अखिलेश के राज में विकास पर हावी रहा गुंडाराज
By Satish Tripathi
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2012 में करिश्माई जीत हासिल कर सत्ता में आए युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीते चार साल में केवल राज्य में ही नही, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी खास पहचान बनाई। इस बीच अखिलेश ने पार्टी के साथ परिवार में भी दखल का रुतबा कायम रखा। बीते चार साल में जिस तरह से प्रदेश सरकार की बदहाली, नाकामी, कानून व्यवस्था, अपराध, दंगे और अपराध के आकड़े जिस तरह से आसमान छुये तो उस तरह से प्रदेश को चौतरफा सवालो के घेरे में खड़ा कर दिया है.
अब सवाल ये उठता है कि ये सब चीज लेकर अखिलेश पार्टी के लोग जनता के बीच जायेगें या फिर आधे अधूरे काम को लेकर. अभी हाल ही में मुजफ्फरनगर दंगे पर जस्टिस सहाय की आई रिपोर्ट पर अखिलेश सरकार को चारो तरफ सवालो के कटघरे में खड़ा कर दिया औऱ विपक्षियो ने जस्टिस सहाय की रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा करार देते हुये सीबीआई जांच की मांग की और कहा कि इस रिपोर्ट में सरकार की नाकामी को छुपाया गया है. जिसकी सीबीआई जांच होनी चाहिये. सरकार की नाकामी यही तक नही छुपी है बल्कि दुसरो की रक्षा करने वाली खाकी वर्दी भी कई बार दंगाईयो औऱ गुण्डो से पिट चुकी है. यह कोई औऱ नही बल्कि सदन में पेश हुई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ. जिसने सरकार के तरफ से कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है।
क़ानून-व्यवस्था के मोर्चे पर अखिलेश सरकार नाकाम
सपा के तरकश के सारे शक्तिशाली तीर खत्म हो गये हैं. संसद में मुलायम सिंह अकेले लड़ रहे हैं. वह अपने को बचाएं या उत्तर प्रदेश में आकर अपने बेटे की सरकार बचाएं, यह उनके लिए एक बड़ा प्रश्न है. सरकार में शामिल मंत्री भी कानून-व्यवस्था की बुरी हालत के सामने घुटने टेकने को मजबूर हैं. सबके अपने अपने बयान हैं. दिल दहलाने वाली घटनाएं यूपी के गांवों से लेकर शहरों तक में आए दिन घट रही हैं. महिलाएं घर से निकलने में डरने लगी हैं. यहां तक कि लड़कियों का स्कूल जाना भी दूभर हो गया है. वे सुबह निकलती हैं, तो शाम को आने तक उनकी घर वाले बाट जोहते हैं. बेटियों को बचाने में सरकार खुद बेदम दिख रही है. अदब के शहर लखनऊ में भी अब महिलाओं की आबरू सुरक्षित नहीं है. फिर भी सपा सुप्रीमो इस बात को मानने को कतई तैयार नहीं कि यूपी में क़ानून व्यवस्था ठीक नहीं है. वे ऑल इज वेल कह रहे हैं, लेकिन विरोधी दल के लोग प्रदेश में हो रही आपराधिक घटनाओं को लेकर कभी विधानसभा के सामने धरना प्रदर्शन दे रहे हैं, तो कहीं मुलायम सिंह के अटपटे बयानों को लेकर उनकी बुद्धि-शुद्धि के लिए भाजपा की महिला कार्यकर्ता हवन करते देखे जा रहे हैं.
