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भारतीय लेखकों की कल्पनाओं का अपना अलग ही वर्ग है। इनके लेखन ने न केवल भारत में अपना जादू चलाया है बल्कि विदेशों में भी इन्हें इनकी लेखन कला के लिए जाना जाता है। इनमें से कइयों को बुकर प्राइज से सम्मानित किया जा चुका है। इन लेखकों ने अपने नॉवेल के जरिए भारत और भारत के कुछ अनछुए पहलुओं से लोगों को रूबरू कराने की कोशिश की। आइए जानते हैं ऐसे नॉवेल्स के बारे में जो आपको जिंदगी में एक बार जरूर पढ़ने चाहिए…
द व्हाइट टाइगर – अरविंद अडिगा
अरविंद अडिगा ने इस नॉवेल से दुनिया में तूफान ला दिया था। ये अरविंद का पहला नॉवेल था जो कि 2008 में पब्लिश हुआ था। इसके लिए उन्हें 40वें बुकर प्राइज से सम्मानित भी किया गया था। द व्हाइट टाइगर एक महत्वाकांक्षी रिक्शा चालक बलराम हलवाई के सफल उद्यमी बनने के सफर की कहानी है। बलराम की कहानी के जरिए अरविंद ने आर्थिक प्रगति की चकाचौंध में भारत के गरीब वर्ग के जीवन की सच्चाई को उजागर किया है।
द गाइड – आर के नारायण
आर के नारायण का नॉवेल ’द गाइड’ क्लासिक इंडियन इंग्लिश नॉवेल है जिसमें उन्होंने समय को बहुत अच्छे से पिरोया है। नॉवेल के पब्लिश होने के बाद वे इंटरनेशनल राइटर बन गए। उनके नॉवेल की लोकप्रियता के चलते उन्हें गोली मार दी गई। 1958 में लिखे गए इस नॉवेल पर एक फिल्म भी बनी जिसमें देव आनंद लीड रोल में थे। नॉवेल में यह बताया गया है कि कहानी का नायक राजू किस तरह एक टूर गाइड से आध्यात्म का मार्गदर्शक बन जाता है। यदि आप भारत में इंग्लिश नॉवेल के सफर की शुरूआत को समझना चाहते हैं तो आपको ये नॉवेल जरूर पढ़ना चाहिए।
अनटचेबल – मुल्कराज आनंद
मुल्कराज आनंद का नॉवेल ’अनटचेबल’ 1935 में पब्लिश हुआ था। ’अनटचेबल’ से मुल्कराज आनंद ने भारतीय साहित्य में खासा नाम कमाया। ये नॉवेल भारत में होने वाले जातीय भेदभाव की सच्चाई को बयां करता है। नॉवेल की कहानी जाति व्यवस्था को खत्म करने के तर्क के आसपास घूमती है।
ट्रेन टू पाकिस्तान – खुशवंत सिंह
अपने इस नॉवेल में खुशवंत सिंह ने भारत-पाक बंटवारे के दौरान हुए नरसंहार और लोगों के दर्द को बताया है। ये एक ऐतिहासिक नॉवेल है जो 1956 में पब्लिश हुआ था। हालांकि उन्होंने बंटवारे के दौरान हुए राजनीतिक खेल को अपने लेखन में उजागर नहीं किया है। उस समय स्टेशनों पर होने वाली आम आदमी की बदहाली को उन्होंने अपने शब्दों से जीवंत बना दिया है। 1998 में उनके नॉवेल पर ’ट्रेन टू पाकिस्तान’ नाम से एक फिल्म भी बनी।
फास्टिंग, फीस्टिंग – अनीता देसाई
अनीता देसाई के इस नॉवेल को 1999 के बुकर प्राइज के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था। ’फास्टिंग फीस्टिंग’ एक साधारण और मोटी लड़की उमा और देर से जन्मे अरूण की कहानी है जो कि सख्त और पारंपरिक ख्यालातों वाले माता-पिता की संताने हैं। नॉवेल की कहानी नब्बे के दशक की मिडिल क्लास फैमिली और उनकी चुनौतियों पर प्रकाश डालती है।
मिडनाइट्स चिल्ड्रन – सलमान रुश्दी
सलमान का ये नॉवेल भारत की आजादी के लिए ब्रिटिश उपनिवेशवाद से संघर्ष और ब्रिटिश भारत के विभाजन की कहानी कहता है। सलमान का ये नॉवेल गुलाम भारत के यथार्थ को दिखाता है। नॉवेल का मुख्य किरदार सलीम सिनाई है। ये उपन्यास आजादी के बाद के ऐतिहासिक उपन्यास का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसमें सत्तर के दशक में आजादी के लिए घटी राजनीतिक घटनाओं को खूबसूरती से बुना गया है।
अ फाइन बैलेंस – रोहिंटन मिस्त्री
रोहिंटन मिस्त्री का नॉवेल ’अ फाइन बैलेंस’ 1975 और 1984 के आपातकाल में फैली अशांति के दौरान मुंबई के हालातों पर नजर डालता है। ये नॉवेल आपतकाल के दिनों के दौरान नागरिक स्वतंत्रता और सरकार की सत्ता के संबंधों को विस्तार से उजागर करता है। नॉवेल की कहानी 4 ऐसे लोगों के आसपास घूमती है जो अलग-अलग पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं और आपातकाल की स्थिति से निपटने के लिए एक हो जाते हैं।
द नाइट ट्रेन एट देओली – रस्किन बॉन्ड
इस नॉवेल में रस्किन बॉन्ड ने देहरादून के उस ट्रेन के सफर को शब्दों में पिरोया है जो कि उन्होंने 18 साल की उम्र में किया था। नॉवेल की कहानी एक छोटे और सूनसान स्टेशन देओली के चारों और घूमती है। रस्किन बॉन्ड एक महान लेखक हैं जिन्होंने उत्तराखंड में लोगों के जीवन के बारे में कई कहानियां लिखी हैं।
द शैडो लाइन्स – अमिताभ घोष
अमिताभ घोष को इस नॉवेल के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। नॉवेल स्वेदशी आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध, भारत और ढाका विभाजन के दौरान कोलकाता में हुए सांप्रदायिक दंगों जैसी ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। अमिताभ ने कई लोगों की यादों को इस नॉवेल के जरिए अपने शब्दों में उतारा है।