ये थी बॉलीवुड की फर्स्ट स्टंट वुमन, शेरों के साथ की थी शूटिंग
भारत में सिनेमा निर्माण का दौरा उन्नीसवीं सदी के शुरुआत से प्रारंभ हुआ. शुरुआती दौर में महिलाओं के अभिनय को बेहद सीमित दायरे में रख कर फिल्माया जाता था. मगर समय बदलने के साथ धीरे-धीरे नायिकाओं ने अपने बेजोड़ अभिनय से आधे पर्दे पर अपना राज जमा लिया. नायिकाएं बदलाव के इस दौर में खतरनाक स्टंट के चलन से भी दूर नहीं रहीं.एक समय था, जब हमारा देश सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहां की भौगोलिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक संपन्नता ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। वहीं भारतीय मसालों ने भी विदेशियों को लुभाना शुरू किया। आज भी भारत की ये विशेषताएं दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। भारतवासियों ने हमेशा यहां आई विदेशी संस्कृति और सभ्यता को न केवल अपने दिल में बसाया बल्कि इसके साथ-साथ ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश भी दुनिया को दिया।
उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से भारत में सिनेमा-निर्माण का दौर शुरू हुआ और बहुत-ही कम समय में यह दुनिया में एक आकर्षण बनता गया। बर्फीली वादियों में रेशमी साड़ी में लिपटी नायिका के साथ नायक का प्रेम हो या फिर नायक के खतरनाक स्टंट। इन सभी का अनोखा मेल दिखाती हैं ये भारतीय फिल्में। शुरुआती दौर में महिलाओं के अभिनय को बेहद सीमित दायरे में रख कर फिल्माया जाता था। मगर समय बदलने के साथ धीरे-धीरे नायिकाओं ने अपने बेजोड़ अभिनय से आधे पर्दे पर अपना राज जमा लिया। नायिकाएं बदलाव के इस दौर में खतरनाक स्टंट के चलन से भी दूर नहीं रहीं।
डर से कोसों दूर थी – ‘फीयरलेस नादिया’ कहलाई
भारतीय सिनेमा में नायिकाओं द्वारा स्टंट करने के चलन की नींव साल 1930 में आस्ट्रेलिया मूल की भारतीय मैरी एन इवांस ने रखी, जो आगे चल कर ‘फीयरलेस नादिया’ के नाम से जानी गर्इं. यह थीं भारत की पहली महिला स्टंटवूमन. ब्रिटिश सेना के स्वयंसेवक स्कॉट्समैन हर्ब्रेट इवांस और मार्गरेट के घर 8 जनवरी 1908 में बेटी का जन्म हुआ. जिसका नाम उन्होंने मैरी एन इवांस रखा. भारत आने से पहले वे आस्ट्रेलिया में रहते थे. पांच साल की उम्र में साल 1913 में मैरी अपने पिता के साथ पहली बार बंबई आई थीं.
साल 1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उसके पिता की आकस्मिक मृत्यु हो गई. मां के साथ उन्हें पेशावर में शरण लेनी पड़ी. वहां मैरी ने घुड़सवारी, शिकार, मछली पकड़ना और शूटिंग करना सीखा. साल 1928 में वह फिर अपनी मां के साथ भारत आर्इं और उन्होंने मैडम एस्ट्रोवा से बैले डांस सीखा. एक अर्मेनियाई ज्योतिषी ने मैरी के सफल भविष्य की बात कही थी. साथ ही उन्होंने बताया था कि अगर वह अंग्रेजी के अक्षर ‘N’ से कोई भी नाम रखती हैं, तो उसे सफलता जरूर मिलेगी। इसके बाद मैरी ने अपना नाम ‘नादिया’ रखा. साल 1930 में नादिया ने ज़ोरको सर्कस से अपने करियर की शुरुआत की और भारत के अलग-अलग शहरों का भ्रमण किया. नेक्स्ट पेज पर देखिये …. नादिया का बॉलीवुड में सफर
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