विज्ञान ही नहीं संगीत में भी राजा रमन्न ने हासिल की थी महारथ
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देश के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिकों में से एक राजा रमन्न बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जो अपने देश में रहकर स्वदेश के लिए काम करने पर विश्वास करते थे। इनका जन्म 28 जनवरी 1925 तिप्तुर, कर्नाटक में हुआ था। मैसूर के महाराज बालक रमन्न के संगीत से बड़ा प्रभावित थे। बालक रमन्न की रचनात्मकता के प्रेमी भी थे।इस बात का ज़िक्र उनकी बायोग्राफ़ी ’’ईयर ऑफ़ पिलग्रिमेज़ एन ऑटोबायोग्राफी’’ में विस्तार से बताया गया है।
सादा जीवन उच्च विचार वाले व्यक्ति रमन्न ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ’बिशन कॉटन बॉयज़ स्कूल’ बैगलुरू से की थी। मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज़ से ग्रेजुएशन कर मुम्बई युनिवर्सिटी से पी जी के बाद वे पीएचडी के लिए लंदन चले गए। जहां अपनी पढ़ाई पूरी कर वे भारत आ गए। रमन्न पढ़ाई पूरी कर आसानी से किसी सम्पन्न देश में बस सकते थे लेकिन, उनकी देशभक्ति के आगे विदेशों की चमक फी़की थी।
सन् 1990 में राजा रमन्न को राज्य का रक्षा मंत्री बनाया गया। 1997 से लेकर 2003 तक वे राज्य सभा के सदस्य भी बने। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मुम्बई से जुड़े रहे। उसके बाद 2000 में उन्हें नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ बैगलूरू का पहला र्निदेशक बनाया गया।
रमन्न एक भारतीय परमाणु वैज्ञानिक थे जिन्होंने भारत के परमाणु विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही। रमन्न लगभग 4 दशक तक भारत के परमाणु कार्यक्रम का संचालन किया और हमें परमाणु बम जैसा वरदान दिया। जिस कारण उन्हे परमाणु का जनक कहा जाने लगा। वे युवा प्रोत्साहन और रचनात्मकता को हमेशा प्राथमिकता देते थे। हर स्तर पर सृजनात्मकता को बढ़ावा देने में अग्रसर रहते थे। रमन्न को 1963 में विज्ञान और प्रोद्योगिक के क्षेत्र में शांति स्वरूप पुरस्कार प्राप्त हुआ। रमन्न को 1968 में पद्मश्री ,1973 में पद्मभूषण और 1976 में पद्मविभूषण प्राप्त हुआ। 24 सितंबर 2004 को उनका निधन हो गया वह हमारे बीच भले ही न रहे हो लेकिन उनका योगदान हमारे लिये वाकई आज वरदान साबित हो रहा है।
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