आपकी कोई कीमती चीज़ खो जाए तो क्या आप उसे ढूंढ पाएंगे। अगर वो चीज़ छोटी सी है तो उसका मिलना मुश्किल है वहीं अगर वो कोई बड़ी चीज़ है तो हो सकता है वो आसानी से मिल जाए। यहां वैज्ञानिकों ने एक खोए हुए महाद्वीप को ढूंढ निकाला है। बताया जा रहा है कि हिंद महासागरीय द्वीप मारीशस के नीचे एक ‘खोए हुए महाद्वीप’ की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसारे हिंद महासागरी द्वीप मारीशस के नीचे एक खोए हुए महाद्वीप की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है। जो सुपर महाद्वीप गोंडवाना के टूटने के बाद संभवतः वहां बचा रह गया था। बताया जा रहा है कि इसके टूटने की प्रक्रिया करीब 20 करोड़ साल पहले शुरू हुई थी।
इस द्वीपीय टुकड़े को बाद में द्वीप पर हुए ज्वालामुखी विस्फोटों से निकले लावा ने ढक लिया और जान पड़ता है कि यह उस प्राचीन महाद्वीप का छोटा हिस्सा है जो मैडागास्कर द्वीप से टूट कर बना होगा । यह घटना उस समय की बतायी जाती है जब अफ्रीका, भारत, आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका अलग हुए और हिंद महासागर बना ।
दक्षिण अफ्रीका में यूनिवर्सिटी आफ विटवाटर्सरेंड के प्रोफेसर लेविस ऐशवाल ने बताया,‘‘ हम महाद्वीपों के टूटने की प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे हैं ताकि ग्रह के भूगर्भीय इतिहास को समझ सकें ।’’ ज्वालामुखी विस्फोटों से निकले लावे से बनी चट्टानों में मिले खनिज जिरकन का अध्ययन करते हुए ऐशवाल और उनके सहयोगियों ने पाया कि इस खनिज के अवशेष मारीशस के द्वीप से भी पुराने हैं।
उन्होंने बताया, ‘‘ धरती दो हिस्सों से बनी है… महाद्वीप जो कि पुराने हैं और महासागर जो कि ‘नए’ हैं । महाद्वीपों पर आज ऐसी चट्टानें पाते हैं जो चार अरब साल से अधिक पुरानी हैं लेकिन आपको महासागरों में ऐसा कुछ नहीं मिलता क्योंकि यह ऐसी जगह है जहां नयी चट्टानें बनीं।’’ उन्होंने बताया, ‘‘ मारीशस एक द्वीप है और इस पर कोई भी चट्टान 90 लाख साल से अधिक पुरानी नहीं है ।
लेकिन द्वीप की चट्टानों के अध्ययन से हमने पाया कि जिरकन तीन अरब साल पुराना है ।’’ जिरकन ऐसे खनिज हैं जो महाद्वीपों में ग्रेनाइट में मिलते हैं । इनमें यूरेनियम, थोरियम और सीसा के कण पाए जाते हैं और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वे भूगर्भीय प्रक्रियाओं में अपना अस्तित्व बनाए रख सकें इससे पता चलता है कि वे अपने भीतर भूगर्भीय प्रक्रियाओं का समृद्ध रिकार्ड समेटे हुए हैं और बेहद सटीक तरीके से इनके समय का पता लगाया जा सकता है ।