खुला राजः यूपी में किसके दम पर चुनाव जीतेंगी पार्टियां
By Satish Tripathi
पांच राज्यों के नतीजे के आने के बाद राजनीति गलियारो में यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचलें शुरू हो गई है. सभी पार्टीयां अपनी रणनीति बनाने के लिये कोई पीआऱ एजेन्सी हायर कर रही हैं तो कोई प्रोफेशनल की टीम को हायर कर चुनाव पर पकड़ बनाना चाहता है।
2017 में होने वाली बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश में होनी है। 80 लोकसभा सीटों और 403 विधानसभा सीटों वाली इस राज्य में जीत ही 2019 के लोकसभा चुनाव का रास्ता तय करेगी। लेकिन बीजेपी की मुश्किलें उस समय से बढ़ गई थीं जब कांग्रेस ने यूपी चुनाव की बागडोर प्रशांत किशोर को सौंप दी थी। लेकिन इस समय बीजेपी को भी एक नया रणनीतिकार रजत सेठी के रूप में मिल गया है। उत्तर प्रदेश में अब सबकी निगाह विधानसभा चुनाव पर आकर टिक गई है। चुनाव का शोर सब तरफ सुनाई देने लगा है। अपने को पाक-साफ और दूसरे की टोपी उछालने के इस खेल में कोई कम नहीं दिख रहा है। किसकी राजनीति की खेती ज्यादा लहलहाएगी यह कोई नहीं जानता, मगर अपने को सभी श्रेष्ठ बताने में जुटे हैं। प्रायः सभी राजनैतिक पार्टियां अंदरूनी तौर पर नेताओं की आपसी गुटबाजी, टांग खिंचाई, आराम तलबी, दागी और दबंग नेताओं की कारगुजारी और प्रभावशाली नेतृत्व के अभाव जैसी तमाम समस्याओं से जूझ रही हों लेकिन मुद्दों की कमी किसी के पास नहीं है। सभी राजनैतिक दल ‘चुनावी बिसात’ पर अपने-अपने हिसाब से गोटियां बिछा रहे हैं। सबके मुद्दे अलग-अलग हैं।
अखिलेश ने हायर की पीआर एजेंसी
यूपी में साल 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव को जीतने को लेकर सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ऩा चाहती है। दोबारा सत्ता में लौटने के लिए समाजवादी पार्टी अब अमरीका की कंपनी की मदद लेने जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी अभियानों के लिए उन लोगों को ‘हायर’ करने जा रही है जो अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और बिल क्लिंटन से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा तक के चुनावी अभियान को सफल बना चुके हैं। और यही नही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनाव के वक्त इमेज बिल्डिंग के लिए इन एजेंसियों का सहारा लिया था. उनमें से एक हैं डेमोक्रेटिक पार्टी के एडवाइजर गेराल्ड जे ऑस्टिन। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और ऑस्टिन के बीच लखनऊ में एक दौर की मुलाकात हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार गेराल्ड जे ऑस्टिन से अखिलेश यादव की पहली मुलाकात लंदन में हुई थी। ऑस्टिन ने भी समाजवादी पार्टी के लिए अभियान की योजना बनाने के लिए हामी भर दी है। सूत्रों के अनुसार गेराल्ड ने कहा है कि वह उनके राजनीतिक सलाहकारों और समर्थकों को ट्रेनिंग दे सकते हैं। गौरतलब है कि अखिलेश यादव को नई पीढ़ी का नेता माना जाता है। वे पश्चिमी कार्य पद्धति के कायल रहे हैं। ऐसे में स्वाभाविक ही है कि वे चुनाव जीतने के लिए विदेशी पीआर एजेंसियों का सहारा लें। पार्टी और कार्यकर्ताओं की इमेज बिल्डिंग पर अखिलेश का शुरू से ही जोर रहा है।
