महिला नागा साधु की अलग दुनिया है
दुनिया का सबसे धार्मिक मेला कुंभ। हर 12 वर्ष बाद नासिक, हरिद्वार, इलाहाबाद और उज्जैन में मनाया जाता है। इस बार उज्जैन में मनाया जा रहा है। कुंभ में यूं तो कई सन्यासी और नागा साधु पवित्र नदियों मे स्नान करने के लिए आते हैं। वहीं सन्यासी सनातन धर्म से निकला हुआ शब्द है सन्यासिनी। जिसको अखाड़े के संत महात्मा अवधूतानी पुकारते हैं। महिला अखाड़े का रंग पुरूषा साधुओं के अखाड़े जैसा होता है। मगर महिला नागा साधु की अपनी अलग दुनिया है। इन महिला नागा सन्यासियों के शिविर में कोई भी आम व्यक्ति बिना इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकता। इन सन्यासियों को ईष्टदेव भगवान दत्तात्रेय की मां अनुसुइया को ईष्ट मानकर अराधना करती हैं।
दी जा रही है दीक्षा-
वर्तमान में कई अखाड़ों में महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती ै। इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा होती जा रही है। वैसे तो महिला और पुरूष नागा साधुओं के नियम कायदे एक जैसे ही हैं। लेकिन फर्क बस इतना है कि महिला नागा साधु कुंभ स्नान के दौरान गेरूआ या पीला कपड़ा लपेटे रहती हैं।
महिलाओं से ज्यादा नागा साधुओं का श्रृंगार-
नागाओं के 17 श्रृंगार लंगोट , भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला , माथे पर रोली का लेप, कुंडल , हाथों मे चिमटा, डमय , गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन मे विभूति का लेप, बाहों पर रूद्राक्ष की माला, उनके 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
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