लिव-इन-रिलेशनशिप देता है एक-दूसरे को जानने-समझने का पूरा मौका
लाइफस्टाइल डेस्कः शादी के बाद कई सारी आदतें-जरूरतें बदलनी पड़ती हैं, कुछ चीज़ों को मैनेज करना होता है तो कुछ को इग्नोर. परेशानियां तब शुरू होती हैं जब इन्हें लेकर कोई एक कॉम्प्रोमाइज करने को राजी नहीं होता.
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लगातार बढ़ रहे डिवोर्स के मामलों को देखते हुए एक नए तरह का रिलेशनशिप लोगों के बीच बहुत पॉपुलर हो रहा है वो है लिव-इन का, जहां दोनों आपसी सहमति से एक-दूसरे के साथ रहकर एक-दूसरे को जानते और समझते हैं इसके बाद शादी का डिसीज़न लेते हैं. इस ट्रेंड की वजह से रिलेशनशिप में सेपरेशन के केस कम देखने को मिल रहे हैं.
तो और किन वजहों से यंगस्टर्स इस तरह के रिलेशनशिप की ओर भाग रहे हैं….
जिम्मेदारियों का बोझ से दबे नहीं होते
जिम्मेदारियों के बोझ से बचने और दूर रहने के मकसद से लिव-इन रिलेशनशिप को शुरूआत की गई थी. जहां शादी-शुदा लोगों के ऊपर कई तरह की प्रेशर होता है वहीं लिव-इन में टेंशन फ्री रहते हैं. जबरदस्ती के फैमिली फंक्शन्स अटैंड नहीं करने पड़ते और न ही किसी बात के लिए किसी को जवाब देना होता है.
फाइनेंशियल मैटर्स आपस में बंटे होते हैं
लिव-इन का एक और अच्छा फायदा होता है कि इसमें आप दोनों आपस में बातचीत करके पैसों का हिसाब-किताब मेनटेन कर सकते हैं. रेंट से लेकर इलेक्ट्रिसिटी के बिल तक में शेयरिंग की जा सकती है. वहीं शादी-शुदा लाइफ में ये काम जरा मुश्किल होता है खासतौर से तब, जब कोई एक ही वर्किंग हो. वैसे ज्यादातर मामलों में पत्नियों को, पतियों के ऊपर ही डिपेंड होना पड़ता हैं और गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड के मामले में तो हमेशा से ही ब्वॉयफ्रेंड की ही जेब ढीली होती है.
शादी करने का डिसीजन लेना आसान होता है
किसी अंजान शख्स के साथ पूरी जिंदगी गुजारने के लिए उसे जानना बहुत जरूरी है और लिव-इन रिलेशनशिप इसकी पूरी आजादी देता है. लीगल हो चुके इस रिलेशनशिप से शादी करने का डिसीजन लेना आसान हो जाता है. साथ रहने हुए आप दोनों एक-दूसरे की आदतों और जरूरतों से वाकिफ होते हैं.
एक-दूसरे के लिए लव और रिस्पेक्ट बरकरार
लिव-इन में साथ रहते हुए फाइनेंशियली, इकोनॉमिकली, सोशली हर तरह की रिस्पॉन्सिबिलिटी आपस में बंटी होती है. जिससे एक-दूसरे को जानने और साथ वक्त बिताने का भरपूर वक्त होता है. साथ ही रिस्पॉन्सिबिलिटी एक-दूसरे के लिए प्यार और रिसपेक्ट बढ़ाने का भी काम करती है.
हर तरह की फ्रीडम होती है
शादी के बाद फ्रीडम पर कई तरह की बंदिशें लग जाती हैं तो कभी लगा दी जाती हैं. पहले जहां दोस्तों के साथ रातभर घूमने और पार्टी करने का वक्त हुआ करता था अब वो वक्त पार्टनर को देना पड़ता है इसके बाद भी कई सारी शिकायतें लगी रहती हैं. लेकिन दूसरी ही तरफ अगर लिव-इन रिलेशनशिप की बात करें तो एक-दूसरे के लिए टाइम निकालने का कोई प्रेशर नहीं होता और न ही इसे लेकर किसी तरह के गिले-शिकवे. जिसके चलते थोड़ी देर ही सही लेकिन एक-दूसरे के साथ क्वालिटी टाइम और मूवमेंट शेयर किए जाते हैं.
आपसी अंडरस्टैंडिंग का मौका मिलता है
ऐसा जरूरी नहीं कि जिससे प्यार हो उसी से शादी भी या जिसे पेरेंट्स ने पसंद कर दिया उसी के साथ पूरी जिंदगी बितानी है. शादी का डिसीजन लेने से पहले आपसी समझ और कम्पेटिबिलिटी को टेस्ट करना भी जरूरी है. इस चीज को परखने के लिए पेरेंट्स की रजामंदी से भी लिव-इन में रहा जा सकता है. लीगल है इसलिए कोई इश्यू भी नहीं.
रिलेशनशिप को लेकर सबकुछ क्लीयर होता है
लिव-इन की प्लानिंग के दौरान ही पार्टनर आपस में हर एक चीज़ क्लीयर कर लेते हैं. फैमिली, फ्रेंड्स, सोशल और फाइनेंशल लाइफ सब कुछ. जिससे बाद में इन चीज़ों को लेकर किसी तरह की हिचकिचाहट और माथापच्ची नहीं होती. कहा जा सकता है कि ये बहुत ही खास वजह है जिसके चलते इस रिलेशनशिप को इतना बढ़ावा मिल रहा है.
अलग होना आसान होता है
लिव-इन रिलेशनशिप में आपसी अंडरस्टैंडिंग, रिस्पॉन्सिबिलटी जैसे कई मामलों पर एक-दूसरे के विचार अलग-अलग हो सकते हैं. ऐसे में एक-दूसरे के साथ पूरी जिंदगी बिताने का फैसला लेना जरूरी नहीं होता. आप इन चीज़ों पर खुल कर बातचीत कर आपसी सहमति से अलग भी हो सकते हैं.
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