भाजपा तो लोकसभा चुनाव की जीत के मद में चूर है, वहीं कांग्रेस को कुछ समझ में नही आ रहा है. वह भी भाजपा और बसपा के साथ-साथ चलती दिख रही है. 20 करोड़ वाले सूबे में सपा सरकार को जनता ने विशाल बहुमत देकर सत्ता सौंपी है. सरकार प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में लगी है. किसानों, नौजवानों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के कल्याण के सारे प्रयास हो रहे हैं. कुछ तत्व आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होकर प्रशासन के लिए चुनौती बने हैं. मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखना है, क्योंकि विकास की गतिविधियां तभी सफल होंगी, जब शासन-प्रशासन चुस्त-दुरुस्त रहेगा. अपराधियों पर सरकार सख्त है. सरकार के अनुसार, उनकी जगह जेल में है. मुख्यमंत्री आपराधिक वारदातों को स्वयं संज्ञान में ले रहे हैं. जनता जागरूक है और साज़िशकर्ताओं के मंसूबों को परखती है।
सुप्रीम कोर्ट को तैनात करन पड़ा यूपी में लोकायुक्त
लोकायुक्ति की नियुक्ति को लेकर सरकार की चारो तरफ खूब फजीहत हुई। नियुक्ति को लेकर सब में एक मत न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में खुद ही लोकायुक्त नियुकित किया. लेकिन बाद में तैनाती को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने सहमति देने से इंकार कर दिया. और सुप्रीम कोर्ट से शिकायत कर दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तैनाती को रद्द करते हुये नई तैनाती की.
कानून व्यवस्था से त्रस्त है जनता
उत्तर प्रदेश राजनीति का बड़ा अखाड़ा है. राजनीति की हर विधा यहां उपलब्ध है. साम,दाम,दंड और भेद की नीति में भी निपुण हैं यहां के राजनेता. सभी कांटे से कांटा निकालने में इन्हीं नीतियों का सहारा लेते रहे हैं. तिल का ताड़ बनाने में हर कोई माहिर है. सपा सरकार की एक छोटी सी भूल को भी तूल देने में वह पीछे नहीं हैं. विरोधी क़ानून-व्यवस्था का ब्रह्मस्त्र सपा पर फेंक देते हैं. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जैसे बसपा भ्रष्टाचार पर हारी थी, ठीक उसी तर्ज पर सपा को बिगड़ी क़ानून व्यवस्था पर परास्त करने की भाजपा और दूसरे दल रणनीति बना रहे हैं. सपा चक्रव्यूह में फंसती जा रही है. अगर सरकार समय रहते नहीं चेती तो उसके सामने विरोधी बड़ा चक्रव्यूह बनाकर खड़ा कर सकते हैं.
सपा सरकार में खाकी भी नही है महफूज
सपा सरकार में खाकी भी सुरक्षित नही है. यह मै नही बल्कि सदन में पेश हुये आकड़े बया कर रहे हैं. सदन में पेश हुई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सपा सरकार के अब तक के कार्यकाल में 1044 बार पुलिस पिट चुकी है. हालाकि यह आकड़ा सरकारी है अगर गैरसरकारी आकड़ो पर ध्यान दे तो ये आकड़ा कंहा तक होगा. इसका अनुमान सदन में पेश हुई रिपोर्ट से लगाया जा सकता है. सपा सरकार के कार्यकाल में हुई पुलिस कार्रवाई में 2012-13 में एक मौत हुई जबकि उसके अगले साल नौ मौतें हुई हैं। 2014-15 में पांच मौतें हुईं। यही पांच मौतों का आंकड़ा अगले साल भी रहा, जबकि सपा सरकार के चार साल के कार्यकाल में शून्य, नौ, एक और तीन लोगों की थाने में मौत हुई।
पिटाई के आंकड़े
साल 2007-08 में पुलिस पर 75 हमले हुए
वर्ष 2008-09 में यह आंकड़ा 101 हो गया
2009-10 में पुलिस पर 103 हमले हुए
2010-11 में पुलिस पर 124 हमले हुए
2011-12 में पुलिस पर 144 हमले हुए
सपा सरकार में इन आंकड़ों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई
