Thursday, August 31st, 2017
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पुलिस की गलती ने इस हसीना को बनाया डकैत, जीभ और ऊंगली काटने को है मशहूर




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सबसे पहले तो ताजी खबर यह जान लीजिए कि पुलिस और बुंदेलखंड की नामी दस्यू बबली कोल और एसटीएफ के बीच मुठभेड़ चल रही है और इस मुठभेड़ में पुलिस के एक एसआई के मारे जाने की खबर है। बुंदेलखंड कनेक्ट के हवाले से खबर है कि इस घटना में बबली कोल के गिरोह के साथियों को भी चोटें आई हैं।

खैर, अब आप सोच रहे होंगे कि है यह बबली कोल कौन है और एक बार चम्बल के बीहड़ों में फिर से किसका खौफ पसर गया है। तो आपको बता दें कि बबली कोल वह चरित्र है, जिसकी भूमिका खुद पुलिस ने अपनी एक गलती से तैयार की है।

आपको बबली के बारे में जानने से पहले थोड़ा पीछे जाना होगा और उस वक्त को याद करना होगा जब चम्बल के बीहड़ों में ददुआ और ठोकिया जैसे दस्यूओं का आतंक हुआ करता था। हालांकि अब इन दोनों का खात्मा हो चुका है। लेकिन इन्हीं दोनों की खोज करते करते पुलिस ने एक बड़ी गलती कर दी और उसके बाद बबली कोल का उदय हुआ।

बुंदेलखंड में इन दिनों आतंक का पर्याय बन चुकी बबली कोल की कहानी की शुरूआत साल 2007 में तब शुरू होती है जब एसटीएफ को ठोकिया की तलाश थी और वह कक्षा 12वीं में पढ़ने वाली बबली कोल को उसके गांव कोलान टिकरिया(जिला-चित्रकुट) से तमंचा दिखाने और ठोकिय़ा की मदद के जुर्म में गिरफ्तार कर लेती है।

बताया जाता है कि इसी छः माह के जेल के दौरान बबली की मुलाकात जेल में ही ठोकिया के साथी लाले पटेल से हुई और फिर दोनों ने अपनी आजादी का प्लान बनाते हुए अदालत में पेशी के दौरान पुलिस की गिरफ्त से फरार हो गए। इसके बाद दोनों पाठा के जंगलों में कूद गए और वहां से बबली के दस्यू बनने का सफर शुरू हुआ।

इस वक्त बबली की उम्र 35 साल है और उसका जन्म 1979 में हुआ था। बबली के पिता का नाम मजदूर रामचरन था और बबली ने कक्षा 12वीं तक की ही पढ़ाई की है। बताया जाता है कि जेल से फरार होने के बाद बबली ने पांच लोगों के साथ मिलकर अपना गैंग बना लिया लेकिन इस बीच ठोकिया एसटीएफ के एनकाउंटर में मारा गया।

एसटीएफ पाठा के जंगलों में एकछत्र राज कर रहे राज बलखड़िया को भी मार गिराने की फिराक में थी और बबली उसी के गैंग में शामिल हो गई। यहां बबली किसी को भी बलखड़िया के कहने पर मार गिराती थी। 2012 तक उसने एमपी-यूपी में कई लूट-हत्या की वारदातों से अपनी बादशाहत कायम कर ली और आज आलम यह है कि उसका आतंक चित्रकुट, बांदा, सतना, भिंड, मुरैना, तक फैल गया है।

कहा जाता है कि बबली इतनी शातिर है कि वह अपने पास मोबाइल नहीं रखती और उसके गैंग के सदस्य गद्दारी ना करें इसके उन्हें हर माह वेतन भी देती है। बबली के उपर हत्या पहला मामला साल 2012 में दर्ज हुआ लेकिन उसे नाम तब मिला जब उसने टिकरिया गांव के एक ही परिवार के पांच लोगों की नाक काटकर हाथ-पैर में गोली मार दी।

एक पत्रकार मित्र ने बताया कि बबली ने पेट्रोल डालकर आग लगा दिया था और अपने गैंग के सदस्यों से उसका वीडियो भी सूट कराया था। इसके बाद मुखबिरी के जुर्म में उसने दो लोगों की हत्या की और फिर तो बबली के द्वारा की गई हत्याओं से अखबार के सारे पन्ने भरने लगे।

खूनी बबली के कई किस्से स्थानीय लोग बताते हैं। कहा जाता है जब 2015 में बलखड़िया को एसटीएफ ने मुठभेड़ में घायल कर दिया तब बबली उसे कई किलोमीटर तक कंधों पर लेकर दौड़ती रही। उसने बलखड़िया की चिता को खुद आग दी थी। इसी चिता के वीडियो के आधार पर एसटीएफ ने बलखड़िया को मारने की पूष्टि की।

आज चित्रकूट समेत कई जिलों के 104 गांवो में बबली कोल का आतंक फैला हुआ है। उसके खिलाफ डकैती और हत्या के कई मामले दर्ज है, लेकिन पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद बबली कोल पकड़ में नहीं आ रही है। बबली को पकड़ने के लिए प्रशासन ने 7 लाख इनाम भी रखा हुआ है।

वह अपने विरोध में बोलने वाले की जीभ काटने से लेकर अंगुली तक काटने तक का कार्य करती है। उसने कई नेताओं का भी अपहरण कर उसने रंगदारी वसूली है। बबली के हाथ कई बेगुनाह मजदूरों के खून से भी रंगे हैं और इसलिए आज एसटीएफ उसे मार गिराना चाहती है इसके लिए एसटीएफ का अभियान चल चुका है और कभी भी उसके मारे जानें की खबर आ सकती है।

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