कहते हैं कला की कोई उम्र नहीं होती और कलाकार अपनी कला से जाने जाते हैं उम्र से नहीं। फिल्म जगत के जाने-माने गीतकार गुलज़ार भी ऐसे ही कलाकार हैं। आज उन्होंने अपनी जिंदगी के 81 साल पूरे कर लिए हैं लेकिन अपनी कला से वे आज भी युवा हैं। भावनाओं को समझकर, महसूस करके, उसे शब्दों में उतारना शायद उनसे बेहतर कोई नहीं जानता।
दीना की गलियों में बीता बचपन
गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त 1934 में भारत के झेलम जिला पंजाब के दीना गांव में हुआ, जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है। मां उन्हें बचपन में ही छोड़कर चल बसीं और पिता का दुलार भी उन्हें न मिल सका। वे अपने माता-पिता की 9 संतानों में से चौथी संतान थे। बंटवारे के बाद उनका परिवार अमृतसर आकर बस गया और गुलज़ार मुंबई चले गए। वहां वर्ली के एक गेरेज में वे मैकेनिक की नौकरी करने लगे और खाली समय में कविताएं लिखने लगे। फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम शुरू किया। बिमल राय की बंदिनी के लिए गुलज़ार ने अपना पहला गाना लिखा।
भारत-पाक बंटवारा बना लेखनी का अहम हिस्सा
जब गुलज़ार महज 11 साल के थे तब दोनों देशों के हालात बिगड़े जिसका अंजाम हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में देखने को मिला। एक बार उन्होंने कहा था कि “विभाजन मेरी लेखनी का बहुत अहम हिस्सा है क्योंकि बहुत शुरूआती जिंदगी में वो दौर देखा और उसका असर आज तक है। आज भी कहीं सांप्रदायिक दंगे देखता हूं तो मुझे विभाजन की ही याद आती है और उससे तकलीफ होती है।”
कई सम्मानों ने नवाजे गए गुलजार
गुलज़ार को 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2009 में डैनी बॉयल के निर्देशन में बनी ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में उनके द्वारा लिखे गए गीत ‘जय हो’ के लिए उन्हें ऑस्कर अवॉर्ड भी मिला है। ये गाना इतना पॉपुलर हुआ था कि इसके लिए उन्हें ग्रैमी अवॉर्ड भी मिल चुका है।
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