा गया। एग्रीमेंट शब्द आगे चलकर गिरमिट और फिर गिरमिटिया शब्द में बदल गया। ये लोग मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, सेशेल्स और वेस्टइंडीज के देशों में गए। आज इनमें से कई देशों के राष्ट्र प्रमुख तक भारतीय मूल के हैं।
पहला गिरमिटिया
भारत से पहले गिरमिटिया मजदूरो की खेप 18वीं सदी मे फिजी पहुंची थी। भारतीय मजदूरों को वहां गन्ने के खेतों में काम करने के लिए ले जाया गया था ताकि वहां की स्थानीय संस्कृति को बचाया भी जा सके और यूरोपीय मालिकों को फायदा भी पहुंचाया जा सके। आज फिजी की 9 लाख की आबादी में साढ़े तीन लाख से अधिक भारतीय मूल के हैं। यहां तक कि फिजी की भाषा भी फिजियन हिंदी है।
आसान नहीं सफर
यह कतई आसान नहीं रहा होगा। अपने देश-अपने घर, अपनी जुबान से दूर। अजनबी देश में अजनबी भाषा में, अजनबी परिवेश में जीवन की नई शुरुआत। लेकिन भारत वंशियों ने विदेशों में योगदान का जो सिलसिला उस समय शुरू किया था आज वह नई ऊंचाइयों तक पहुंच चुका है। कर्मठता का आलम यह है कि फिजी और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश में स्थानीय लोगों को भारतीयों से केवल इसलिए चिढ़ है क्योंकि वे कड़ी मेहनत करते हैं। कारोबार और उद्यम के मामले में वे वहां के स्थानीय समुदाय पर भारी पड़ते हैं और इसलिए उनसे अधिक समृद्घ भी हैं। यह बात उनको नागवार गुजरती है और इसके परिणामस्वरूप कई बार आपसी संघर्ष भी होते हैं।
उपरोक्त गिरमिटिया लोगों तथा विदेशी नागरिकता ले चुके लोगों के अलावा देश के करीब 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अनिवासी भारतीयों के रूप में बाहर रह रहे हैं। वे न केवल उन देशों की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे हैं जहां वे रहते हैं बल्कि वे भारत धन भेजकर अपने देश की अर्थव्यवस्था की भी मदद कर रहे हैं।
आधुनिक प्रवासी
बहरहाल यह तो हुई गिरमिटिया मजदूरों की बात। अब बात करते हैं आधुनिक प्रवासियों की। फिर चाहे बात अमेरिका के आईटी सेक्टर की हो या सऊदी अरब के कंस्ट्रक्शन, दुबई के इंजीनियरों या ब्रिटेन के कारोबारियों की, भारत के लोग हर जगह छाए हुए हैं। अमेरिका में तो भारतीयों का सामाजिक दर्जा तक वहां के स्थानीय लोगों से कई गुना बेहतर है। एक औसत अमेरिकी जहां सालाना 50,000 डॉलर कमाता है वहीं औसत भारतीय वहां 90,000 डॉलर कमाता है। यानी करीब 60 लाख रुपये। अमेरिका में 50 लाख भारतीय रहते हैं। वहीं ब्रिटेन की बात करें तो वहां 19 लाख भारतीय रहते हैं। वहां गोरों के बाद सबसे अधिक संख्या में भारतीय नागरिक ही रहते हैं। सऊदी अरब की इंजीनियरिंग और भवन निर्माण इंडस्ट्री भारतीयों के ही भरोसे चल रही है। वहां करीब 30 लाख भारतीय रहते हैं।
देश की अर्थव्यवस्था में योगदान
विदेशों में रहने वाले भारतीय देश के लिए बहुत उपयोगी हैं। यही वजह है कि देश उनको दोहरी नागरिकता दे रहा है। वे वहां श्रेष्ठड्ढ काम करके देश का मान तो बढ़ाते ही हैं साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का योगदान भी करते हैं। बीते साल देश में करीब 80 अरब डॉलर की राशि विदेशों से आई। यह राशि वहां रहने वाले भारतीयों ने ही भेजी। यह राशि विदेशी घाटा कम करने और विदेशी मुद्रा में लिए गए कर्ज को चुकाने में अहम मदद करता है।
भारतीय मूल के चर्चित विदेशी–
सत्य नडेला- हैदराबाद में जन्मे दुनिया की अव्वल आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला आईटी क्षेत्र में काम कर रहे युवा भारतीयों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा हैं।
बॉबी जिंदल- अमेरिका के लुइसियाना प्रांत के गवर्नर हैं और इस बार अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के दावेदार भी।
सुंदर पिचाई- गूगल के मुख्य कार्याधिकारी हैं। दुनिया की टॉप आईटी कंपनी के सीईओ बनने का गौरव हासिल करने वाले वे पहले भारतीय हैं।
लक्ष्मीनारायण मित्तल- दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी आर्सेलरमित्तल के मालिक हैं एल एन मित्तल। 14 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक।