…तो इसलिए मनाई जाती है महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि का महा उत्सव फाल्गुन मास की त्रियोदशी के दिन मनाया जाता है। मान्यता है की महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर ही भोलेनाथ और माता पार्वती विवाह के पावन सूत्र में बंधे थे, कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि इस दिन महादेव ने कालकूट नाम का विष पान कर अपने कंठ में रख लिया था। कहा जाता है कि यह विष सागर मंथन में निकला था।
शिवरात्रि के ही दिन बहुत समय पहले एक शिकारी को दर्शन देकर उसे पापों से मुक्त किया था। महाशिवरात्रि के इस पवित्र अवसर से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। प्राचीन काल में, एक जंगल में गुरूद्रूह नाम के एक शिकारी रहते थे जो जंगली जानवरों के शिकार करके अपने परिवार का पालन-पोषण किया करते थे। एक बार शिवरात्रि के दिन ही जब वह शिकार के लिए गया, तब संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई जानवर शिकार के लिए न मिला, चिंतित हो कर कि आज उसके बच्चों, पत्नी एवं माता-पिता को भूखा रहना पडे़गा, वह सूर्यास्त होने पर भी एक जलाशय के समीप गया और वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर अपने साथ थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहां ज़रूर आयेगा। वह पेड़ “बेल-पत्र“ का था और इसके नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढक जाने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था।
रात का पहला प्रहर बीतने से पहले ही एक हिरणी वहां पर पानी पीने के लिए आई। उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा। ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे पे़ड के नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गई। हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो उसने घबरा कर ऊपर की ओर देखा और भयभीत होकर शिकारी से कांपते हुए बोली- “मुझे मत मारो।“ शिकारी ने कहा कि वह और उसका परिवार भूखा है इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता। हिरणी ने शपथ ली कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी। तब वह उसका शिकार कर ले। शिकारी को उसकी बात का विश्वास नहीं हो रहा था। उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए अपनी बात का भरोसा करवाया कि सत्य पर ही धरती टिकी है। समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है। शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने “जल्दी लौटना“ कहकर ,उस हिरनी को जाने दिया।
थोड़ी ही देर गुजरी कि एक और हिरनी वहां पानी पीने आई, शिकारी सावधान हो, तीर साधने लगा और ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोड़ा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गई। इस हिरनी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर, हिरनी ने उसे लौट आने का वचन, यह कहते हुए दिया कि उसे ज्ञात है कि जो वचन दे कर पलट जाता है, उसका अपने जीवन में संचित पुण्य नष्ट हो जाया करता है। उस शिकारी ने पहले की तरह, इस हिरनी के वचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया। अब तो वह इसी चिंता से व्याकुल हो रहा था कि उन में से शायद ही कोई हिरनी लौट के आये और अब उसके परिवार का क्या होगा। इतने में ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे देखकर शिकारी को बड़ा हर्ष हुआ, अब फिर धनुष पर बाण चढ़ाने से उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गई लेकिन पत्तों के गिरने की आवाज़ से वह हिरन सावधान हो गया। उसने शिकारी को देखा और पूछा क्या करना चाहते हो। वह बोला-अपने कुटुंब को भोजन देने के लिए तुम्हारा वध करूंगा। वह मृग प्रसन्न हो कर कहने लगा कि मैं धन्य हूं कि मेरा ये ह्वष्ट-पुष्ट शरीर किसी के काम आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा लेकिन एक बार मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सबको धीरज बंधा कर यहां लौट आऊं।
शिकारी का ह्दय, उसके पापपुंज नष्ट हो जाने से अब तक शुद्ध हो गया था इसलिए वह कुछ विनम्र वाणी में बोला कि जो-जो यहां आये, सभी बातें बनाकर चले गये और अब तक नहीं लौटे, यदि तुम भी झूठ बोलकर चले जाओगे, तो मेरे परिजनों का क्या होगा। अब हिरन ने यह कहते हुए उसे अपने सत्य बोलने का भरोसा दिलवाया कि यदि वह लौटकर न आये; तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करता। शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने दिया कि “शीघ्र लौट आना।“ रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस शिकारी के हर्ष की सीमा न थी क्योंकि उसने उन सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एकसाथ आते देख लिया था। उन्हें देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो गई अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप भस्म हो गये इसलिए वह सोचने लगा, “ओह, ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने कुटुंब का पालन करता रहा। अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा सब मृगों को यह कहकर कि “वे धन्य हैं“। वापिस जाने दिया। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर ’गुह’ नाम प्रदान किया। यह वही गुह थे जिनके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी। अतः यह भी माना जाता है कि, शिवरात्री के दिन व्रत करने से सारे पाप से मुक्त हो जाते है और महादेव का दर्शन कर स्वर्ग को प्राप्त होते हैं।
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