बताया जा रहा है गेराल्ड ने सीएम अखिलेश को सलाह दी है कि वे अपनी पार्टी के नेताओं को इंटरनेशनल पॉलिटिक्स की समझ बढ़ाने के लिए प्रेरित करें। यहां आपको बता दें कि बीते दिनों लंदन यात्रा के दौरान सीएम अखिलेश की ऑस्टिन से मुलाकात हुई थी। अमेरिका के चार-चार प्रेसिडेंट्स का चुनावी कैंपेन सफलतापूर्वक संभाल चुके ऑस्टिन के बारे में सीएम ने भी पूरी जानकारी जुटा रखी है। अमेरिका की डेमोक्रेट पार्टी के चुनाव सलाहकार गेराल्ड ऑस्टिन साल 1968 से ही राष्ट्रपति चुनावों के लिए पार्टी की योजना बनाते रहे हैं। वे चार अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन के साथ-साथ बराक ओबामा के चुनाव कैंपेन को पूरी तरह से कामयाब बना चुके हैं। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री अखिलेश और ऑस्टिन दोनों ने सपा के पब्लिक रिलेशन और इमेज बिल्डिंग पर विस्तार से बात की। मुख्यमंत्री भी ऑस्टिन के काम से काफी संतुष्ट हैं। उन्होंने ऑस्टिन की सेवाएं लेने के लिए अपनी इच्छा भी जाहिर की है।
पीआर कंपनियां ब्रांडिंग और इमेज बिल्डिंग का काम कर नेताओं की नकारात्मक छवि को सकारात्मक करने का काम करती हैं। पीआर कंपनियां जनता या टार्गेट ऑडियंस के मन में किसी भी पार्टी की सकारात्मक इमेज बनाने में सक्षम होती हैं। फिर चाहे जनता उस पार्टी या व्यक्ति से नाराज ही क्यों न हों। हालांकि, अधिकतर बार हिट होने वाला ये फॉर्मूला कई बार फेल भी हो जाता है। पीआर फर्म जब भी किसी पॉलिटिकल पार्टी या नेता की ब्रांडिंग का काम करती हैं, तो उनका सबसे ज्यादा ध्यान टार्गेट ऑडियंस को प्रभावित करने वाले लोगों और चीजों पर होता है।
एजेंसियां सबसे पहले यूथ वोटर्स के बीच सीरियस इमेज रखने वाले प्रभावशाली लोगों को चुनने का काम करती हैं। कंपनी की ओर से अक्सर ये ध्यान रखा जाता है कि ये लोग राजनीतिक न हों और उनका थोड़ा-बहुत झुकाव पार्टी की ओर हो। समाज के अलग-अलग वर्ग से प्रभावशाली लोगों को चुनने के बाद उनसे आर्टिकल, बाइट और पब्लिक इवेंट में अप्रत्यक्ष तौर पर क्लाइंट (जिसकी ब्रांडिंग करनी हो) की तारीफ या उनकी इमेज को बेहतर करने का काम होता है। इन सबके बीच सोशल साइट्स, मीडिया मैनेजमेंट, स्पीच राइटिंग, प्रेस रिलीज मैनेजेमेंट, पब्लिक इवेंट कराना, वेब ब्लॉग और अन्य जगहों पर भी क्लाइंट की इमेज बिल्डिंग का काम जारी रहता है।
कांग्रेस ने लिया पीके का सहारा
पीके की टीम यानी प्रशांत किशोर करीब दो महीने से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों की वास्तविक स्थिति पर नजर रख रही है। कांग्रेस की बदहाली के कारणों और पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को कम सीटें मिलने की वजहों को तलाशने का काम शिद्दत के साथ कर रही है। इसमें वर्षों से पार्टी से जुड़े होने के बावजूद कार्यकर्ताओं का समर्थन और जनता में लोकप्रियता हासिल कर पाने में नाकाम नेताओं की सूची तैयार कर ली गई है। पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों का दौरा कर जाति और धर्म आधारित वोटरों का डाटा तैयार किया जा रहा है। हर विधानसभा सीट पर टिकटों का बंटवारा नेताओं की लोकप्रियता, उनकी सक्रियता, उपलब्धियों और जातिगत एवं धार्मिक समीकरणों के आधार पर किया जाएगा। ऐसे में टिकटों के बंटवारे को लेकर सबकी निगाह पार्टी मुख्यालय और प्रशांत किशोर की टीम पर लगी हुई है।