नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 10 दिनों के लिए विपश्यना के सत्र में शामिल होने के लिए हिमाचल जा रहे हैं। जब वे हिमाचल में होंगे तब न तो वे अखबार पढ़ सकेंगे और न ही टीवी देख सकेंगे। आपको बता दें कि इससे लगभग डेढ़ साल पहले विपश्यना पर गए थे। मई 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के बाद वह विपश्यना पर गए थे। केजरीवाल लंबे समय से विपश्यना करते आ रहे हैं। अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि ये विपश्यना क्या बला है। तो आइए हम आपको बताते हैं क्या होती है विपश्यना और क्या हैं इसके फायदे-
क्या है विपश्यना
विपश्यना आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि की अत्यंत पुरातन साधना-विधि है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देखना-समझना विपश्यना है। लगभग 2500 वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुनः अनुसंधान कर इसे सार्वजनीन रोग के सार्वजनीन इलाज, जीवन जीने की कला, के रूप में सर्वसुलभ बनाया। इस साधना का उद्देश्य केवल शारीरिक रोगों को नहीं बल्कि मानव मात्र के सभी दुखों को दूर करना है।
शिविर में सिखाई जाती है विपश्यना साधना
विपश्यना दस-दिवसीय आवासी शिविरों में सिखायी जाती है। शिविरार्थियों को अनुशासन संहिता, का पालन करना होता है एवं विधि को सीख कर इतना अभ्यास करना होता है जिससे कि वे लाभान्वित हो सके। शिविर में गंभीरता से काम करना होता है। प्रशिक्षण के तीन सोपान होते हैं।
पहला सोपान – साधक पांच शील पालन करने का व्रत लेते हैं अर्थात् जीव-हिंसा, चोरी, झूठ बोलना, अब्रह्मचर्य तथा नशे-पते के सेवन से दूर रहना। इन शीलों का पालन करने से मन इतना शांत हो जाता है कि आगे का काम करना सरल हो जाता है।
दूसरा सोपान – नासिका से आते-जाते हुए अपने नैसर्गिक सांस पर ध्यान केंद्रित कर आनापान नाम की साधना का अभ्यास करना। चौथे दिन तक मन कुछ शांत होता है, एकाग्र होता है एवं विपश्यना के अभ्यास के लायक होता है।
तीसरा सोपान – अपनी काया के भीतर संवेदनाओं के प्रति सजग रहना, उनके सही स्वभाव को समझना एवं उनके प्रति समता रखना। शिविरार्थी दसवें दिन मंगल-मैत्री का अभ्यास सीखते हैं एवं शिविर-काल में अर्जित पुण्य का भागीदार सभी प्राणियों को बनाया जाता है।
क्या होता है लाभ
यह साधना मन का व्यायाम है। जैसे शारीरिक व्यायाम से शरीर को स्वस्थ बनाया जाता है वैसे ही विपश्यना से मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है। विपश्यना के निरंतर अभ्यास से ही अच्छे परिणाम आते हैं। सारी समस्याओं का समाधान दस दिन में ही हो जायेगा ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। दस दिन में साधना की रूपरेखा समझ में आती है जिससे की विपश्यना जीवन में उतारने का काम शुरू हो सके। जितना जितना अभ्यास बढ़ेगा, उतना उतना दुखों से छुटकारा मिलता चला जाएगा और उतना साधक परममुक्ति के अंतिम लक्ष्य के करीब चलता जायेगा। दस दिन में ही ऐसे अच्छे परिणाम जरूर आयेंगे जिससे जीवन में प्रत्यक्ष लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
दान से चलते हैं विपश्यना शिविर
साधना विधि का सही लाभ मिलें इसलिए आवश्यक है कि साधना का प्रसार शुद्ध रूप में हो। यह विधि व्यापारीकरण से सर्वथा दूर है एवं प्रशिक्षण देने वाले आचार्यों को इससे कोई भी आर्थिक अथवा भौतिक लाभ नहीं मिलता है। शिविरों का संचालन स्वैच्छिक दान से होता है। रहने एवं खाने का भी शुल्क किसी से नहीं लिया जाता। शिविरों का पूरा खर्च उन साधकों के दान से चलता है जो पहले किसी शिविर से लाभान्वित होकर दान देकर बाद में आने वाले साधकों को लाभान्वित करना चाहते हैं।