2012-13 में पुलिस पर 202 हमले हुए
2012-14 में पुलिस पर 264 हमले हुए
2014-15 में पुलिस पर 300 हमले हुए
2015-16 में पुलिस पर 278 हुए
मुजफ्फरनगर दंगे पर जस्टिस सहाय की रिपोर्ट सवालो के घेरे में
मुजफ्फरनगर दंगे के लिए गठित जस्टिस विष्णु सहाय की 700 पन्नों की इस रिपोर्ट में अखिलेश सरकार को क्लीन चिट दी है. रिपोर्ट में कहा गया कि भड़काऊ भाषणों के लिए सीधे तौर पर कोई नेता जिम्मेदार नहीं है. ज्यादातर महापंचायत में लोलक इंटेलीजेंस यूनिट की असफलता है. जिसकी वजह से पंचायत में आने वाली भीड़ का सही आंकलन नहीं हो सका. इस रिपोर्ट में किसी भी नेता के भड़कऊं भाषण को जिम्मेदार नहीं माना गया है बल्कि स्थानीय पंचायत और पुलिस को इस दंगे का जिम्मेदार बताया गया है. इस बीच दंगे में कुछ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खडे़ किए हैं, रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन SSP और स्थानीय इंटेलीजेंस इंस्पेक्टर को सीधे तौर पर दंगों के लिए जिम्मेदार माना गया है. इसके साथ ही रिपोर्ट में तत्कालीन जिलाधिकारी की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया है. आयोग ने दंगे भड़कने के 14 कारण गिनाए हैं. बीएपी और बीजेपी के नेताओं के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि उनके खिलाफ दंगा भड़काने का मुकदमा दर्ज है, इसलिए आयोग उनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(2) के तहत सरकार को कोई कार्रवाई करने के लिए विधिक रूप से नहीं कह सकता. जिसको लेकर विपक्ष पार्टियो ने इस रिपोर्ट को कटघरे में खड़ा करते हुये कहा कि यह रिपोर्ट सरकार के पक्ष में हैं. विपक्ष ने अपनी मांग करते हुये कहा कि इसकी जांच सीबीआई से होनी चाहिये. वंही इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि जस्टिस सहाय की रिपोर्ट पर ही सरकार आगे की कार्रवाई करेगी.
पार्टी से लेकर सरकार तक अराजकता का माहौल
उत्तर प्रदेश में पार्टी से लेकर सरकार तक अराजकता का माहौल व्याप्त है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव कहते-कहते थक गए कि अखिलेश सरकार के कई मंत्री भ्रष्ट हैं और उनके खिलाफ जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से शिकायती पत्र प्राप्त हो रहे हैं, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता और राष्ट्रीय अध्यक्ष के विचारों की अनदेखी करते रहे. अराजकता का हाल यहां तक पहुंच गया कि मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश कार्यकारिणी की एक लिस्ट जारी की तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक और लिस्ट जारी कर दी. मुख्यमंत्री के इस रुख से पार्टी में अराजकता ने पैर पसारे और इसका असर प्रदेश की नौकरशाही पर भी दिखना शुरू हुआ.
अपराधी छवि के नेताओ को एमएलसी की लिस्ट में शामिल किया
हालाकि अभी हाल ही में अखिलेश ने उन लोगो को एमएलसी लिस्ट की सूची में नाम शामिल किया जो अपराधी छवि के नेता थे. औऱ इसमें तो कई नेता जेल भी जा चुके हैं औऱ कुछ के खिलाफ संगीन धाराओ में वांछित हैं. औऱ उनके खिलाफ मुकदमा चल रहा है.
रिटायर्ड अफसरो पर मेहरबान रहे अखिलेश
औऱ यही नही अखिलेश तो उन अधिकारियो पर भी मेहबान रहे जो अखिलेश के काफी करीबी माने जाते हैं. ऐसे अधिकारियों के प्रति मुख्यमंत्री की चाहत का हाल यह है कि इन्हें रिटायर होने के बाद भी गैर कानूनी तरीके से सेवा विस्तार देकर नौकरी में बरकरार रखा गया है.
