कभी फुटपाथ पर बीनती थी कचरा, आज बनी अखबार की नन्ही संपादक
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फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे भी भला किसी मीटिंग में बिजी हो सकते हैं? सुनने में थोड़ा अजीब लगता है। बात जब अखबार की एडिटोरियल मीटिंग की हो तब तो ये और भी अजीब हो जाता है। भले ही ये कितना भी अजीब लगे, है तो सच ही। जी हां… आपको सुनकर शायद यकीन नहीं होगा कि 18 साल की कोई लड़की किसी अखबार की संपादक हो सकती है और फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे उसकी टीम के रिपोर्टर।
फुटपाथ की जिंदगी को उजागर करता अखबार
फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की एक टीम दिल्ली से 8 पेज का एक अखबार ’बालकनामा’ निकालती है। 18 साल की चांदनी इस अखबार की संपादक है। एक साल पहले चांदनी के संपादक बनने के बाद अखबार का सर्कुलेशन 4000 से बढ़कर 5500 हो चुका है। खास बात तो ये है कि फुटपाथ पर रहने वाले 14 बच्चों की टीम वाला ये अखबार हर तीन महीने पर निकला जाता है और इसमें मुख्य तौर पर फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की जिंदगी के बारे में ही लिखा जाता है।
’चेतना’ ने दिया आसरा
अखबार के सभी रिपोर्टर ऐसे बच्चे हैं जो कभी फुटपाथ पर रहा करते थे या फिर दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में बाल मजदूरी किया करते थे। इन बच्चों को चेतना नाम के एक गैर-सरकारी संगठन ने संरक्षण दे रखा है। यह संगठन फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास पर काम करता है।
करतब दिखाने से लेकर संपादक तक
चांदनी की कहानी तंगी की मार झेल रही एक लड़की की कहानी है। जो कि अपने परिवार की मदद करने के लिए फुटपाथ पर अपने पिता के साथ करतब दिखाया करती थी। इसके अलावा वो कूड़ा बीनने तक का काम कर चुकी है।
गैर-सरकारी संगठन चेतना ने उन्हें स्कूल जाने में मदद की और स्कॉलरशिप देना भी शुरु किया ताकि उसे दोबार कूड़ा बीनने का काम नहीं करना पड़े। चांदनी के साथ आए सभी बच्चों को एक रिपोर्टर की भी ट्रैनिंग दी गई।
चांदनी का कहना है, ’मैं इस अखबार का संपादन करने में गर्व महसूस करती हूं क्योंकि यह अखबार भारत में अपने आप में एक अलग तरह का अखबार है। ऐसे बच्चे जिनका बचपन लुट चुका है, जो भूखे हैं, जो भीख मांगते हैं, जो प्रताड़ना के शिकार हैं और मजदूरी करने पर मजबूर हैं, वे अपने जैसे ही दूसरे बच्चों के बारे में इसमें लिखते हैं। यह केवल एक मरहम भर नहीं है बल्कि यह हमें एक मकसद का एहसास देता है।’
चांदनी 14 रिपोर्टरों का ब्यूरो संभालती हैं। ये रिपोर्टर दिल्ली और पड़ोसी राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में रिपोर्टिंग करते हैं। अधिकतर रिपोर्टर अपनी रिपोर्ट फोन पर दिल्ली दफ्तर में अपने सहयोगियों को सुनाते हैं क्योंकि अक्सर उनके पास ईमेल या फैक्स की सुविधा नहीं होती है। चांदनी हर दो महीने में एडिटोरियल मीटिंग रखती है ताकि अखबार के सामाग्री पर नजर रखी जा सके।
Source : BBC.com
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