रावण के रूप में हमने बुराई नहीं ज्ञान को जलाया
रावण को बुराई का प्रतीक बना हमने सदियों से जलाया है। हर एक बुराई के नाम पर हमने आतिशी का आनंद लिया। उस ज्ञान के विभूषण का तो कुछ नहीं बिगड़ा, किंतु हम अज्ञानी होकर बुराई के पुतले बन गए। अधूरे ज्ञान का हश्र क्या होता है, आज हमें समझ में आ गया है। रावण के अहंकार को तो हमने देखकर उसे बुराई का प्रतीक बना डाला और सदियों से जला डाला, किंतु हम अहंकारी हो नीचे गिरते चले गए, यह पता ही नहीं चला। रावण में कई गुण थे किंतु वे हमें दिखाई ही नहीं दिए।
शिव भक्त – महर्षि बाल्मिकी के शिष्य व भगवान शिव के द्वारा कई वरदान प्राप्त थे।
महान विद्वान – मस्तक पर 10 सर जिसमें से 6 शास्त्रों (व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, छंद, निरुक्त और दर्शन) व 4 वेदों (ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) के थे। वे 18 पुराणों के ज्ञाता थे।
वीणा वादक – कुशल वीणा वादक व सरस्वती के उपासक।
कुशल शासक – तीनों लोकों में सबसे बलवान व कुशल शासक के रूप में जाने जाते हैं।
अब ऐसे गुणों से भरपूर महाज्ञानी को हम बुराई का प्रतीक बना जला रहे हैं। यहां बुराई नहीं हमारा सारा ज्ञान जल गया। तभी तो हम अज्ञानी हो निचले स्तर पर गिरते चले जा रहे हैं। जितनी तरह की बुराइयां हो सकती थीं, वे सभी हमारे अंदर विद्यमान हो चुकी हैं। जैसे-जैसे साल-दर-साल हम इसे जलाते आए उतने ही गहरे में हम बुराई की तरफ बढ़ते गए। आज हम भ्रष्टाचार, यौनाचार, आतंकवाद से लेकर हर तरफ संबंधों का, इंसानियत का खून कर अमानुषता की ओर पुनः पहुंच गए हैं। इसके चलते कोई भी व्यक्ति नेक राह पर चल गंभीर नहीं दिखलाई पड़ता।
बात रावण की करें तो उसने सीता का अपहरण जरूर किया किंतु उसकी पवित्रता पर आंच नहीं आने दी। वह ब्रह्माण्ड का सर्वशक्तिमान बलशाली शासक था। चाहता तो सीता के साथ दुर्व्यवहार कर सकता था। उसे कोई रोक नहीं सकता था किंतु वह आज के दौर के वासना पुरुषों की तरह नहीं था। उसने सीता की पवित्रता को अपमानित नहीं होने दिया। वह बहादुर था, आज के दौर के आतंकवादियों की तरह बेकसूरों को नहीं मारा करता था। उसकी भक्ति में शक्ति थी, आज की तरह धर्म का पाखंडी नहीं था। तभी भगवान शिव ने उसे कई वरदान दिए थे, उसकी मुक्ति के लिए स्वयं भगवान आए थे। उसके जो 10 सर थे वे 6 शास्त्र व 4 वेद के थे। सभी प्रकार का ज्ञान उसमें समाहित था, आज की तरह ज्ञानी होने का ढोंग कर ज्ञान को बेचने नहीं निकल पड़ा था। कुशल शासक था, न कि आज के दौर के नेताओं की तरह दंगे-फसाद, धर्म के नाम पर लोगों को बांटकर राज करता था। ऐसे महाज्ञानी को जलाकर हम ज्ञान को ही जला रहे हैं। अपनी कमजोरी का पूरा ठीकरा इस महाज्ञानी पर फोड़ रहे हैं।
जब तक हम इसे पूजने की बजाय जलाते रहेंगे, हमारी बुराइयां और बढ़ती रहेंगी। रावण को जलाना ब्रह्म हत्या मानी गई है। श्रीराम ने भी रावण का वध करने के बाद प्रायश्चित किया था। हमारे देश में ही आज कई स्थानों पर इनके मंदिर बने हुए हैं एवं इसे एक विद्वान के रूप में पूजा जाता है। हमें इस बात को विस्तृत संदर्भ में लेना चाहिए और सदियों से आंख मीचकर जो करते आ रहे हैं उसे समझकर, रोककर इसकी पूजा अर्चना की जानी चाहिए। ताकि हम इस ज्ञान की आग में अपने अंदर की बुराइयों को खत्म कर सकें और सही अर्थों मे राम राज्य की स्थापना कर सकें।