कॉमन सिविल कोड से इतनी घबराहट क्यों?
जब से तीन तलाक का मुद्दा सामने आया है मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू लॉ और कॉमन सिविल कोड को लेकर बड़ी बहस शुरू हो गई है। मुद्दे की शुरूआत मुस्लिम पर्सनल लॉ से हुई। कॉमन सिविल कोड बनाने पर जोर हुआ जो हिंदू पर्सनल लॉ तक पहुंच कर एक दूजे पर छींटाकशी तक पहुंच गया। बहस या विरोध इस बात पर नहीं हो रहा है कि क्या सही है और क्या गलत है। बहस यहां चल रही है कि कोई किसी के पर्सनल लॉ में दखलंदाजी ना दे। यहां सभी को जीने का हक है अपने-अपने ढंग से।
बात गौण हो गई उन महिलाओं द्वारा आवाज़ उठाने की जिसमें तीन तलाक पर आपत्ति ली गई थी। कोर्ट में केस लगा है किंतु हर बात कोर्ट से तय नहीं होती। यह कोर्ट की मजबूरी कह लो क्योंकि उसे तो वही करना होता है जो कानून की भाषा में लिखा होता है। जब कानून में स्पष्टता नहीं हो तो वो भी क्या कर सकता है। बात पहुंची जनता के दरबार में। हर धर्म का अपना सुर, सरकार का अपना सुर। सरकार भी वह जो जनता का कम किसी धर्म का विशेष प्रतिनिधित्व करती है। यही वजह है कि दूसरे धर्म का विश्वास कम हो जाता है। भले ही वह बात पते की करे। यह सब सिर्फ़ पर्सनल लॉ पर बहस में नहीं आ रही है। ये बात फिर चाहे हम धर्म की करें, भाषा की करें या संस्कृति की करें। सब तरफ बात यही उठती है। हर मुद्दे पर बात ’सही-गलत’ या ’क्या ठीक है’ पर नहीं बल्कि कहीं अपनी भाषा ही नहीं खत्म हो जाए, अपनी संस्कृति ही नष्ट हो जाए, कहीं अपनी जगह की पहचान ही नहीं खत्म हो जाए। अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए गलत को भी सतत चलने देते हैं फिर चाहे सभी परेशान क्यों न हो जाएं।
हर देश में समय के साथ बदलाव होते रहते हैं। वहां की सभ्यताएं, परंपराएं बनती-बिगड़ती रहती है। वहां अधिकांश जगहों पर एक ही प्रकार के लोग ज्यादा रहते हैं तो वहां इस प्रकार के अवरोध कम रहते हैं। जो भी तय होता है उसमें ज्यादा रुकावटें नहीं आती हैं। हमारे यहां हम समयानुसार बदलाव पर बहस ही नहीं करते या करते भी हैं तो धर्म, राजनीति के चलते बात कहीं और पहुंच कर बंद हो जाती है। यदि बदलाव पर स्वस्थ्य बहस करें तो हर वर्ग विशेष खुशहाल रहेगा। एक स्वस्थ्य भारत का निर्माण होगा। अन्य देशों की तुलना में हमारे देश की स्थिति-परिस्थिति अलग है। यहां इतने प्रकार के अलग-अलग धर्म-जाति-भाषा के लोग होते हैं जितने शायद ही किसी देश में हों। उनके अपने-अपने उसूल हैं। देश का कानून अलग, अपना-अपना कानून अलग। कई राजा-महाराजा आए, कई सरकारें आईं। उनके सबके अपने कानून व्यवस्था, कईयों ने कई संस्कृति, सभ्यताएं मिटाने की कोशिश की। फिर भी लोगों ने मिलजुल कर उन सबका सामना किया। यही इस देश की, यहां के लोगों की विशेषता है ’अनेकता में एकता’। यह स्लोगन इस देश के लिए एकदम फिट बैठता है। किंतु तकलीफ़ इस देश में धर्म, भाषा, संस्कृति सभी को लेकर राजनीति की है, जिसके चलते हम आपस में ही उलझकर रह जाते हैं।
अब बात हम कॉमन सिविल कोड की करें, भाषा की करें, संस्कृति की करें तो वह भी इसी स्लोगन पर आधारित होनी चाहिए ’अनेकता में एकता’। एक ऐसा कानून जिसमें मानवतावादी दृष्टिकोण हो, देश के समग्र विकास की बात हो, देशवासियों के समग्र उत्थान की बात हो साथ ही अलग-अलग भाषा, प्रांत, धर्म का भी उचित स्थान व सम्मान होना चाहिए। इसके लिए सभी को मिले-जुले प्रयास करने होंगे। जो उचित भी है। सभी को इससे इतना घबराना नहीं चाहिए। मंथन तो समय-समय पर जरूरी ही होता है। तभी वो हमेशा तरोताज़ा और समयानुसार बदलकर सभी के फायदे का बन सकता है। क्योंकि हमारे यहां एक ही पर्सनल लॉ में अलग-अलग स्थानों पर अलग बात चलन में रहती है फिर चाहे वो किसी भी धर्म विशेष की क्यों न हो। अतः ’अनेकता में एकता’ को आधार बना कर ही हम यहां सफल हो सकते हैं।