Sunday, September 10th, 2017 03:14:18
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एक ऐसी लोक परंपरा, जहाँ पुरुष बनते हैं महिला




एक ऐसी लोक परंपरा, जहाँ पुरुष बनते हैं महिलाArt & Culture

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उदयपुर में मेवाड़ और वागड़ के जनजाति क्षेत्र में, लोक नृत्य गवरी आस्था का प्रतीक माना जाता है और शिव व शक्ति की आराधना का प्रचलित स्वरुप है। यह लोक नृत्य राखी के दूसरे दिन प्रारम्भ होता है और करीब 40 दिन तक चलता है। भील आदिवासियों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक प्रसिद्ध लोक नृत्य नाटिका है। देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गवरी नृत्य एक वृत्त बनाकर और समूह में किया जाता है। इसके प्रमुख पात्र राई और बुढिया होते हैं। राई शक्ति पार्वती और बुढिया शिव का प्रतीक है।

इस नृत्य के माध्यम से विभिन्न कथाएं प्रस्तुत की जाती है। प्रतिवर्ष गांव के लोग गवरी नृत्य का संकल्प करते हैं। अलग-अलग गांवों में इसका मंचन होता है। नृत्य में एक भी महिला कलाकार नहीं होती। महिला का किरदार निभाने के लिए, पुरुष ही महिलाओं की  वेशभूषा धारण करते हैं। गवरी के मुख्य खेलों में मीणा-बंजारा, हठिया, कालका, कान्ह-गूजरी, शंकरिया, दाणी जी, बाणियां, चपल्याचोर, देवी अंबाव, कंजर, खेतुड़ी, बादशाह की सवारी जैसे कई खेल अत्यंत आकर्षक व मनोरंजक होते हैं। भमरा-भवरी, कियावड अम्बाव, कालुकिर, गोमा मीणा, कृष्ण लीला, रेबारी, वरजु काजरी, बंजारा मीणा, नाई दाणी के विभिन्न शिव-पार्वती के रूप में वेशभूषा धारण कर गवरी खेली जाती है।            

इसका आयोजन उदयपुर और राजसमन्द जिले में मुख्य रूप से होता है। इस खेल का उद्धव स्थल उदयपुर ही माना जाता है। आदिवासी भील जनजाति, इस जिले में बहुतायत से पाई जाती है। इस नृत्य का प्रचलन डूंगरपुर, भीलवाड़ा, उदयपुर व सिरोही आदि क्षेत्रों में प्रमुखता से देखने मिलता है। यह गौरी पूजा से सम्बंधित है। इसमें नाटकों के सदृश वेशभूषा होती है तथा अलग-अलग पात्र होते हैं।

आज के समय में लोक परम्पराओं को लोगों द्वारा भुला दिए जाने के कारन गवरी नृत्य ने अपनी लोकप्रियता खो दी थी लेकिन इस आदिवासी लोक परंपरा गवरी की पहचान देश-दुनिया में बनाने के लिए एवं’ फिर से मशहूर करने के लिए प्रशासन ने री-डिस्कवरिंग गवरी प्रोजेक्ट चलाया था, यूनेस्को के आईसीएचसीएपी के साथ प्रशासन, टीआरआई ने री-डिस्कवरिंग गवरी प्रोजेक्ट शुरू किया था। प्रथम चरण में गवरी के दलों को चिह्नित किया था जो शहरों में गवरी का मंचन करते थे। संगठन की मदद से प्रशासन ने एक वेबपोर्टल भी बनाया था, जिस पर गवरी लोक परंपरा और लोक नृत्य, गवरी करने वाले दलों, गवरी की खासियत सहित विस्तृत जानकारी और गवरी के फोटो उपलब्ध किए थे।

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