प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने प्रदेश के सभी जिलों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सोनिया गांधी और राहुल गांधी को सौंप दी है। इस टीम ने प्रदेश में पार्टी की वास्तविक स्थिति के मुताबिक आगामी चुनाव में हासिल होने वाली संभावित सीटों का आंकड़ा भी सौंप दिया है। इसके अलावा पार्टी को चुनाव में 100 से अधिक सीटें हासिल करने और यूपी में सरकार बनाने के लिए अपेक्षित बदलावों की सूची भी सौंप दी है।
हालांकि राजनीति पण्डितो की माने तो कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की टीम चुनाव में बेहतर परिणाम के लिए अपने तरीके से काम करने की स्वतंत्रता चाहती है लेकिन पार्टी में मौजूद मठाधीशों को यह पसंद नहीं है। इसी वजह से प्रशांत किशोर से सुझावों पर पार्टी हाईकमान की तरफ से निर्णय आने में वक्त लग रहा है। वहीं प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने पार्टी हाईकमान को स्पष्ट कर दिया है कि वे दबाव में काम करेंगे, तो पार्टी को बेहतर रिजल्ट नहीं दे पायेंगे। इसलिए प्रशांत किशोर ने अपनी टीम के सदस्यों को पार्टी मुख्यालय से लेकर सभी प्रमुख जिलों में पार्टी कार्यालयों पर होने वाली गतिविधियों पर निगाह रखने का काम सौंप दिया है।
बीजेपी को मिला नया पीके, असम के बाद यूपी में तैयार है बीजेपी की पीके टीम?
2014 लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने बीजेपी को सत्ता के शिखर तक पंहुचाया. उसके बाद वो अलग हो गये. मगर कहते हैं न कहानी की पटकथा लिखने वालो की इस देश में कमी नही हैं. एक पीके जाने के बाद बीजेपी को दूसरा पीके मिला. औऱ कई सालो के बाद असम में कमल खिलाया। खैर लोकसभा में हुए 2014 के चुनावों में बीजेपी को जीत दिलाने की रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर ने पाला क्या बदला कि पीएम मोदी और अमित शाह का हर दांव उल्टा पड़ने लगा। जिसका परिणाम यह हुआ है कि पहले दिल्ली और फिर बिहार चुनाव में बीजेपी की दुर्गति अलग दिशा में दिखने लगी। इतना नहीं बीजेपी की इस हार की कहानी की पटकथा लिखने में प्रशांत किशोर का बड़ा हाथ माना जाता है। एक ओर जहां बीजेपी की हार और बिहार में नीतीश कुमार की जीत हुई तो राजनीति में पीके नाम से मशहूर हो चुके प्रशांत किशोर का सितारा भी बुलंदियों में पहुंच गया और वह चुनावी राजनीति में जीत की गारंटी बन गए। लेकिन अब बीजेपी के एक बार फिर से एक नया पीके मिला जिसने असम में कमल खिलाकर प्रशांत किशोर की गैरमौजूदगी को दर्ज कराया. जिसने असम जैसे राज्य जहां बीजेपी पिछले 40 सालों से जीत का सपना देख रही थी. वहां पर जीत दिला दी है। इस शख्स का नाम है रजत सेठी। तो फिर अब सवाल यह उठता है कि असम के बाद यूपी में भी इस पीके टीम को कमल खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी या नहीं. लेकिन वंही पीके यानी रजत सेठी की टीम आगामी विधानसभा चुनाव 2017 के लिये तैयार है। बस उसे हाईकमान के आदेश का इंतजार है. रजत सेठी हार्वर्ड में कोर्स के दौरान प्रोजेक्ट वर्क के लिए उन्होंने कुछ महीनों तक हिलेरी क्लिंटन के लिए कैम्पेन भी किया है. उनके कोर्स में कैम्पेन मैनेजमेंट का एक प्रोजेक्ट था. इस दौरान उन्हें अमेरिका के इलेक्शन मैनेजमेंट को समझने का मौका मिला।
