मुंबई का बेताज बादशाह रह चुका है ये डॉन
Ravi NamdevSocial

मुंबई को वैसे तो सपनों की नगरी कहा जाता है यहां पर हर कोई अमीर बनने का सपना सजाए आता है। अमीर बनने की चाह में यहां कोई बिजनेसमैन बन जाता है तो कोई अंडरवर्ल्ड का डॉन बन जाता है। मुंबई का अंडरवर्ल्ड से पुराना नाता रहा है। आज़ादी के बाद से ही मुंबई में कई अंडरवर्ल्ड डॉन ने राज करना चाहा लेकिन इनकी सत्ता थोड़े दिन चलती और फिर ये डॉन गायब हो जाते।
मुंबई में यूं तो कई अंडरवर्ल्ड डॉन आए और गए लेकिन एक अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई में काफी फेमस हुआ। इस डॉन का नाम था ‘हाजी मस्तान’। 1 मार्च 1926 को जन्मा इस डॉन की ज़िन्दगी में कभी ऐसे भी दिन थे जब इसे भूखा मरना पड़ा था। इस डॉन ने कुली का भी काम किया। फिर किस्मत यूं पलटी की ये डॉन बन गया। आज हम आपको इसी डॉन की इंट्रेस्टिंग कहानी बताने वाले हैं…
कौन था हाजी मस्तान
मुंबई का फेमस अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान तमिलनाडु के कुड्डुलोर में पैदा हुआ था। उसके पिता हैदर मिर्जा एक गरीब किसान थे। उनका परिवार आर्थिक रूप से काफी कमजोर था। कई बार घर में खाने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था। इसी परेशानी में हैदर नए काम के लिए शहर जाना चाहते थे, लेकिन घर की परेशानी की वजह से वो घर नहीं छोड़ पाते थे।
मुंबई आया मिर्जा परिवार
हैदर मिर्जा की घर की परेशानी के कारण वे नए शहर नहीं जा पा रहे थे लेकिन आखिरकार उन्होंने अपना शहर छोड़कर मुंबई जाने का फैसला किया। 1934 में वह अपने बेटे मस्तान मिर्जा को साथ लेकर मुंबई आ गए। वहां उन्होंने कई काम किए मगर कामयाबी नहीं मिली। उसके बाद उन्होंने क्रॉफर्ड मार्केट के पास बंगाली टोला में साइकिल रिपेयरिंग की दुकान खोली। दुकान खोले काफी वक्त बीत चुका था लेकिन कोई खास कमाई नहीं हो रही थी। दुकान पर खाली बैठा 8 साल का मस्तान सड़क से आने जाने वाली शानदार गाड़ियों और आलीशान इमारतों को देखता रहता था. वहीं से उसने उन गाड़ियों और बंगलों को अपना बनाने का सपना संजोया था।
हाजी मस्तान बना कुली
मुंबई में आए मिर्जा परिवार को दस साल बीत गए लेकिन उनका परिवार कोई ख़ास तरक्की नहीं कर पाया। इसी बीच मस्तान की मुलाकात मुंबई में ग़ालिब शेख नाम के एक शख्स से हुई. उसे एक तेजतर्रार लड़के की ज़रूरत थी. उसने मस्तान को बताया कि अगर वह डॉक पर कुली बन जाए तो वह अपने कपड़ों और थैले में कुछ खास सामान छिपाकर आसानी से बाहर ला सकता है जिसके बदले उसे पैसा मिलेगा. इसके बाद मस्तान ने 1944 में डॉक में कुली के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. वह मन लगाकर काम करने लगा था. इस दौरान वहां डॉक पर काम करने वालों से मस्तान ने दोस्ती करना शुरू कर दिया. वो वहां आने जाने वालों से भी दुआ सलाम करने लगा था।
जुर्म की दुनिया में पहला कदम