माननीयो के मुकदमें वापस लेने में जुटी सरकार
उत्तरप्रदेश में नेताओ और मंत्रियो के सौ गुनाह माफ करने में अखिलेश सरकार जुटी है. यह हम नही बल्कि अभियोजन विभाग के रेकार्ड बता रहे हैं. यूपी में वर्तमान में शासित समाजवादी पार्टी के कई मंत्री और नेता से जुड़े कई गंभीर धाराओ वाले मपकमे सरकार ने वापस ले लिये हैं. और खास बात ये कि जो मुकदमें वापस नही हुये उनमें या तो गवाह पक्ष द्रोही हो गया है. या फिर वादी ने सुलह कर ली है. इसमे वो मंत्री शामिल है जिनके चर्चे जनपद ही नही प्रदेश औऱ देश में विख्यात है. जिसमें राजा भैया, ददुआ के भाई वीर सिंह, मंत्री महबूब अली, पंडित सिंह औऱ पूर्व अंबिका चौधरी भी शामिल है.
सरकार ने वीआईपी और विज्ञापनो पर किये फिजूल खर्च
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने 4 साल पूरे कर लिए बदहाल कानून व्यवस्था का बोझ यूपी के ऊपर डाल दिया है. अभी 1 साल बाकी हैं, देखना यह है कि यह बोझ घटता है कि बढ़ता है. इस 4 साल के समाजवादी अनुभव ने कहीं से भी पांच साल के बहुजनी अनुभव से बेहतर महसूस नहीं कराया. सब एक ही थैली के चट्टेबट्टे साबित हो रहे हैं, बस सत्ता का स्वाद विभिन्न रंगों की बोतलों में भरे एक ही तरह के सड़ियल शरबत की तरह है. मायावती के कार्यकाल में सरकारी धन की फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार ने सारी हदें तोड़ डाली थीं. पार्कों, स्मारकों, मूर्तियों, पत्थरों और बेमानी के काम में सरकारी धन पानी की तरह बहाया गया और प्रदेश पर कर्ज का भारी बोझ लाद दिया. अखिलेश सरकार उन्हीं महान कृत्यों का अनुसरण कर रही है.
समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव को अपने तात्कालिक-पूर्वकालिक वरिष्ठ का अनुकरण करने में कोई संकोच नहीं हो रहा. मायावती की फिजूलखर्चियों पर दी जाने वाली समाजवादी प्रतिक्रियाएं फिजूल ही साबित हुईं और वही सब होने लगा जो पूर्ववर्ती सरकार ने किया था. सरकारी समारोहों, अनावश्यक योजनाओं, पार्कों, स्मारकों, विज्ञापनों, लैपटॉप, भत्तों और मुआवजों की भेदभावभरी रेवड़ी बांटने और समाजवादी वीवीआईपियों की सुरक्षा पर अखिलेश सरकार ने अब तक अरबों रुपये फूंक दिए हैं. फिर प्रदेश का विकास क्या हुआ और विकास के दावे किस पोपली जमीन पर खड़े हैं, इस बारे में आसानी से सोचा-समझा जा सकता है. भारी कुपोषण का शिकार प्रदेश के 42 प्रतिशत बच्चे समाजवादी सरकार के विकास का गवाह और प्रमाण हैं.
मुलायम का शाही जन्मदिन, सैफई महोत्सव पर विपक्ष ने साधा निशाना
अखिलेश सरकार के चार वर्ष के कामकाज पर ध्यान दें तो आपको एक बेसिरपैर का टाइमपास दिखाई देगा, जिसमें जनहित का तो कुछ नहीं, पर व्यक्तिहित और निज-हित के तमाम स्वार्थ साधते हुए दिखाई देंगे. इन चार वर्षों में एक तरफ मुलायम का सामंती जन्मोत्सव, सैफई महोत्सव और राजशाही तिलकोत्सव दिखाई देगा तो दूसरी तरफ आपको किसानों की बदहाली दिखाई देगी, महिलाओं की त्रासदी दिखाई देगी, सार्वजनिक गुंडई दिखाई देगी, दंगे दिखाई देंगे और दिखाई देंगे हर तरह के अपराध और भ्रष्टाचार. इन सब जमीनी-दृश्यों से लापरवाह समाजवादी पार्टी बीते चार साल को गौरवशाली और ऐतिहासिक मानती है.
