बारहवी पास युवा का मंथली टर्नओवर 23.39 करोड़ रूपये
आज के इस प्रतिस्पर्धा के दौर में युवाओं को एक अच्छी नौकरी की तलाश रहती है। वे चाहते है कि उन्हे ग्रेजुएशन के बाद एक अच्छी और सिक्योर जाॅब मिले, शायद यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में युवाओं के लिए शासकीय नौकरीयां उनकी सबसे पहली पसंद बनी। लेकिन क्या कोई युवा अपना ग्रेजुएशन छोड़कर सिर्फ बारहवी के दम पर ऐसा कुछ कर दिखाए जिससे की सारी नौकरीया पीछे रह जाए तो सुनकर अचरज होता है। लेकिन देश में टेलेंट की भी कमी नही है। हम बात कर रहे है। रितेश अग्रवाल की जिन्होने बारहवी पढ़कर ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन तो लिया लेकिन कुछ अलग करने की चाहत में इन्होने ग्रेजुएशन बीच में ही छोड़कर कुछ ऐसा कर दिखाया जिससे की नौकरी जैसा नाम और नौकरी की कमाई कही पीछे ही रह गई।
एक आइडिया ने बदल दी जिंदगी
एक साधारण सी घटना किस तरह हमारी जिंदगी को बदल सकती है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण रितेश अग्रवाल है। इन्हे एक रात मजबूरन होटल में गुजरना पढ़ी और वही से इनके दिमाग में आइडिया आया। दरअसल रितेश को एक बार किसी होटल में रात को रूकना था। इस दौरान उन्हे रात मे होटल को खोजने से लेकर होटल में स्टे तक की परेशानी को नोटिस किया। और इस परेशानी को दूर करने के लिए कुछ अलग करने का सोचा। इसी परेशानी को दूर करने के चलते आज रितेश ओयो रूम्स के सहसंस्थापक है। आज इस फर्म के साथ देश के सौ शहर की 2200 होटल्स जुड़ी है। इस कंपनी में 1500 कर्मचारी काम करते है। और इनकी कंपनी का एक महीने का टर्नओवर 23.39 करोड़ रूपये है।
परिवार में कोई नही था सहमत
बारहवीं पास करने के बाद सत्रह साल की उम्र से ही रितेश अग्रवाल ने अपने पुराने अनुभव के अनुसार काम करना शुरू किया। कटक के पास विसम में पले-बड़े रितेश के पिता इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन में काम करते हैं, जबकि मां गृहिणी है। दिल्ली के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस एंड फाइनेंस में एडमिशन भी ले लिया, लेकिन छोड़ दिया।
तीन भाई, बहनों में से एक रितेश ने जब पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया तो मध्यमवर्गीय परिवार में कोई सहमत नहीं था। मां को चिंता इस बात की थी कि रितेश से शादी कौन करेगा, कोई भी लड़की कम से कम ग्रेजुएट लड़का तो चाहती ही है, लेकिन रितेश नहीं माने। हालांकि बाद में जब उन्होंने दिल्ली में अपना ऑफिस शुरू किया तो पिता देखने गए। तब उन्हें तसल्ली हुई कि कॉलेज की पड़ाई छोड़ने वाला बेटा कुछ ठीक काम करने लगा है।
निकाला समस्या का हल
रितेश को यात्राओं के दौरान देखने में आया कि कभी कम पैसे में अच्छी जगह मिल जाती, कभी ज्यादा पैसे देकर भी बात जम नहीं पाती। इसी पर सोचते हुए उन्होंने तय किया कि एक ऐसी ऑनलाइन सोशल कम्युनिटी बनाई जाए, जो यात्रा के दौरान रुकने में आने वाली समस्या हल कर दे। जैसे यात्री का स्वागत रिसेप्शन पर ढंग से हो। रूम में फटी और गंदी चादरें न हो। मोबाइल चार्ज करने का सॉकेट ठीक हो। नाश्ता और बिस्तर ठीक हो। पहले उन्होंने ओरेवल नाम का प्लेटफॉर्म बनाया। इससे पैसा जुटाया उन्हें इसके लिए थिएल फैलोशिप भी मिली। यह पेपल के संस्थापक पीटर थिएल की ओर से दी जाती है। एक लाख डॉलर की फैलोशिप पाने वाले वे पहले भारतीय हैं।
ओरेवल से बनाया ओयो रूम्स
ओरेवल की फिर से ब्रैंडिंग करके ओयो होटल्स के नाम से लॉन्च किया। इसका अर्थ है ऑन योअर ओन। रितेश की कंपनी अनब्रैंडेड होटल्स के साथ काम करती है। इसमें स्टाफ को ट्रेनिंग दी जाती है और फिर होटल के रेवेन्यु से हिस्सा लिया जाता है। चूंकि ओवायओ का नेटवर्क काफी बड़ा है, तो इससे जुड़ने वाली होटलें भरी रहती हैं। इस नेटवर्क से देश की 2200 होटलें, जो 100 शहरों में है।
ओवायओ का रेवेन्यु 22 करोड़ रुपया प्रतिमाह है। कंपनी में 1500 कर्मचारी हैं। हालांकि शुरुआत कठिन थी, खुद रितेश को ही गुड़गांव की एक होटल में कभी रिसेप्शनिस्ट, कभी होटल के कमरे में सर्व करने का काम करना होता था। लेकिन बाद में लोग जुड़ते गए। रात में बैठकर कोड बनाते ताकि एप और वेबसाइट विकसित किया जा सके।
उनका कहना है कि उनकी इस कोशिश से जो होटलें अच्छा कारोबार नहीं कर पाती थी, उनको तो फायदा हुआ ही, साथ ही कई ऐसे लोगों को काम मिल सका जो काम के लिए परेशान थे।
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