लव इज एक्चुअली, स्टेट ऑफ माइंड………
प्यार की शुरूआत होती आंखो से है, उतरता दिल में है, लेकिन असल में ये होता दिमाग से है। खोए रहना, नींद उडऩा, उनकी यादों में डूबे रहना… इसे नापा तौला तो नहीं जा सकता, लेकिन इस रूमानियत और बेखुदी के पीछे वेलडिफाइन्ड साइंस है। विशेषज्ञों के अनुसार दिमाग का लिम्बिक सिस्टम जहां से थॉट्स की कंट्रोलिंग होती है, प्यार का अहसास कराता है। न्यूरोकेमिकल प्यार में उत्तेजना, घृणा, शारीरिक आकर्षण जैसे प्रभाव लाते हैं। ब्रेन का थॉट प्रोसेस ही प्यार में डूबने के बाद खूबसूरत दिखने और बनने के लिए इंस्पायर करता है। यानि दिल का ये रिश्ता बनता भी दिमाग से है और चलता भी दिमाग से है। प्यार की पूरी प्रोसेस के पीछे गहराई तक साइंस जुड़ा हुआ है जिसे साइंस ऑफ लव कहा जाता है। फिर चाहे बात केमिस्ट्री ऑफ लव , फिजिकल एपीरियंस साइकोलॉजी ऑफ लव की हो।
प्यार कराते हैं न्यूरोकेमिकल्स-
प्यार की शुरूआत केमिस्ट्री से ही होती है। ब्रेन में पाए जाने वाले न्यूरोकेमिकल्स ही प्यार होने का अहसास कराते हैं। प्यार में डूबने का पूरा श्रेय इन्हीं न्यूोकेमिकल्स को जाता है। साइकैटरिस्ट डॉ.रंजीत सिंह बताते हैं कि दिमाग का लिम्बिक सिस्टम प्यार को संचालित करता है। टेस्टीस्टीरोन, ऑक्सीटोसिन, सिरोटोनिन और एड्रीनालीन प्यार कराते हैं। न्यूरोकेमिकल्स प्यार को प्रभावित भी करते हैं, जैसे मिलने की इच्छा होना, गुस्सा या नफरत का भाव आना इन्हीं से होता है।
न्यूरोकेमिकल्स और उसके इफैक्ट्स-
एड्रिनालिन और ऑक्सीटोसिन यह दोनों एक्साइटमेंट लाते हैं। इसमें अपने लवर से मिलने की उत्सुकता, उसे सामने देखकर खुशी का अहसास होना, धड़कन तेज होने जैसे इफैक्ट्स इसी से होते हैं।
साइकोलॉजी ऑफ लव: थ्री स्टेजेस
पार्टनर को इंप्रेस करने की कोशिश , फिर उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखना और आखिरी में ईगो खत्म हो जाना लव की तीन स्टेज हैं। पहली स्टेज में पार्टनर को इंप्रेस करने की भरपूर कोशिश होती है। साइकैट्रिस्ट डॉ.कमलेश उदैनिया कहते हें कि मोटेतौर पर प्यार की तीन स्टेज होती हैं। किशोरावस्था में दोनों की साइकोलॉजी एक दूसरे को इंप्रेस करने की होती है। मैच्योर स्टेज में पार्टनर की पसंद के मुताबिक खुद को ढालने की होती है। जबकि पूरी तरह परिपक्व प्यार एक दूसरे को एक्सेप्ट करने, सर्मपण को तवज्जो देता है।
हो जाते हैं केयरिंग-
लव होते ही फिजिकल बहेवियर भी चेंज हो जाता है। लड़कियां ज्यादा केयरिंग हो जाती हैं जबकि लड़के ज्यादा ग्रेसफुल हो जाते हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार मूड जॉली हो जाता है, सबकुछ खुशनुमा लगने लगता है और आप उसी तरह बिहेव करते हैं। फस्र्ट लव की फीलिंग किसी को एक्साइटिंग या कूल लगती है, तो किसी को थ्रिलिंग। खुद को सुंदर दिखाने की चाह के कारण पर्सनल केयर और मेकअप पर ज्यादा पैसा खर्च होने लगता है। हैबिट्स के मामले में अपने पार्टनर की पसंद के मुताबिक आइडियल बनने की कोशिश करते हैं। देखने का अंदाज, उठने-बैठने का तरीका पार्टनर की पसंद के मुताबिक बदलता जाता है।
… और बैलेंसशीट लड़कियों के फेवर में-
आंखों के रास्ते होता हुआ प्यार आखिर में जेब पर जाकर ठहरता है। अकाउंट्स ऑफ लव की बैलेंसशीट अक्सर लड़कियों के पक्ष में रहती है। खासतौर से जब मौका वैलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे, न्यू ईयर जैसे हों तब तो जेब का ढीला होना लाजिमी है। युवाओं के खर्च का एवरेज निकाला जाए तो मूवी में 300 से 800 रूपए, आउटिंग मे 2000 से 20, 000 ,गिफ्ट में 1 हजार से 50 हजार रूपए तक खर्च हो सकते हैं। लव शो करने में आउटिंग , डेटिंग, पार्टीज और गिफ्ट्स में ज्यादा पैसा खर्च होता है।
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