Wednesday, September 20th, 2017 17:55:31
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लिखने को वक्त की बर्बादी मानते थे पिता, ऐसे बने गुलजार देश के फेमस राइटर




लिखने को वक्त की बर्बादी मानते थे पिता, ऐसे बने गुलजार देश के फेमस राइटरEntertainment

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गुलज़ार नाम ही काफी हैं इन्हें पहचनाने के लिए। इनका असल में नाम संपूर्ण सिंह कालरा हैं। गुलज़ार हिंदी फिल्मों के सिर्फ एक प्रसिद्ध गीतकार ही नहीं हैं, बल्कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर, प्रोड्यूसर-डायरेक्टर, डायलॉग और स्क्रिप्ट राइटर भी हैं। अब तो यह देखना रह गया है कि गुलज़ार साहब को कौन-से अवॉर्ड से नहीं नव़ाज गया हो। उन्हें ऑस्कर, पद्मभूषण, नेश्नल अवॉर्ड, दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, ग्रैमी जैसे बड़े-बड़े अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका हैं। आज गुलज़ार के जन्मदिन पर जानते हैं कुछ खास बातें-

पिता कहते थे क्यों लिखकर अपना टाइम खराब कर रहें हो
संपूर्ण सिंह कालरा यानि गुलजार के घर वाले उनकी लिखने की आदत से खुश नहीं थे। वो अकसर ही उन्हें कहते थे कि वो ये सब कर अपना टाइम खराब कर रहे हैं। इसलिए संपूर्ण ने गुलजार दीनवी के नाम से लिखना शुरू किया। बाद में उन्होंने इस नाम को और छोटा कर गुलजार कर लिया। भले ही शुरुआत में गुलजार के पिता और घर वालों ने लिखने के लिए उनकी कभी तारीफ नहीं की थी। लेकिन उन्होंने गुलजार की मेहनत और उनके संघर्ष को हमेशा सराहा। यही वजह थी कि जब गुलजार के पिता की मृत्यु हुई तो उन्हें खबर तक नहीं की गई। ये घटना उस वक्त की है जब काफी मेहनत के बाद गुलजार साहब विमल रॉय के असिस्टेंट बन गए थे। इसी दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई। अब उनके परिवार ने सोचा कि अगर इस समय उन्हें ये खबर दी गई तो वह सब काम छोड़ दिल्ली चले आएंगे। इतनी मुश्किल से उन्हें ये काम मिला है। तो ये मौका उनके हाथ से कैसे जाने दिया जाए। ये सब सोचकर उनके परिवार ने उन्हें ये खबर नहीं दी।

बिमल रॉय के देहांत के वक्त उनके पिता का भी किया था क्रिया क्रम
विमल रॉय जिन्हें वो अपना गुरू मानते थे उनके अंतिम दिनों में वो उनके साथ रहे। उनका खयाल रखते थे। जिस दिन विमल रॉय ने अंतिम सांस ली गुलजार साहब उनके अंतिम क्रिया क्रम में शामिल हुए और साथ साथ अपने पिता की भी अंतिम क्रिया की। गुलजार साहब की जिंदगी की इस घटना का जिक्र जिया उल सलाम की किताब हाउसफुल ‘द गोल्ड ईयर्ज ऑफ बॉलीवुड’ में हैं।

फिल्म फेयर अवॉर्ड में राखी को ‘अजी सुनती हो’ कह कर बुलाया था
1973 वे गुलज़ार और राखी ने शादी कर ली थी। लेकिन यह रिश्ता ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया। 1974 में मेघना गुलजार उनकी बेटी के एक साल बाद दोनों अलग हो गए थे। खैर दोनों में अभी तक तलाक नहीं हुआ पर दोनों अलग रहते हैं। 1990 में हुए 35वें फिल्म फेयर अवॉर्ड की है। गुलज़ार साहब को बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल का अवॉर्ड देने के लिए स्टेज पर बुलाया था। गुलज़ार ने जैसे ही अवॉर्ड विनर के तौर पर राखी का नाम देखा तो बोल पड़े, इसमें वो नाम है जिस नाक को मैं कुछ अलग अंदाज़ में बुलाउंगा, अजी सुनती हो। इसे सुनकर लोगों ने ठहाके तो लगाएं पर आश्चर्य भी हो गए थे क्योंकि सालों पहले दोनों अलग हो चुके थे।

गुलज़ार के मुंबई में पाली हिल पर स्थित ‘बोस्कियाना’ बंग्लो का नाम उनकी बेटी ‘मेघना गुलज़ार’ के निक नेम ‘बोस्की’ पर रखा गया हैं। बोस्की का मतलब होता है नरम।

फिल्मों के अलावा गीतकार गुलज़ार एक अच्छे टेनिस प्लेयर भी हैं और हर सुबह 4ः30 बजे उठकर टेनिस खेलने जाते हैं। उनके साथ फिल्म मेकर विशाल भारद्वाज भी टेनिस खेलते हैं।

भारत-पाक बंटवारे के बाद गुलजार दिल्ली चले आए थे और उसके बाद मशहूर फिल्म मेकर बिमल रॉय के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘बंदिनी’ में पहली बार एक गीतकार के रूप में काम किया। इस फिल्म ने गुलजार को काफी फेमस कर दिया था।

गुलज़ार साहब आज 83 वर्ष के हो गए है पर उनके गाने आज भी युवाओं के अंदर एक ऊर्जा भर देते हैं। हाल में उनके में कई फिल्मों में गीत आए हैं। जैसे- हैदर, एक थी डायन, मटरू की बिजली का मनडोला फिल्मों में सुन चुके हैं। तो ऐसी गीतकार गुलज़ार साहब की दास्तां।

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