विपक्ष का आरोप इस सरकार में बढ़े है ज्यादा अपराध
वंही विपक्षियो ने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुये कहा कि प्रदेश में बढ़ते बलात्कार चिंता का विषय है. उनके अनुसार, मुलायम सिंह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में जुर्म कम हो रहे हैं. सियासी जानकारों की मानें, तो मायावती के शासन में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में आपराधिक घटनाओं की काफ़ी आलोचना किया करते थे. इसी कारण जब 2012 में सपा सत्तारूढ़ हुई, तो लोगों को हालात में कुछ सुधार की आशा बंधी थी, परंतु सपा के सत्ता में आने के बाद ऐसे हालात पर काबू नहीं पाया जा सका है. सपा के विरोधी कहते हैं कि प्रदेश में अपराधियों का बोलबाला है. लूटपाट, डकैती तथा महिलाओं के विरूद्ध अपराध ज़ोरों पर है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने भी सरकार को चौकायां
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 2012 के मुक़ाबले 2013 में बलात्कार के मामलों में 55 प्रतिशत वृद्धि हुई है. 2012 में जहां बलात्कार के 1936 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं 2013 में ऐसे मामले बढ़कर 3050 हो गए. देश में महिलाओं की कुल जनसंख्या का 16.7 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में है. राज्य में 2013 में महिलाओं के विरूद्ध अपराधों के कुल 32546 मामले दर्ज किए गए थे, जो देश में महिलाओं के विरूद्ध कुल अपराधों का 10.6 प्रतिशत है. वर्ष 2013 के दौरान पूरे देश में बलात्कार के 33 हजार 707 मामले दर्ज किए गए, जिसमें सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए. शायद इन्हीं आंकड़ों को देखकर सपा प्रमुख को गुस्सा आता है कि दूसरे प्रदेशों की अपेक्षा उत्तर प्रदेश में घटनाएं कम हो रही है, लेकिन विरोधी दल हैं कि मानते नहीं. विरोधियों के कुप्रचार से सपा सुप्रीमो इन दिनों तिलमिलाए हुए हैं. प्रदेश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध की घटनाओं को काबू में करने के लिए सपा सरकार प्रयासरत है. प्रदेश के मुख्य सचिव खुद इसकी निगरानी कर रहे हैं. वे ज़िले-ज़िले जाकर डीएम और एसपी से इस बारे में पूछताछ कर रहे हैं.
मुलायम के बलात्कार जैसे मुद्दो पर बयान की हुई चौतरफा निंदा
भाजपा, बसपा और कांग्रेस के पास एक अस्त्र ही सरकार के ख़िलाफ़ काम कर रहा है. वह है प्रदेश की बिगड़ी क़ानून व्यवस्था. विपक्षी पार्टियां मुलायम सिंह के बयानों को भी मुद्दा बनाते हैं. 10 अप्रैल 2014 को मुलायम ने कहा था कि लड़के तो लड़के हैं, ग़लती हो जाती है. लड़कियां पहले दोस्ती करती हैं और जब मतभेद हो जाता है और दोस्ती टूट जाती है, तब लड़कियां उसे रेप का नाम दे देती हैं. लड़कों से ग़लती हो जाती है, तो क्या उन्हें रेप केस में फांसी पर चढ़ा देंगे. 19 जुलाई 2014 में अखिलेश सरकार का पक्ष लेते हुए उन्होंने बयान दे डाला कि प्रदेश की जनसंख्या 21 करोड़ है, परंतु यहां बलात्कारों की संख्या सबसे कम है.