बीजेपी का यह नया पीके उत्तरप्रदेश के कानपुर का रहने वाला है. रजत सेठी ने आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई की है औऱ उसके बाद रजत ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में ग्रेजुएशन किया और उसके बाद वो साल 2012 में पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए. हालांकि माना जाता है कि रजत की फैमिली आरएसएस के काफी करीबी रही है इसलिए जब वो पढ़ाई के बाद इंडिया लौटे तो उन्होंने आईटी कंपनी में नौकरी करने के बजाय बीजेपी पार्टी को हाईटेक करने का बीड़ा उठाया. हालांकि वंही ये भी माना जाता है कि 2014 में रजत की मुलाकात अमेरिका में ही राम माधव से हुई थी. रजत के प्लान और उनकी भारतीय राजनीति में रुचि देखकर राम माधव प्रभावित हो गए थे. जिसके बाद रजत ने भारत वापस आने पर बीजेपी को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। रजत ने अपनी 6 लोगों की टीम बनायी. जिनमें दो लोग ऐसे थे जो मोदी को पीएम बनाने वाले प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा रह चुके थे। चुनाव को लेकर रजत ने शुरुआत में 6 लोगों की टीम बनाई जिसमें कई आईआईटी से पढ़े थे। रजत की टीम ने ही असम निर्माण का नारा दिया। जो असम के लोगों की जुबान पर चढ़ गया। रजत की टीम दिन में 20 घंटे काम करती थी और बीजेपी के सभी नेताओं को सीधे सलाह देती थी। रजत के साथ अच्छी बात यह है कि वह संघ और बीजेपी की विचाराधार में खुद को फिट पाते हैं और उनको पार्टी के अंदर की बातें समझने में ज्यादा देर नहीं लगती है।
माया सर्वजन हिताय के फार्मूले पर अग्रसर
बसपा को पूर्व की भांति ही ‘सर्वजन हिताय’ के फार्मूले पर भरोसा है लेकिन अमूमन सत्ता के खिलाफ जो नाराजगी जनता की रहती है, वह बसपा पर भारी पड़ सकती है। इस नाराजगी की वजह से 2-3 प्रतिशत वोट भी इधर-उधर हो गया तो बसपा के लिए सत्ता बचाना आसान नहीं होगा। वैसे बसपा सरकार से जनता की नाराजगी की वजह कम नहीं है। मायावती ने चुनाव से पहले गुंडों की छाती पर चढऩे की बात कही थी, इसीलिए मुलायम के गुंडाराज से तंग जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया था, लेकिन बसपा सरकार के ‘खाने के दांत और दिखाने के दांत और’ निकले। मायावती का अपने पूरे कार्यकाल के दौरान जनता से कटा रहना भारी पड़ सकता है। 2012 और 2014 में बसपा को मिली करारी शिकस्त के बाद मायावती की राजनीति और व्यक्तिगत जीवन में आये बदलाव की कि जाये तो दोनों ही मोर्चों पर बसपा सुप्रीमो काफी सजग नजर आती है।
बसपा दलितों और मुसलमान वोट बैंक के अलावा ऊंची जाति के एक वर्ग के वोटों पर भी नजर रखे हुए है। इसके लिए इस समुदाय के गरीब लोगों के लिए बसपा सुप्रीमो नौकरी में आरक्षण की जोरदार वकालत कर रही हैं। याद रखना जरूरी है कि 2007 के चुनावों में दलित-मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों की गोलाबंदी करके बसपा ने 403 में से 206 सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी। पार्टी को मिलने वाले कुल वोटों में 30.43 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं का था।
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