एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-2)
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एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड… (पार्ट-1)
सोमवार का दिन था। नियम पूर्वक शर्मा जी जल्दी उठ मार्निंग वॉक से फ़रीक़ हो अख़बार पढ़ने के लिए जम चुके थे। देश-दुनिया में क्या हो रहा है बहुत ही ध्यान से पढ़ते हैं। रोज़ की तरह ही ख़बरों को देख उनके माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रहीं थीं और जुबान पर बड़बड़ाहट। कारण साफ था, कहीं कुछ अच्छा होता नहीं दिख रहा था। अच्छी ख़बरें ढूंढे से नहीं मिल रहीं थीं। पहली ही बड़ी ख़बर ’आतंकवादियों ने आतंक फैला रखा है – कई बेकसूर मारे गए’, मानवता तो माने खत्म-सी हो गई है। सभी अपने-अपने नज़रिए से शब्दों के जुमले छोड़ कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। देश के बयानवीर एक-दूसरे पर शब्दों के तीर छोड़ घायल करने में लगे हुए हैं। ऐसी बड़ी-छोटी कई घटनाओं से पूरा अख़बार भरा पड़ा था जैसे – एक दोस्त ने दूसरे दोस्त का मर्डर कर दिया, कॉलेज के कुछ लड़कों ने बैंक डकैती कर ली, एक लड़की का गैंग रेप हो गया, दुनिया को नीति पर चलने का प्रवचन देने वाले बाबा बलात्कार के केस में जेल भेज दिए गए। ऐसी अनेक ख़बरों के जंजाल में उलझ रहे थे हमारे शर्मा जी। चेहरे पर चिंता लिए, बड़बड़ाते शर्मा जी पत्नी के हाथ की दो-तीन कप चाय पी चुके थे। चाय बनाते-बनाते, शर्मा जी की बड़बड़ाहट सुनते शर्मा जी का पारा अलग चढ़ रहा था।
एक कहानी : इनकम टैक्स की रेड शर्मा जी के यहां (पार्ट-1 यहाँ पढ़िए )
सुबह का समय, बारिश का दिन। प्रकृति ने अपनी अनुपम घटाएं बिखेर रखी हैं। पक्षियों की चहचहाहट, मोर का छतों पर आकर पंख फैलाना, उस पर सूरज की किरणें बादलों की ओट में सुंदर-सी चमक पैदा कर रही हैं। नज़ारा देखें तो लगता है कि जन्नत में आ गए। किंतु ज़िंदगी की इस आपा-धापी में ये सब देखने की फ़ुरसत कहां है। शर्मा जी कभी-कभार कोशिश भी करते हैं किंतु परेशानियां फिर उन्हें खींच लाती हैं।
रविवार की छुट्टी के बाद काम पर जाने में जोर बहुत आता है, शर्मा जी भी अख़बार पर आराम से जमे हुए थे। इतने में झुंझलाती सरला जी की आवाज़ सुनाई दी।
’’ऑफ़िस नहीं जाना है क्या? देश-दुनिया की छोड़ो, घर की सोचो। अपनी दुनिया संभालो। एक छोटी-सी दुनिया तो संभल नहीं रही है, बड़े आए पूरी दुनिया की चिंता करने। शर्मा जी कुछ संभलते उसके पहले फ़िर सरला जी बोल पड़ीं, ’’आपको ध्यान है अनु की कॉलेज की फ़ीस भरने का टाइम आ गया है।’’
इतने में शर्मा जी बोल पड़े, ’’टाइम तो आपके लाड़ले बेटे की फ़ीस भरने का भी आ गया है और जनाब हैं कि ख़्वाब देखने में ही लगे रहते हैं। देखो अभी भी सो रहे हैं। अब तुम ही बताओ बगैर पढ़े-लिखे ख़्वाब भी कैसे पूरे होंगे? बगैर पढ़े तो न नौकरी मिलेगी और न ही छोकरी।’’
इतने में मिसेज़ शर्मा तुनक गईं, ’’रहने दो खूब पढ़ने के बाद मुझे क्या मिला? तुम जैसा एक ईमानदार पति। मेरे पिताजी के कहने में आ गई कि लड़का बहुत अच्छा है, सरकारी नौकरी करता है। ज़िंदगी भर ऐश करोगी पर मेरे तो नसीब ही फूटे थे। काश मेरी भी कोई सुनता और आगे पढ़ने देता तो मैं आज डिप्टी कलेक्टर तो होती ही, एक बड़ी अफ़सर।’’