दरअसल, चालीस के दशक में विदेश से जो लोग इलेक्ट्रॉनिक सामान, महंगी घड़ियां या सोना, चांदी और गहने लेकर आते थे उन्हें उस सामान पर टैक्स की शक्ल में बड़ी रकम अदा करनी पड़ती थी। यही वजह थी कि डॉक पर तस्करी करना एक फायदे का सौदा था। गालिब की बात मस्तान की समझ में आ चुकी थी। उसने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया और गुपचुप तरीके से वह तस्करों की मदद करने लगा। तस्कर विदेशों से सोने के बिस्किट और अन्य सामान लाकर मस्तान को देते थे और वह उसे अपने कपड़ों और थैले में छिपाकर डॉक से बाहर ले जाता था। कुली होने के नाते कोई उस पर शक भी नहीं करता था। इस काम की एवज में मस्तान को अच्छा पैसा मिलने लगा था।
कुली बन गया माफिया
डॉक पर काम करते हुए मस्तान अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बना रहा था। वह तस्करों की मदद करता जिससे उसे खूब फायदा होता। साल 1950 में दमन और गुजरात के कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण बखिया उसके संपर्क में आ गये। दोनों के बीच दोस्ती हो गई। दोनों साथ मिलकर काम करने लगे। उस वक्त सोने के बिस्किट, फिलिप्स के ट्रांजिस्टर और ब्रांडेड घड़ियों की बहुत मांग थी। मगर टैक्स की वजह से भारत में इस तरह का सामान लाना बहुत महंगा पड़ता था। लिहाजा दोनों ने मिलकर दुबई और एडेन इस सामान की तस्करी शुरू की। इसा तस्करी से दोनों को अच्छा-खासा मुनाफा हो रहा था जिससे अब मस्तान की ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गई थी। अब एक मामूली सा कुली माफिया मस्तान भाई बन चुका था।
जुर्म की दुनिया का बड़ा नाम
एक समय था जब मस्तान सड़क पर अपने पापा की साइकिल की दुकान पर बैठकर बड़ी-बड़ी गाड़ियों को देखता था लेकिन अब वह मुंबई में समंदर का मालिक बन चुका था। अब वह अमीर से भी अमीर बन चुका था। मुंबई में पहले तो वरदराजन उर्फ वर्धा का नाम चलता था लेकिन वह डॉन नहीं बन पाया था। लेकिन 70 के दशक में मुंबई को एक डॉन मिला जिसका नाम था हाजी मस्तान। मस्तान अब अमीर और ताकतवर था। उसे सफेद डिजाइनर सूट पहनने और मर्सिडीज की सवारी करने का बहुत शौक था। उसके हाथ में हमेशा विदेशी सिगरेट और सिगार दिखाई देते थे। ऐशोआराम उसकी जिंदगी का शगल बन गया था।

मधुबाला से करना चाहता था शादी
हाजी मस्तान अब मुंबई के अमीर लोगों में शुमार था। उसे बॉलीवुड से बेहद लगाव था या यूं कहें कि अभिनेत्री मधुबाला से। मस्तान मधुबाला से शादी करना चाहता था लेकिन हालात के चलते ऐसा नहीं हो सका। फिर मधुबाला जैसी दिखने वाली फिल्म अभिनेत्री सोना मस्तान को भा गई और उसी के साथ मस्तान ने शादी की। मस्तान ने सोना के लिए कई फिल्मों में पैसा लगाया। लेकिन उनकी फिल्में नहीं चल सकी। बताते हैं कि दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राज कपूर, धमेंद्र, फिरोज खान और संजीव कुमार जैसे बॉलीवुड सितारों से हाजी मस्तान की दोस्ती थी। कई बड़ी बॉलीवुड हस्तियां अक्सर उनके बंगले पर दिखाई देती थी।
वीआईपी बनकर हुआ गिरफ्तार
हाजी मस्तान मुंबई में अब इतना बड़ा नाम बन गया था कि पुलिस और कानून उसके लिए कोई मायने नहीं रखते थे। हाजी मस्तान साल 1974 में पहली बार गिरफ्तार हुआ था। उस समय उसे एक वीआईपी की जैसी सुविधाएं दी गई थी। उसे किसी जेल में नहीं बल्कि एक बंगले पर रखा गया था जिसमें उसके खाने-पीने का पूरा इंतज़ाम था। उसकी खातिरदारी के लिए हर उस ज़रूरत का ख्याल रखा गया था, जिसकी मस्तान को चाह थी। पुलिस वाले भी उसे सलाम करते थे। मस्तान भी पुलिस वालों के काम आता था। उन्हें महंगे उपहार देना उसकी आदत में शामिल था और अगर कोई अफसर उसका कहा नहीं मानता था तो वह उसका तबादला करा देता था।
