होलिका जलाएं, मगर वातावरण को तो प्रहलाद बनाएं-
एक दिन बाद होली है। कल पूरे देश में होलिका दहन का त्योहार मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन आप अपनी बुराई को अग्नि में जलाकर राख कर सकते हैं। होलिका दहन में आग जलाते और पूजा करते हैं। जाहिर है लोग होलिका दहन के लिए कई दिनों पहले से लकड़ी इकट्ठी करना शुरू कर देते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि जो भी चीजें, लकड़ी हो या वेस्ट मटेरियल जो आप जलाते हैं वो आपके पर्यावरण को कितना दूषित करता है। आपको बता दें कि जितना धुंआ हफ्तेभर में चलने वाले वाहनों से निकलता है, उससे पांच गुना प्रदूषण होलिका दहन के दिन केवल दो घंटे में फैलता है। विशेषज्ञों यानि पर्यावरणविदों के अनुसार हमें अपनी परंपरा निभाते हुए होलिका दहन तो करना चाहिए लेकिन प्रदलाद यानि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखना चाहिए। जैसे होलिका जलने के बाद भी प्रहलाद सुरक्षित बचे थे, ठीक उसी तरह हमें भी हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखना होगा। कहीं ऐसा न हो कि कलयुग में होलिका को जलाते समय हम अपने प्रहलाद यानि पर्यावरण को भी जला बैठें।
कचरा या प्लास्टिक नहीं, जलाएं सूखी लकड़ी
त्योहार के चलते हम इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाते कि जो लकडिय़ां या कचरा हम होली दहन के लिए जलाते हैं, उससे निकलने वाला धुंआ पर्यावरण के साथ-साथ इंसान की सेहत के लिए भी कितना खतरनाक है। विशेषज्ञों के अनुसार होली के दिन आग जलाकर पूजा करने की परंपरा है, लोग इस परंपरा को पूरी श्रद्धा से निभाते हैं, लेकिन अनजाने में पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा देते हैं। जी हां, लोग लकडिय़ों के साथ-साथ उसमें कूड़ा, कचरा, प्लास्टिक और पॉलिथिन भी जला लेते हैं, लेकिन हमारी राय है कि होलिका दहन के लिए केवल सूखी लकड़ी का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे निकलने वाला धुंआ पर्यावरण को इतना प्रदूषित नहीं करता, जितना की जला हुआ वेस्ट मटेरियल और प्लास्टिक। ड्राई वुड जलाते समय केवल CO2 , NO2, .SO2, VOC आदि गैस निकलती हैं, लेकिन यदि आप होलिका दहन के लिए वेस्ट मटेरियल का उपयोग करते हैं, तो हैवी मेटल, डाईऑक्सिन, और फ्यूरान जैसी खतरनाक गैस कैंसर, अस्थमा और एलर्जी जैसी बीमारियों को बढ़ावा देती हैं।
100 किलो लकड़ी का होता है इस्तेमाल-
एक टैबलॉयड के अनुसार शहरों में होलिका दहन के दिन करीब तीस हजार होलिका जलाई जाती हैं, जिसमें से प्रत्येक होलिका के लिए सौ किलो लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। यानि प्रदूषण में इजाफा जाहिर है। अगर हम अपने पर्यावरण को प्रहलाद बनाना चाहते हैं, तो अलग-अलग होलिका के बजाए एक ही जगह होलिका बनाई जानी चाहिए। जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुंचे।
कंडे जलाना बेहतर विकल्प-
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर शहर का हर व्यक्ति हेलिका दहन के लिए लकड़ी के बजाए गाय के गोबर यानि कंडों का इस्तेमाल करें, तो न केवल पर्यावरण स्वस्थ रहेगा बल्कि आप भी सेहतमंद रहेंगे। पर्यावरणविद डॉ.अनीश पांडे कहते हैं कि गाय के गोबर में कई एंटीबायोटिक मटेरियल होते हैं, जिसके जलने पर न तो पर्यावरण को कोई नुकसान है और न ही व्यक्ति की सेहत पर। जबकि अगर आप कच्ची लकड़ी या कचरा जलाते हैं, तो उसमें मौजूद फ्यूरान और डाइऑक्सिन गैस अस्थमा के साथ कैंसर जैसी बीमारी को भी बढ़ावा देती है। साथ ही इनके जलने से आंखों में एलर्जी होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
अपना सकते हैं ये विकल्प-
– आप होलिका को बड़े आकार का बनाने के लिए जितनी लकडिय़ों का इस्तेमाल करेंगे, प्रदूषण उतना बढ़ेगा साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग भी। बेहतर है कि होलिका का आकार छोटा कर कम लकडिय़ां जलाएं। इससे हम पर्यावरण को ज्यादा दूषित होने से बचा पाएंगे।
– होलिका में कचरा जलाने से अच्छा है कि आप सूखी यानि ड्राई वुड का इस्तेमाल करें। इनके जलने पर निकलने वाली गैस इतनी नुकसानदायक नहीं होती , जितना की प्लास्टिक और कचरे के जलने पर पर्यावरण को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचता है।
– सबसे अच्छा विकल्प है कि लकडिय़ों के बजाए काउ डंग यानि कंडों का इस्तेमाल करें। इनके जलने से पर्यावरण दूषित नहीं बल्कि शुद्ध होता है।
– एक कॉलोनी में अलग-अलग छोटी -छोटी होलिका को जलाने के बजाए मिलकर एक होलिका दहन करें। इससे प्रेमभाव बढ़ेगा साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
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