अगर दुनिया में मेरे जैसी बांझ ना होती तो दुनिया में बच्चों की बाढ़ ही आ जाती
फिल्म का नाम : पार्च्ड
निर्देशक : लीना यादव
कलाकार : राधिका आप्टे, सुरविन चावला और तनिष्ठा चटर्जी।
स्टार : साढ़े तीन स्टार
अवधि : 1 घंटा 58 मिनट
बॉलीवुड फिल्म का मतलब केवल एंटरटेनमेंट नहीं होता है। जी हां आजकल फिल्मों को लेकर लोगों का नजरिया बदल गया है आप हाल ही में आई फिल्म पिंक को ही देख लिजिए। खैर लीना यादव द्वारा निर्देशित और अजय देवगन द्वारा निर्मित फिल्म पार्च्ड इस शुक्रवार को रिलीज हो गई है। पार्च्ड शब्द जिसका हिंदी में अर्थ होता है सूखा, शुष्क या झुलसा। बता दें कि फिल्म रिलीज के पहले ही काफी चर्चा में है। फिल्म का टीजर ही फिलम के दमदार होने को दिखता है। यह फिल्म इंडिया में महिलाओं के लिए बनी रूढ़िवादी परम्पराओं को दर्शाएगा। ये वैसी परम्पराएं हैं जो सदियों से चली आ रही हैं और आज भी कई इलाकों में जिंदा है।
स्टोरी
पार्च्ड की कहानी गुजरात के कच्छ के एक दूरदराज बसे एक छोटे से गांव से शुरू होती है। गांव की पंचायत गांव की एक नवविवाहिता को अपने पति के घर लौटने का फैसला देती है, महिला अपने पति के घर वापस नहीं जाता चाहती, क्योंकि वहां उसका बूढ़ा ससुर उसका यौन शोषण करता है, महिला अपना यह दर्द अपनी मां के साथ भी बांटती है, पर मां भी साथ नहीं देती है। फिल्म इस गांव की चार महिलाओं पर केन्द्रित है।
रानी (तनिष्ठा चटर्जी) की विधवा के रोल में हैं। एक ऐक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो चुकी है। रानी अब अपने बेटे गुलाब की शादी करना चाहती है ताकि उसके वीरान घर में बहू आ सके। गुलाब की मर्जी के खिलाफ रानी उसकी शादी कम उम्र की जानकी (लहर खान) से करती है। जानकी अभी स्कूल में पढ़ रही है, लेकिन इसके बावजूद जानकी की शादी गुलाब से होती है। शादी के बाद भी गुलाब अपनी पत्नी को पीटता है, रानी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही। रानी की एक सहेली लाजो (राधिका आप्टे) है, लाजो शादी के बाद मां नहीं बन सकी तो उसका शराबी पति उसे रोजाना बुरी तरह से पीटता है। इसी गांव में चल रही एक नाटक मंडली में डांस करने वाली बिजली का किरदार सुरवीन चावला ने निभाया है। डांस ग्रुप में नाचने रानी, लाजो, बिजली और जानकी को मर्दों से नफरत है, हर राज पुरुष प्रधान समाज में कुचली जा रही इन चारों महिलाओं के इर्दगिर्द घूमती इस कहानी में इन चारों का मकसद पुरुषों की कैद से छुटकारा और उनसे मिलने वाली प्रताड़ना से आजादी हासिल करना है। फिल्म में वैश्यावृत्ति, बाल विवाह, रंग भेद जैसे मुद्दों को बखूबी उठाया गया है। राधिका पर फिल्माया गया एक डायलॉग बहुत ही जोरदार तरीके से अपना प्रभाव छोड़ता हुआ दिखता है…
“अगर दुनिया में मेरे जैसी बांझ ना होती तो दुनिया में बच्चों की बाढ़ ही आ जाती”
संगीत
फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर काफी दिलचस्प है जो फिल्म के सीन्स के साथ बेहतरीन लगता है, इसके लिए हितेश सोनिक बधाई के पात्र हैं। गानों की क्वालिटी को देखकर उसके पीछे हुआ रिसर्च वर्क साफ नजर आता है।
क्यों देखें
अगर आप मसाला बॉलीवुड फिल्म से हट कर एक अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं। जिसमे कहानी के साथ साथ एक बेहतरीन अभिनय, बेहतरीन निर्देशन, गंभीर मुद्दा और एक नई सोच मिले तो आप इस फिल्म को जरूर देखे।
क्यों ना देखें
फिल्म की कमजोर कड़ी शायद इसके मुद्दे हो सकते हैं, जो किघ् हिंदी फिल्मों को देखने वाले दर्शकों के लिए नए नहीं हैं, बस फिल्मांकन का ढंग बदला है, शायद यही कारण है किघ् खास तरह की ऑडियन्स ही सिनेमाघर तक पहुचे।