इंदिरा गांधी ने भेजा था मस्तान को जेल
हाजी मस्तान को जेल भेजना कोई आसान काम नहीं था लेकिन इंदिरा गांधी ने इस मुश्किल काम को भी कर दिखाया। देश की पीएम इंदिरा गांधी को अक्सर मस्तान की ख़बरे मिलती रहती थी। इंदिरा भी उसके प्रभाव से परेशान थी। उस वक्त पुलिस ने उसे पकड़ने की काफी कोशिश की लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आया लेकिन जब देश में इमरजेंसी लगी तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया। ये पहला मौका था जब हाजी मस्तान ने जेल में दिन काटे थे।
जुर्म की दुनिया को कहा अलविदा
जेल में जाने से मस्तान की ज़िन्दगी ने फिर एक नया मोड़ लिया। यहां उसकी मुलाक़ात जेपी से हुई, जिनके संपर्क में आने के बाद मस्तान के इरादे बदल गए। जब 18 महीने जेल में रहने के बाद हाजी मस्तान बाहर आया तो उसने जुर्म की दुनिया को अलविदा कहने का मन बना लिया था।
आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो हाजी मस्तान सहित करीब चालीस बड़े तस्करों को माफी मिल गई थी। दरअसल, इमरजेंसी लगने से पहले मस्तान ने कई नेताओं को पुलिस से बचाने और भागने में मदद की थी इसलिए जनता पार्टी की सरकार ने उसके प्रति नरम रवैया अपनाया था।

राजनीति में एंट्री
आखिरकार, 1980 में हाजी मस्तान ने जरायम की दुनिया को अलविदा कहकर राजनीति का रुख कर लिया. 1984 में महाराष्ट्र के दलित नेता जोगिन्दर कावड़े के साथ मिलकर खुद की पार्टी दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ बनाई. आगे चलकर 1990 में इसका नाम बदल कर भारतीय अल्पसंख्यक महासंघ कर दिया गया था. बॉलीवुड के सुपर स्टॉर दिलीप कुमार ने इस सियासी पार्टी का खूब प्रचार किया. वे पार्टी के कई कार्यक्रमों में दिखाई देते थे. हाजी मस्तान की इस पार्टी ने बाद में मुंबई, कोलकाता और मद्रास के निकाय चुनाव में भागीदारी की. बताया जाता है कि चुनाव में भले ही पार्टी को कामयाबी नहीं मिली लेकिन इस चुनाव में काले धन का जमकर इस्तेमाल हुआ था. वहीं से चुनाव में भारी पैसा खर्च करने का शगल शुरू हुआ था.
बिना गोली चलाए बना था डॉन
हाजी मस्तान मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे ताकतवर डॉन था. लेकिन इस शक्तिशाली डॉन ने अपनी पूरी जिंदगी में किसी की जान नहीं ली, किसी पर हमला नहीं किया. यहां तक कि एक भी गोली नहीं चलाई. बावजूद इसके हाजी मस्तान जुर्म की काली दुनिया में सबसे बड़ा नाम था. उस दौर में उसके नाम की तूती मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में बोलती थी. हाजी मस्तान जिंदगीभर मुंबई में लोगों की मदद भी करता रहा. उसने अपना आखरी वक्त अपने परिवार के साथ बिताया जिसमें पत्नी और उसका गोद लिया बेटा शामिल था. और 1994 में हार्ट अटैक से हाजी मस्तान की मौत हो गई थी. आज भी मुंबई में उसके किस्से सुनने को मिल जाते हैं.