यहां दुकानों से मेडल खरीदने को मजबूर हैं सैनिक
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देश की रक्षा करने के लिए हमारे सैनिक हर पल तैयार रहते हैं। देश का गौरव बढ़ाने के लिए हमारे सैनिक विपरित परिस्थिति के आगे चट्टान की तरह खड़े हो जाते हैं। जाबांज़ सैनिकों के इस हौसले को बनाए रखने के लिए भारत सरकार उन्हें पुरस्कार से सम्मानित करती हैं। पुरस्कार के तौर पर सरकार मेडल देती है। लेकिन देश के कुछ हिस्सों से जो ख़बर सामने आई है वह बेहद चौंका देने वाली है।
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक मेडल के हकदार होने के बावजूद बहादुर सैनिक प्राइवेट दुकानों से रेप्लिका मेडल खरीदने के लिए मजबूर हैं। हैदराबाद, सिकंदराबाद के मेहदीपटनम और गोलकोंडा शहरों की दुकानों में बेचा जा रहा है। टेलर कॉपी के नाम से इन मेडल्स को 40 से 180 रुपए में खरीदा जा सकता है।
क्या है कारण?
दरअसल, आर्मी ऑरिजनल मेडल पहुंचाने में काफ़ी समय लगा देती है। इस बात को खुद रक्षा मंत्रालय की ओर से भी माना गया है। मंत्रालय के मुताबिक, नॉन-गैलेंट्री अवॉर्ड्स को डिलिवर करने में 10 साल तक की देरी हो जाती है। वहीं पूर्व सैन्यकर्मियों का कहना है कि आर्मी के विभिन्न विंग्स में तालमेल न होने की वजह से मेडल पहुंचाने में देर होती है।
2500 रुपए आता है खर्च
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, मेडल्स और बैजेस के साथ पूरी यूनिफॉर्म खरीदने के लिए कम से कम 2,500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। गैलेंट्री अवॉर्ड्स (वीरता पुरस्कार) के अलावा बाकी सभी मेडल्स खरीदे-बेचे जाते हैं। चूंकि वीरता मेडल पर इसे पाने वाले सैनिक का नाम और आर्मी नंबर लिखा होता है इसलिए इसे दुकानों से नहीं खरीदा जा सकता।
सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है इस तरह मेडल बेचना
निजी दुकानों में मेडल बेचा जाना सुरक्षा के लिए भी बड़ खतरा है। रिपोर्ट के मुताबिक दुकानों से कई ऐसी ‘टेलर कॉपियां’ खरीदीं गई हैं जो सरकार द्वारा जारी नहीं की गई थीं। बता दें कि दुकानों में आर्मी यूनिफॉर्म पर लगाए जाने वाले बैज भी मिलते हैं। इनमें करगिल युद्ध के लिए ‘ऑपरेशन विजय’, डेजिग्नेटेड ऑपरेशन के लिए ‘सामान्य सेवा मेडल’ और ऊंचे स्थानों पर तैनाती के लिए ‘उच्च तुंग’ मेडल शामिल थे। तीनों मेडल्स के साथ उचित रिबन भी लगे थे।
इस गंभीर मुद्दे को सैनिक वेलफेयर के डायरेक्टर कर्नल पी. रमेश कुमार (रिटायर्ड) ने स्वीकार किया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, ”जो सैनिक मेडल जल्दी पाना चाहते हैं वे इन्हें दुकानों से खरीद सकते हैं।” कर्नल रमेश का कहना है कि दुकानों से मेडल खरीदने वाले सैनिक कोई फ्रॉड नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे वही खरीद रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं।