Thursday, August 31st, 2017
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3 Idiots के असली फुनसुक वांगडू, फेल छात्र भी इनसे पढ़कर बनते हैं वैज्ञानिक




श्रीनगर। फिल्म 3 इडियट्स में आमिर खान का वास्तविक नाम फुनसुक वांगडू था। लद्दाख में रहकर वे बच्चों को पढ़ा रहे थे, लेकिन यही काम सोनम वांगचुक वर्षों से कर रहे हैं। बर्फीले रेगिस्तान में वे बच्चों के लिए शिक्षा में सुधार का बीड़ा उठाए हुए हैं। इस दुर्गम इलाके में सोनम और उनके साथियों ने 1988 में एक अभियान खड़ा कर दिया था, जिसे स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख यानी सेकमॉल कहा जाता है। सर्वशिक्षा अभियान से दस साल पहले उनका अभियान शुरू हो चुका था। इसमें वे छात्र आते हैं, जिन्हें सरकार फेल कर देती है। ये आगे जाकर वैज्ञानिक, कारोबारी बने हैं। सैकड़ों विद्यार्थी बड़े ओहदों पर पहुंचे हैं।

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वांगचुक कहते हैं इंजीनियरिंग मेरा शौक है और अब हम वैकल्पिक विश्वविद्यालय पर काम कर रहे हैं। इसमें बच्चे हाथ से काम करके सीख रहे हैं। इसके प्लानिंग वर्कशॉप काम कर रहे हैं। यहां कोई फीस नहीं होगी, शिक्षा मुफ्त होगी।

 

एक अवॉर्ड फंक्शन में मिले थे आमिर से

वे बताते हैं कि 2008 की बात है। 3 इडियट्स फिल्म की शूटिंग शुरू होने से चार माह पहले वे आमिर से मुंबई में एक अवॉर्ड फंक्शन में मिले थे। वहां वांगचुक के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई गई थी। वे कहते हैं कि आमिर खान का किरदार मुझसे प्रेरित नहीं था, लेकिन मेरे जीवन से उनका किरदार पूरी तरह से प्रभावित जरूर लगता है।

 

लेह का पहला कोचिंग सेंटर खोला

इंजीनियरिंग करने के दौरान पिता से विवाद हुआ। वे मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहते थे, पिता चाहते थे सिविल इंजीनियरिंग करें। इस कारण उन्हें घर से निकलना पड़ा। चूंकि साइंस और मैथ्स जानते थे, तो लेह का पहला कोचिंग सेंटर खोला। दो माह में ही चार साल का पढ़ाई का खर्च निकल गया, लेकिन उससे बड़ा परिवर्तन आया। लगा कि कैसे होनहार होने पर भी बच्चों को स्कूल में फेल कर दिया जाता है। तब से वे शिक्षा सुधार के लिए काम करने लगे। इस दुर्गम इलाके में सोनम और उनके साथियों ने 1988 में एक अभियान खड़ा कर दिया था, जिसे स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख यानी सेकमॉल कहा जाता है। सर्वशिक्षा अभियान से दस साल पहले उनका अभियान शुरू हो चुका था।

 

बर्फ के स्तूप बनाए

वे पीने के पानी और खेती के लिए भी अपने स्टूडेंट्स के साथ अभियान चलाए हुए हैं। लद्दाख में खेती और वृक्षारोपण के लिए वांगचुक ने एक तरीका और निकाला। इसमें स्थानीय लोगों से कहा कि वे बर्फ के स्तूप बनाए, जो 40 मीटर तक ऊंचे रहे। इस तरह के एक स्तूप से 10 हैक्टेयर जमीन को सिंचित किया जाता है। करीब 1 करोड़ 60 लाख लीटर पानी की व्यवस्था एक स्तूप से होती है। उन्होंने लद्दाख में इस तरह के स्तूप का पायलट बना रखा है। अगले साल करीब 90 ऐसे स्तूप और बनाए जाएंगे। सर्दियों में बनाए स्तूपों का बर्फ जून तक बना रहेगा।
इसकी प्रेरणा उनको चेवांग नॉर्फेल द्वारा बनाए गए कृत्रिम ग्लेशियर्स से मिली। उनका फाउंडेशन लेह से 18 किमी दूर है, लेकिन फिर भी वे पूरे इलाके में सक्रिय रहते हैं। आठ हजार से ज्यादा पेड़ और बगीचे वे इस रेगिस्तान में लगा चुके हैं। उनके फाउंडेशन एवं वैकल्पिक विद्यालय को पूरी तरह से उन्होंने सोलर पावर से रोशन कर रखा है। टीवी, कंप्यूटर और तमाम चीजें इसी से चलती हैं।

 

खास बातें

जन्म- 1 सिंतबर 1966
शिक्षा- एनआईटी श्रीनगर से इंजीनियरिंग की
पिता- सोनम वांग्याल, मां- शेरिंग
क्यों चर्चा में- लद्दाख में लोगों को खेती में मदद के लिए बनाए उनके स्तूप अभी भी है।

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