पिछले दिनों विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर भारत की आबादी 1,27,42,34,538 दर्ज की गई। हालांकि जनसंख्या वृद्धि की दर में गिरावट आई है लेकिन आधिकारिक अनुमान है कि 2028 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा। जहां 1991-2000 में जनसंख्या वृद्धि की दर 21.54 फीसदी थी वहीं 2001-2011 में ये घटकर 17.64 फीसदी हो गई।
दुनिया के कई देश बसते हैं भारत में
भारत की आबादी अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी से भी ज्यादा है। ध्यान देने की बात है कि भारत के कई राज्य विकास में भले ही पीछे क्यों न हों लेकिन उनकी जनसंख्या दुनिया के कई देशों की जनसंख्या से ज्यादा है। जैसे तमिलनाडु की जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या से ज्यादा है और उड़ीसा अर्जेंटीना से आगे है। मध्यप्रदेश की जनसंख्या थाईलैंड से ज्यादा है तो महाराष्ट्र मैक्सिको को टक्कर दे रहा है। उत्तर प्रदेश ने ब्राजील को पीछे छोड़ा है तो राजस्थान ने इटली को पछाड़ा है। जहां गुजरात ने साउथ अफ्रीका को मात दे दी है वहीं पश्चिम बंगाल वियतनाम से आगे बढ़ गया है। यही नहीं, हमारे छोटे-छोटे राज्यों जैसे झारखंड, उत्तराखंड, केरल ने भी कई देशों जैसे युगांडा, ऑस्ट्रिया, कनाडा, उज्बेकिस्तान को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अपनी इस उपलब्धि के साथ हम यह कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या के आधार पर दुनिया के कई देश बसते हैं।
अभी तो ‘युवा’ है भारत
भारत की उम्र की यदि बात करें तो साल 2010 में भारत की औसत उम्र 25 साल थी। वहीं इसकी तुलना में चीन की 35, अमेरिका की 37, जर्मनी की 44 और जापान की 45 थी। संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या विभाग के मुताबिक, साल 2050 में भारत की औसत आयु 37, चीन की 49, अमेरिका की 40, जर्मनी की 49 और जापान की 52 होगी। आंकड़ों के मुताबिक यह तो साफ है कि हम विश्व आर्थिक शक्ति का जो ख्वाब देख रहे हैं, वह पूरा हो सकता है। इसी को दुनिया ‘जनसांख्यिकी लाभांश’ कहती है। जनसांख्यिकी लाभांश की थ्योरी आबादी विशेषज्ञ डेविड ब्लूम ने 90 के शुरुआती सालों में दी थी। उनकी थ्योरी मुताबिक, जब किसी देश की आबादी में युवाओं की संख्या ज्यादा हो, तो उससे उस देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ता है। उनके अनुसार 15 से 59 साल की कामकाजी उम्र अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होती है।
आबादी के बल पर उभर सकते हैं आर्थिक शक्ति के रूप में
आशंका जताई जा रही है कि साल 2060 में भारत की आबादी 1.7 अरब तक होगी, इसके बाद गिरावट आएगी। वहीं चीन 1.4 अरब के साथ 2025 में अपने चरम पर पहुंचेगा। यानी चीन जब अपने चरम पर होगा, उससे पहले ही भारत की आबादी उससे अधिक हो जाएगी। कुछ लोग इसे उपलब्धि मानते हैं। उन्हें लगता है कि हम अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन को मानव शक्ति के जरिए पछाड़ देंगे। उनका तर्क है कि जब चीन अपनी समृद्धि की चोटी पर होगा, तब तक उसकी आबादी बुजुर्ग हो जाएगी। वहीं भारत अभी मध्य आयवर्ग की स्थिति में है, जबकि उसकी औसत आबादी युवा ही है। लगभग 70 फीसदी भारतीय 35 साल से कम उम्र के है यानी युवा हैं। ऐसे में, इस सदी के मध्य तक भारत आर्थिक शक्ति के तौर पर उभर सकता है। सच्चाई यह भी है कि मानव संसाधनों का उचित इस्तेमाल हो जाए तो किसी भी देश की तकदीर बदल सकती है बशर्ते श्रम शक्ति का सही इस्तेमाल किया जाए।
निपटना होगा इन चुनौतियों से
चीन और जर्मनी ने अपनी अधिक जनसंख्या का इस तरह से इस्तेमाल किया कि बढ़ती जनसंख्या को लेकर दूसरे देशों की अवधारणा भी बदल गई। फिलहाल, भारत की कामकाजी आबादी में अधिकतर युवा ’15 से 35 साल’ हैं। भारत की युवा आबादी के रूप में हमारे पास मौका है दूसरे देशों के मुकाबले तेज गति से विकास करने का। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि आने वाले कुछ सालों में भारत इस मौके का फायदा उठा पाएगा? जानकारों का कहना है कि भारत अपनी पूरी युवा शक्ति से श्रम की अधिकतम क्षमता को विकसित कर लेगा, क्योंकि उसके पास अपेक्षाकृत बेहतर शिक्षा तंत्र है, युवाओं में उद्यमशीलता है और अंग्रेजी में दक्षता की वजह से उसका वैश्विक अर्थनीति से सीधा जुड़ाव है। ये सारी बातें सही भी हैं लेकिन भारत के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। भारत के अधिकतर भागों में स्कूली शिक्षा की हालत दयनीय है। जहां तक उच्च शिक्षा की बात है, तो उसे भी बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। विश्वविद्यालयों को भी संसाधनों की जबर्दस्त कमी से जूझना पड़ता है। जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप छात्र का विकास उस तरह से नहीं हो पाता जैसा कि रोजगार पाने के लिए होना चाहिए। इसके अलावा एक बड़ा कारण है ईमानदारी का न होना। उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने की बजाय हर कोई अधिक मुनाफा कमाना चाहता है। जाहिर है, इन सब के चलते भारत अपने जनसांख्यिकी लाभांश को पाने से चूक रहा है। दरअसल, इसका फायदा उठाने के लिए व्यवस्थित योजना और क्रियान्वयन की जरूरत है। वक्त आ गया है कि हम अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय करें और यह सुनिश्चित करें कि देशहित ही सर्वोपरि है। परिवार नियोजन कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा। शिक्षा की गुणवत्ता पर भी लगातार ध्यान देते रहने की जरूरत है। इसके लिए सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में, जहां पर गरीब व ग्रामीण तबके के छात्र पढ़ने आते हैं, निवेश बढ़ाने की जरूरत है। ताकि युवाओं के भविष्य को बेहतर बना कर हम विश्वपटल पर अपना परचम लहरा सकें।