’वे औरतों को उनकी जगह दिखाना चाहते हैं’
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष ऋचा सिंह का नाम इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है. विश्वविद्यालय छात्र संघ के 128 साल के इतिहास में पहली महिला अध्यक्ष बनी ऋचा को उनके सख्त तेवरों के कारण घुटे हुए नेताओं और विश्वविद्यालय राजनीति में काबिज गुंडा तत्वों की ओर से तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
पिछले दिनों उनपके साथ मारपीट की गई जिसमें उनका एक हाथ तक टूट गया. दरअसल ऋचा और उनके साथी विश्वविद्यालय में गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के प्रवेश का विरोध करने शांतिपूर्ण ढंग से धरने पर बैठे थे. लेकिन आदित्यनाथ समर्थक विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने न केवल उनके व उनके साथियों के साथ मारपीट की बल्कि लड़कियों को अत्यंत भद्दी व अश्लील बातें भी कहीं. ऋचा व उनके साथियों ने मामले की पुलिस में एफआईआर करने के अलावा राष्ट्रीय महिला आयोग को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है. पेश है ऋचा सिंह से पूजा सिंह की बातचीत
विश्वविद्यालय के 128 साल के इतिहास में पहली महिला छात्र संघ अध्यक्ष बनने की बहुत बधाई आपको. चुनाव लड़ने का ख्याल कैसे आया मन में?
छात्र राजनीति में फैल गयी गंदगी को साफ करना ही इकलौता उद्देश्य था. यहां लोग छात्र नेता इसलिये बनते हैं ताकि आगे चलकर एमपी, एमएलए बनने की जमीन तैयार हो सके. उनको छात्रों की समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है. लड़कियों की स्थिति तो और भी बुरी है.
आम धारणा है कि पढ़ने – लिखने वाले बच्चे राजनीति से दूर रहते हैं?
जी हां, धारणा तो है लेकिन इसे बदलना होगा. मैं एमफिल में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली छात्रा हूं. लेकिन हालात ने छात्र राजनीति में आने को विवश कर दिया, अब आ गयी हूं तो बिना बदलाव के वापस नहीं लौटूंगी.
योगी आदित्यनाथ वाले मुद्दे पर क्या मसला था?
देखिये हमारा कहना है कि विश्वविद्यालयों में पढ़ायी होनी चाहिये इनको राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देना चाहिये. हमारी यही मांग थी लेकिन विद्यार्थी परिषद के लोग मारपीट और गालीगलौज पर उतर आये. उन्होंने लड़कियों के साथ बहुत बदतमीजी की. वे दरअसल सभी लड़कियों को डराना चाहते थे कि देखो अगर तुम राजनीति करोगी तो हम तुम्हारे साथ यह करेंगे?
क्या आपको भी डराया गया. चुनाव के पहले या बाद में?
नहीं लेकिन यह कोशिश सभी दलों ने की कि मैं उनके दल में आ जाऊं. लेकिन मैंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना पसंद किया. अगर मैं किसी दल में होती तो सभी के हित में काम कैसे करती. उदाहरण के लिये अगर मैं विद्यार्थी परिषद में होती तो आदित्यनाथ का विरोध कैसे करती? वैसे भी दलों के छात्र चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है.
अभी आप विश्वविद्यालय में क्या पढ़ रही हैं?
मैं वैश्विकरण और विकास विषय पर शोध कर रही हूं. लड़कियों की सुरक्षा और उनकी मुखरता हमेशा मेरे जेहन में रहती है. यही वजह थी कि मैंने चुनाव लड़ा. उनको घर में और कॉलेज में हर जगह दोयम समझा जाता है. मैं विश्वविद्यालय परिसर में सामाजिक मेलमिलाप और रचनात्मकता को बढ़ावा देना चाहती हूं.
चुनावी जीत में किसका योगदान मानती हैं?
भले ही मैं केवल 11 वोटों से जीती लेकिन योगदान तो सभी साथियों का था. खासतौर पर लड़कियों का. मेरे चुनाव प्रचार में उन्होंने जो उत्साह दिखाया उसको मैं कभी नहीं भूल सकती. आप विश्वविद्यालय आकर देखें लड़कियों के लिए माहौल कितना बदल गया है. उनमें आत्मविश्वास आया है. ये मारपीट और गालीगलौज आदि उसी आत्मविश्वास को तोड़ने की कोशिश है.
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