बीफ के मुद्दे को लेकर सरकार की हुई फजीहत
नोयडा के बिसाहड़ा में बीफ को लेकर भीड़ ने एक व्यक्ति को पीट पीट कर मार डाला था. जिसका नाम अखलाख था. भीड़ का आरोप था कि उसके घर में बीफ है. जिसको लेकर काफी बवाल हुआ था. और सरकार को उसमें काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी. हालाकि बाद में जांच में ये पाया गया था कि अखलाख के घर में बीफ नही थी. हालाकि वंही इस बात को लेकर सपा सरकार के कद्दावर मंत्री आजम खान ने कहा था कि वो इस बात को लेकर यूएन तक जायेगें. जिसको लेकर राजनीति गलियारो में सरकार को काफी सवालो का सामना करना पड़ा था.
मुख्यमंत्री का दावा सरकार ने अपने सारे वादे किये पूरे
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कहते हैं कि उनकी सरकार ने चार सालो में तमाम वादे पूरे किए हैं. जबकि मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव लगातार यह कहते रहे कि प्रदेश सरकार के कई मंत्री भ्रष्ट हैं और कई नौकरशाह अराजकता का माहौल बना रहे हैं. मुलायम ने कई मंचों से कहा कि जो मंत्री और अफसर अपने गांव को नहीं बना पाए, वे उत्तर प्रदेश को क्या बनाएंगे, उन्हें कमीशनखोरी से ही फुर्सत नहीं है तो वे काम क्या करेंगे. मुलायम ने कई बार सरकार को आगाह किया कि सरकार के अच्छे कामों की रफ्तार बेहद सुस्त है. उन्होंने कहा भी कि वे खुद ही इंतजार कर रहे हैं कि सरकार की कोई परियोजना पूरी हो और वे उसका उद्घाटन कर सकें, लेकिन उन्हें यह मौका नहीं मिल रहा. हालाकि इसको लेकर मुयालम सिंह यादव कई बार मंच पर ही अखिलेश यादव की क्लास लगा चुके हैं.
सरकार का दावा कि मेट्रो जैसी पहल की सरकार ने, विपक्ष का जवाब उसके पलट
राजधानी लखनऊ से लेकर प्रदेशभर में जिस तरह दुस्साहसिक अपराध और सार्वजनिक गुंडई की घटनाएं हो रही हैं, उससे जनता त्रस्त है, उन घटनाओं के विवरण को दोहराने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे लोगों के जेहन में ताजा हैं और नई-नई घटनाएं उसमें जुड़ती जा रही हैं. मुख्यमंत्री ने लखनऊ मेट्रो, पुलिस सुधार, बुनियादी ढांचा विकास, अवस्थापना सुविधाओं, औद्योगिक निवेश तथा शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी पहल की हैं जिनका फायदा पूरे प्रदेश को होगा. जबकि विपक्ष की राय उसके पलट है और विपक्ष का मानना है कि प्रदेश में सपा सरकार आते ही कानून व्यवस्था ध्वस्थ हो चुकी है औऱ गुण्डें अपराधियो के हौसले दिन ब दिन बुलन्द होते जा रहे हैं. विपक्ष का आरोप है कि सपा ने इन चार वर्षों में जनता को सिर्फ ठगा है. पूर्व की सरकार की तरह अखिलेश सरकार में भी ऐश-मौज और लूट की रवायत पर चल रही है. प्रदेश में शासन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है.
अब अन्त में सवाल ये उठता है कि अखिलेश सरकार किन चीजो को लेकर 2017 विधानसभा चुनाव में जनता के बीच जायेगी. और जनता से 2017 में सरकार बनाने के लिये जनता से वोट मांगेगी. क्या अखिलेश सरकार के द्वारा किये गये विकास समाजवादी पेंशन योजना, 102 एम्बूलेन्स, 1090 वीमेन्स पावर लाइन जैसे कार्यो को लेकर अखिलेश पार्टी के लोग जनता के बीच जायेगे. खैर अभी विधानसभा चुनाव को लेकर एक साल बचे हैं. जनता किसको चुनकर यूपी की सत्ता पर बैठाती है.. ये तो फिलहाल वक्त ही बतायेगा. लेकिन वंही अखिलेश यादव ने ये साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव 2017 में सपा पार्टी किसी के साथ गठबन्धन नहीं करेगी.
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