बिना फीस भरे MBA कर फरार हुए NRI छात्र
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इंदौर। 19 साल पहले शहर की यूनिवर्सिटी के आईएमएस से एमबीए की पढ़ाई पूरी कर चुके 15 एनआरआई छात्रों ने अबतक यूनिवर्सिटी की फीस का भुगतान नहीं किया है। इसलिए यूनिवर्सिटी ने उनकी मार्कशीट और डिग्री को अपने पास जब्त कर रखा है। लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि उनमें से एक भी छात्र अपनी मार्कशीट और डिग्री लेने के लिए अबतक नहीं आया है। अगर उन एनआरआई छात्रों द्वारा यूनिवर्सिटी की फीस भरी जाती है तो आईएमएस के खजाने में 30 हजार डॉलर (20 लाख रुपये) जमा होंगे।
विशेष अनुमति देकर लागू की थी प्रवेश व्यवस्था
1995 में उस समय के कुलपति डॉ. एके अब्बासी ने विशेष अनुमति देकर एनआरआई कोटे में प्रवेश की नई व्यवस्था लागू की थी। विदेशों में रह रहे छात्रों के परिजन और मित्रों से कोर्स को प्रायोजित करवाया गया था। 1995-97 के सत्र में आईएमएस से संचालित एमबीए फुल टाइम कोर्स के एनआरआई कोटे में 126 छात्रों ने एडमिशन लिया था। तत्कालीन डायरेक्टर डॉ. आरडी पाठक ने इन छात्रों से स्पोंसर्ड लेटर भी जमा करवाए थे। बताया जाता है कि उस दौरान कोर्स में सीधे प्रवेश के लिए यह तरीका निकाला गया था।
तय किया गया पेनल्टी लगाना
एनआरआई कोटे के छात्रों की फीस दो हजार डॉलर रखी गई थी। ऐसे 15 एनआरआई छात्र हैं जिन्होंने अब तक फीस नहीं भरी है। इस लिहाज से 30 हजार डॉलर का नुकसान हुआ है। वर्तमान पैमाने के अनुसार गणना की जाए तो लगभग 20 लाख रुपये इन छात्रों से लेना है। फीस नहीं भरने के बाद विभाग ने इन छात्रों पर पेनल्टी लगाना तय किया था। प्रस्ताव को 1998 में कार्यपरिषद सदस्यों के सामने रखा गया था, जिसमें हर साल एक हजार रुपये पेनल्टी लगाने पर सहमति दी गई। इस लिहाज से फीस के अलावा हर छात्र पर 19 हजार रुपये पेनल्टी हो चुकी है।
बदल दिया नियम
एनआरआई कोटे में अनियमितताएं सामने आने के बाद आईएमएस ने नियम बदल दिया। पहले एनआरआई के परिजन और मित्र कोर्स को प्रायोजित करते थे। अब प्रवेश के लिए रक्त संबंधी ही प्रायोजित कर सकता है। इसके चलते अब कोर्स में बहुत ही कम एडमिशन हो रहे हैं।
खुद को कहलवाना चाहते थे एमबीए
1998 में तत्कालीन कुलपति डॉ. भरत छपरवाल ने मार्कशीट जारी करने पर रोक लगा थी। बाद में छात्रों को कोर्स में पास का प्रमाण-पत्र दिया गया। यह पत्र तत्कालीन डायरेक्टर डॉ. पाठक ने जारी किया था। इसके चलते कई छात्रों को मार्कशीट की जरूरत महसूस नहीं हुई। एनआरआई कोटे का रास्ता कोर्स में सीधे प्रवेश के लिए निकाला गया था। इसका ज्यादातर फायदा कारोबारी परिवार के बच्चों ने उठाया, जिन्हें नौकरी की जरूरत नहीं थी। विभागीय लोगों के मुताबिक उन्हें डिग्री और मार्कशीट की ज्यादा जरूरत नहीं थी। वे बस खुद को एमबीए कहलवाना चाहते थे।
एनआरआई कोटे के कुछ छात्रों ने फीस जमा नहीं की। 1995 की बैच वाले छात्रों की लिस्ट बनाकर यूनिवर्सिटी प्रशासन को दे चुके हैं। मार्कशीट रोकी गई है। अब दोबारा इन से फीस वसूलने की कार्रवाई की जाएगी।
-डॉ. पीएन मिश्रा, डायरेक्टर, आईएमएस
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