बसंत पंचमी: लो आ गई है ऋतुओं की रानी…
देखो नभ में उड़ते पतंग
भरते नील गगन में रंग
देखो ये बसंत मस्तानी
आ गई है ऋतुओं की रानी…
इन्हीं पंक्तियों के साथ बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है और शरद ऋतु की विदाई भी। इस मौसम में अब सरसों के पीले फूलों से लहलाते खेत, खेत में खिलती हुई गेहूं की बालियां, आमों के पेड़ पर आ चुके बोर और हरियाली का वातावरण, हर तरफ मंडराती रंग-बिरंगी तितलियों और भंवरों को फूलों पर मंडराते देखा जा सकता है। मधुमास का यह मौसम बुहत ही मनभावन और शांतिदायक होता है। इसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। सभी गीतों मे मदमस्त होकर झूमने लगते हैं। मानव तो क्या पशु-पक्षी भी उल्लास से भर जाते हैं। यूं तो माघ का पूरा महीना ही उत्सव देने वाला होता है, लेकिन बसंत पंचमी का पर्व लोगों को अनेक तरह से प्रभावित करता है।
प्राचीन काल से ही इसे ज्ञान को कला की देवी मां सरस्वती का दिन माना जाता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा विद्या की देवी के रूप में होती है। कहते हैं मधुर वाणी से युक्त व्यक्ति पर सरस्वती की कृपा होती है और उनकी कृपा से ही कोई मनुष्य संगीत का ज्ञाता बन सकता है। यही वजह है कि इस दिन संगीत से प्रेम करने वाले संगीतज्ञ भी मां सरस्वती की उपासना कर आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। इस दिन सफेद या पीले कपड़े पहनकर सरस्वती का पूजन करने का विधान है। इसी के साथ मां सरस्वती के नैवेद्य के रूप में खीर को केसरिया चावल बनाने की भी परंपरा भारत के कई क्षेत्रो में निभाई जाती है।
नौनिहालों की शिक्षा आरंभ का दिन-
बसंत पंचमी को खासतौर से नौनिहालों की शिक्षा आरंभ करने का शुभ दिन माना जाता है। इसलिए इस दिान खासतौर से नौनिहालों को शिक्षा देना शुरू किया जाता है और उन्हें पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिक्षा की शुरूआत करने से विद्या की देवी सरस्वती का आर्शीवाद बना रहता है और बच्चा बुद्धिमान और कलात्मक कामों में हमेशा सफलता पाता है।
पौराणिक महत्व –
इसके साथ ही ये पर्व हमें अतीत की अनेक घटनाओं की भी याद दिलाता है। जिसमें एक घटना श्रीराम से जुड़ी है। जब रावण ने सीता का हरण कर लिया था, तो श्रीराम सीता की खोज के लिए दक्षिण की तरफ बढ़े। इनमें जिन स्थानों पर वे गए इनमे दंडकारण्य भी था, जहां शबरी रहती थी। श्रीराम उसकी कुटिया में क्या पहुंचे तो वो सुध-बुध ही खो बैठी और चख-चख कर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। बसंत पंचमी के दिन ही श्रीरामजी वहां गए थे। इसी घटना को याद करते हुए भी बसंत पंचमी मनाई जाती है। हर कोई बहुत मजे और उत्साह के साथ इस त्योहार का आनंद लेता है।
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