33 साल पहले आज की ही तारीख 13 अप्रैल को ऑपरेशन मेघदूत का आगाज किया गया था। भारतीय सेना के इस बहुत महत्वपूर्ण ऑपरेशन को शौर्य और पराक्रम की मिसाल के तौर पर देखा जाता है। 1984 में सियाचिन ग्लैशियर को जीतने के उद्देश्य से इस ऑपरेशन को शुरू किया गया था।
और तिरंगा लहराने लगा
सेना का यह ऑपरेशन इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर फतह करने के लिए यह ऑपरेशन किया गया था। सेना की इस कार्रवाई का नतीजा रहा कि पूरे सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा हुआ और सबसे ऊंची चोटी पर भी तिरंगा लहराने लगा।
विश्व का सबसे ऊँचा और ठंडा ग्लैशियर, लेकिन जवान अडिग
ऑपरेशन मेघदूत के 33 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं।
हर साल सर्दियों में जवानों की हो जाती है मौत
विगत वर्ष सियाचिन ग्लेशियर में आए हिमस्खलन में 10 जवानों की मौत हो गई थी। एक ओर जहां पूरा देश चैन की नींद सोता है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना के जवान सियाचिन ग्लेशियर जैसी खतरनाक जगहों पर मुश्तैदी से तैनात रहते हैं. जहां वे तैनात रहते हैं, वहां की हवा आदमखोर कहलाती है। पारा माइनस 50 डिग्री से कम रहता है और यह इस ठण्ड से जूझने वाले सुपरमैन कहलाते हैं। जी हां यही कहानी है सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात रहने वाले भारतीय जवानों की। नेक्स्ट पेज पर – आइए जानते है इन बहादुर जवानों के बारे में जो मौत से जूझते रहते हैं ताकि हम सुरक्षित रह सकें-