तालाब के पानी से बदली कहानी
मप्र के देवास जिले का गोरवा गांव सुर्खियों में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस गांव के जल संरक्षण मॉडल की तारीफ जो की है। इसका श्रेय जाता है आईएएस अधिकारी उमाकांत उमराव को।
मध्यप्रदेश का शांत से जिला देवास। जिले की गोरवा ग्राम पंचायत को थोड़ा करीब जाकर देखिये तो खुशहाली ही खुशहाली। कारण, गांव गांव में तालाब यहां तक कि किसानों के अपने खेतों में तालाब। उपज में 10 गुना तक का इजाफा। सफलता देखिये कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इस ग्राम पंचायत का जिक्र किया था। वजह था इसका जल संरक्षण माडल।
लेकिन यहां माहौल हमेशा से इतना सुखद नहीं था। 90 के दशक में देवास जिला आज के लातूर से भी बदतर स्थिति में था। यहां उसी समय पानी एक्सप्रेस चला करती थी। जीहां, रेलगाड़ी में भरकर पानी लाने की शुरुआत यहां उसी समय हो चुकी थी। लेकिन सन 2006 में यहां एक एसा जिलाधिकारी आया जिसका यकीन कहने में कम, करने में ज्यादा था। यह अधिकारी थे मौजूदा उच्च शिक्षा आयुक्त एवं तत्कालीन देवास कलेक्टर उमाकांत उमराव। उन्होंने नारा दिया, जल बचाइये, धन कमाइये। शुरुआती संशय के बाद लोगों को बात समझ में आ गयी। आज देवास का नाम देश भर में सुर्खियों में है। बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले इलाके यानी बांदा, महोबा आदि में देवास का अनुकरण कर तालाब खोदे जा रहे हैं। लातूर के किसान देवास भ्रमण पर आ रहे हैं ताकि यहां के तालाब देखकर उस माडल को अपने यहां लागू कर सकें।
कहां से शुरू हुआ सफर!
दरअसल सन 1960-70 के दशक में यूनीसेफ की सबको स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की योजना के तहत देशभर में बेतहाशा हैंडपंप खोदे गये। इसके लिये जमकर कर्ज बांटा गया। देवास भी इससे अछूता नहीं रहा। खेती और औद्योगिक गतिविधियों से कुछ वर्षों में भूजल का बेतहाशा दोहन हुआ। औद्योगिक इकाइयां ठप हो गईं और खेती सूखे के चलते जवाब दे गई। जलस्तर 500-700 फीट नीचे जा चुका था। सन् 1990 में इंदौर से ट्रेन की मदद से 50 टैंकर पानी देवास भेजा गया। वर्ष 2006 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी उमाकांत उमराव की नियुक्ति देवास के कलेक्टर पद पर हुई। पानी की विकराल समस्या ने बहुत जल्दी उनका ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उमराव कहते हैं, ”तमाम ग्रामीण मेरे पास आते और एक ही बात कहते, साहब,पानी का कुछ कीजिए।”
उमराव ने क्षेत्र में पानी की कमियों की वजह की पड़ताल करने की कोशिश की। पता लगा कि नलकूपों के जरिए अधिकांश भूजल का दोहन कर लिया है। लेकिन क्षेत्र में पर्याप्त मॉनसूनी बारिश होने के बावजूद वह भूजल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। उन्होंने स्थानीय किसानों को मनाना शुरू किया कि वे अपने खेतों के दसवें हिस्से में तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण करें। वह अधिकारियों के साथ गाँव-गाँव जाते और किसानों से बात करते। शुरुआत में एककिसान को उमराव ने अपनी गारंटी पर बैंक ऋण दिलवाया। इस किसान ने विशालकाय तालाब बनवाया। नतीजा, पहले केवल सोयाबीन की फसल लेने वाले किसान को अब साल में दो फसल मिलने लगी। उसने न केवल बैंक का कर्ज चुका दिया बल्कि कुछ ही वर्षों में 10 बीघे और खेत खरीद लिए।