शर्मा जी ने समझ लिया अभी बहस का कोई फायदा नहीं, बात आग में घी का काम करेगी फिर पूरी ज़िंदगी का जमा खर्च सुनना पड़ेगा और जो गुनाह उन्होंने नहीं किया उसका भुगतान उन्हें करना होगा। दोनों के पिताजी का निर्णय था और उन्होंने भी एक आज्ञाकारी बेटे की तरह मान लिया। शर्मा जी तुरंत अख़बार की दुनिया छोड़ बाथरूम की ओर बढ़ गए। शर्मा जी बाथरूम के पास पहुंचे ही थे कि बेटी अनु पहले ही बाथरूम में घुस गई।
’’पापा आप बाद में तैयार हो जाना, आप थोड़ा लेट हो जाओगे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सरकारी नौकरी वैसे भी बड़े आराम की होती है। मुझे ज़रा भी देर हो गई तो क्लास में नहीं बैठने देंगे, फाइन अलग से लगा देते हैं। अब फ़ीस तो भरी नहीं जाती फाइन कहां से भरेंगे।’’
आज तो शर्मा जी सुन ही सुन रहे हैं। पत्नी कम पड़ रही थी जो बेटी भी सुना रही है किंतु शर्मा जी ने चुप रहना ही उचित समझा और बढ़ चले अपने पिता के कमरे की ओर, शायद वो ही समझेंगे उन्हें। पिता के कमरे में प्रवेश करते हैं तो देखते हैं मां तो सो रही है और पिताजी चुपचाप बैठे हैं गुमसुम से।
’’पिताजी आज क्या बात है बड़े चुप से बैठे हैं, मां भी अभी तक सो रही है, तबियत तो ठीक है?’’ पिता यानी मास्टर जी बोल पड़े, ’’हां बेटा, तुम सब की बातें सुन रहा हूं। सोच रहा हूं सारी उम्र मैंने ईमानदारी का पाठ पढ़ा कर सही किया या गलत। मैंने अपने बच्चों को सही शिक्षा दी या नहीं क्योंकि आज पैसा ईमानदारी पर भारी है। कल तक जिसे अच्छा माना जाता था आज वही गलत दिख रहा है। कल तक जिसे सर माथे पर रखते थे आज उसे पैर की जूती समझ रहे हैं।
इतने में शर्मा जी बोल पड़े, ’’अरे पिताजी, आप भी कहां इस बात में उलझ कर अपने आप को दोषी मान रहे हैं। आपने तो जो किया सही किया। समस्या लोगों की है, गलत ज्यादा देर तक नहीं टिकता। देखना एक दिन लोगों को सही-गलत समझ आ जाएगा। आप तो अब जीवन का आनंद लो, अपनी और मां की तबियत का ध्यान रखो। आपने मुझे ज़िंदगी से लड़ना सिखाया है, मैं भी कहां हार मानने वाला हूं।’’
शर्मा जी और उनके पिता बात कर ही रहे थे कि इतने में सरला जी ने कमरे में प्रवेश किया, ’’अरे तुम लड़ते रहो ना, हम सब को क्यों घसीट रहे हो? क्या आपकी ईमानदारी से घर चल जाएगा? अभी तक तो बात बच्चों की पढ़ाई तक ही थी, कल उनकी शादी भी करना है। पता नहीं कैसे होगा, सोच कर ही मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। राहुल कह रहा है कि मुझे ही कुछ मैनेज करना पड़ेगा।’’
सरला जी का इतना कहना भर था कि शर्मा जी गुस्से में, ’’अरे अपने लाड़ले बेटे को तो जगा दो, जागेगा तो कुछ करेगा ना।’’
अभी इन सब की बहस चल ही रही थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आती है। वो पल शर्मा परिवार में आ जाता है जिसने उनकी सीधी-सरल ज़िंदगी में भूचाल ला दिया। उन्हें कहां मालूम था कि उनकी खानदानी ईमानदारी के उसूल में उबाल आने वाला है। ख़ैर जब जो होना है होकर ही रहता है।
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