उस किसान की सफलता देखकर समूचे देवास जिले के किसानों तक यह बात पहुंची। उनमें एक भरोसा जगा कि हमें भी यह माडल अपनाना चाहिये। लेकिन छोटी जोत के किसानों को लग रहा था कि अगर हम अपने खेत के एक बड़े हिस्से पर तालाब ही बना देंगे तो खायेंगे क्या? उनको उमराव ने बैठकें करके समझाया कि तालाब बनाने के क्या फायदे हो सकते हैं।
जानिये देवास मॉडल को
सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके आईएएस उमाकांत उमराव कहते हैं कि देवास में सबसे बड़ा सवाल यह था कि पर्याप्त बारिश के बावजूद हमारा भूजल स्तर बरकरार क्यों नहीं रह पाता। गाँव-गाँव में खोदे गए यही तालाब भूजल रिचार्ज का अहम जरिया बने। बारिश की अत्यंत कमी वाले कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो पूरे देश में वर्षा जल हमारी सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। हर 100 लीटर वर्षा जल में महज 10 से 15 लीटर पानी ही नदियों और बांधों में जा पाता है। अगर हम इन 100 लीटर में से 20-30 लीटर पानी को नदियों और भूजल तक पहुंचा सकें यह बहुत अहम होगा। इजरायल जैसे देश में यह स्तर प्रति 100 लीटर में 62 लीटर है। उमराव ने सोचा कि वर्षा जल प्रबंधन का मॉडल ऐसा हो ताकि किसानों की लाभ की इच्छा पूरी हो। उन्हें लगे कि अगर वे तालाब खोदते हैं उसका सीधा फायदा किसानों को मिले। इससे पहले जहां सरकारी नारे ”जल ही जीवन है” कि अवधारणा पर केंद्रित रहते थे वहीं हमने उसे ”जल बचाइए, लाभ कमाइए‘ में तब्दील कर दिया। क्योंकि जहां बात पैसे की हो, इंसान तुरंत सजग हो जाता है। इसका नतीजा भी दिख रहा है।”
आखिर बदल गयी तकदीर
पानी से किसानों की किस्मत किस तरह बदल सकती है उसका जीता जागता उदाहरण है देवास जिले (मध्य प्रदेश) की टोंक खुर्द तहसील का गोरवा गाँव। करीब 1500 की आबादी वाले इस गाँव में वर्ष 2006 तक पानी की कमी बहुत बड़ी समस्या थी। उस समय गाँव के एक दो सम्पन्न किसानों के पास ट्रैक्टर थे लेकिन खेती से उपज इतनी ही जिससे बमुश्किल पेट पाला जा सके। लेकिन उमाकांत उमाराव से मुलाकात ने गोरवावासियों की तकदीर बदली दी। आज गाँव के लगभग हर किसान के खेतों में तालाब है। गाँव के पूर्व सरपंच राजाराम पटेल बताते हैं कि आज गोरवा गाँव में कुल ट्रैक्टरों की संख्या बढ़कर 150के करीब पहुंच गई है। ये ट्रैक्टर न केवल खेती में मदद करते हैं बल्कि आसपास के गाँवों में तालाब खोदने में भी मददगार साबित होते हैं। राजाराम पटेलबताते हैं कि आज भी गाँव में या आसपास खुदने वाले किसी भी तालाब में पहली कुदाल चलाने के लिए उमाकांत उमराव को याद किया जाता है और वह बकायदा आते हैं। आसानी से उपलब्ध भी न होने वाले आईएएस अधिकारी अगर किसानों को खुद आगे बढ़कर फोन करें और उनके खेतों में कुदाल चलाएं तो भला किसानों को प्रेरणा क्यों न मिले। गोरवा के कई किसानों को जल संसाधन मंत्रालय की ओर से भूमि जल संवद्र्धन पुरस्कार भी मिल चुका है।
सरकार की रेवा सागर व बलराम सागर खेत तालाब योजना ने भी किसानों की मदद की। इन योजना के तहत किसानों को खेतों में तालाब खोदने के लिए पर्याप्त आर्थिक मदद भी सुनिश्चित की जाती है। वह भी करीब 80 प्रतिशत तक। सरकार की इस योजना के बाद तो इलाके में तालाबों की बाढ़ ही आ गयी आज वहां लगभग 7000 से अधिक खेत तालाब हैं।
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