जब भी पुरानी फिल्मे देखता हूं तो एक गोरा-चिट्टा, गबरू विलेन आकर टीवी पर खड़ा हो जाता है। ये विलेन वही है जो हीरो को हमेशा से कमजोर करने की कोशिश करता है, उसे कमजोर करने के लिए वो कभी तो उसकी माँ को किडनैप कर लेता है तो कभी उसकी बहन को किडनैप करता है। इन सब के किडनैप होने के बाद भी हीरो उसकी बात नहीं मानता तो वो उसकी जान से भी ज्यादा प्यारी प्रेमिका को भी किडनैप लेता है। इसके बाद हीरो वहीं करता है जो विलेन उससे करवाता है लेकिन हर हिंदी फिल्म की कहानी की तरह हार तो विलेन की ही होती है। खैर हम बात यहां पर विलेन के गुणों की नहीं कर रहे है हम बात कर रहे है। हिंदी सिनेमा जगत के मशहूर विलेन प्रेम चोपड़ा की। जिन्होंने अपनी फिल्म में ही डॉयलाग दे दिया था ‘‘प्रेम नाम है मेरा प्रेम चोपड़ा’’। 23 सितंबर को प्रेम चोपड़ा के जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताने जा रहे है उनकी विलेन वाली फिल्मों और उनकी जिन्दगी की कुछ ख़ास बातें…
वैसे तो हम विलेन को जब भी सोचते है तब उसके बारे में एक बुरा प्रतिबिंब ही हमारे मस्तिष्क में बनता है। हम सोचते हैं कि विलेन एक काला, मोटा और टकला सा कोई आदमी होगा। लेकिन इस गोरे-चिट्टे और हैंडसम से विलेन ने बॉलीवुड की फिल्मों में जोरदार तहलका मचाया। इसकी वजह से हीरो को बहुत परेशान होना पड़ा और इसी के कारण कई हीरो को फेमस होने का मौका मिला। 23 सितंबर 1935 को जन्मे प्रेम चोपड़ा आज अपना 81 वां जन्मदिन मना रहे हैं। आपको बता दे कि मिस्टर चोपड़ा का जन्म लाहौर में हुआ था और अपने परिवार में वे छह भाई बहनों में तीसरे नंबर पर थे। भारत और पाकिस्तान के बंटवारें का दर्द इनके परिवार को झेलना पड़ा जिसके कारण इनका पूरा परिवार लाहौर से शिमला आ गया। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई शिमला से पूरी करने के बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातक की शिक्षा पूरी की। इस दौरान वह अपने कॉलेज में अभिनय भी किया करते थे।
बनना चाहते थे हीरो
कॉलेज पूरा करने के बाद प्रेम चोपड़ा ने ये निश्चय किया कि वे हिंदी फिल्म जगत में एक अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बनाएंगे लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने लेकिन उन्होंने अपने पिता से भी कह दिया था कि वे सिर्फ अभिनेता बनना चाहते है। उनके पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर बने। अपने सपने को साकार करने के लिये वह पचास के दशक के अंतिम वर्षों में मुंबई आ गये।
पहली फिल्म में ही हुए हिट
प्रेम चोपड़ा ने फिल्मों में आने के लिए बहुत संघर्ष किया था। मुंबई आने के बाद प्रेम चोपड़ा को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने जीवन यापन के लिये वह टाइम्स ऑफ इंडिया के सर्कुलेशन विभाग में काम करने लगे। इस दौरान फिल्मों में काम करने के लिये वह संघर्षरत रहे। इस बीच उन्हें एक पंजाबी फिल्म चौधरी करनैल भसह में काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1960 में रिलीज हुई ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई और प्रेम चोपड़ा अपनी एक नई पहचान बना पाने में सफल हुए।
‘वो कौन थी’ में बने ‘विलेन’
साल 1964 में रिलीज हुई फिल्म ‘वो कौन थी’ प्रेम चोपड़ा के लिए काफी सफल फिल्म रही। राज खोंसला के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्रेम चोपड़ा ने खलनायक का किरदार निभाया था। ये फिल्म मनोज कुमार और साधना की मुख्य भूमिका वाली रहस्य और रोमांच से भरी फिल्म थी। इस फिल्म से प्रेम चोपड़ा को खलनायक के रूप में पहचान बनाने में कामयाबी मिली।
देशभक्ति का ज़ज्बा भी दिखा
वर्ष 1965 में प्रेम चोपड़ा की एक महत्वपूर्ण फिल्म ’शहीद’ प्रदर्शित हुयी। देश भक्ति के जज्बे से परिपूर्ण इस फिल्म में उन्होंने अपने किरदार से दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके बाद उन्हें तीसरी मंजिल और मेरा साया जैसी फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। इन फिल्मों में उनके अभिनय के विविध रूप देखने को मिले।
वर्ष 1967 में प्रेम चोपड़ा को निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार की फिल्म ’उपकार’ में काम करने का अवसर मिला। जय जवान जय किसान के नारे पर बनी इस फिल्म में उन्होंने मनोज कुमार के भाई की भूमिका निभाई। उनकी यह भूमिका काफी हद तक ग्रे शेड्स लिये हुयी थी इसके बावजूद वह दर्शकों की सहानुभूति पाने में कामयाब रहे।
फिल्म ’उपकार’ की कामयाबी के बाद प्रेम चोपड़ा को कई अच्छी और बड़े बजट की फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये जिनमें एराउंड द वर्ल्ड, झुक गया आसमान, डोली, दो रास्ते, पूरब और पश्चिम, प्रेम पुजारी, कटी पतंग, दो रास्ते, हरे रामा हरे कृष्णा, गोरा और काला और अपराध जैसी फिल्में शामिल थी। इन फिल्मों में उन्हें देवानंद, राजकपूर, राजेश खन्ना और राजेन्द्र कुमार जैसे सितारों के साथ काम करने का अवसर मिला और वह सफलता की नयी बुलंदियों पर पहुंच गए।
‘प्रेम नाम है मेरा..’ ने बनाई दिलों में जगह
वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ’’बॉबी’’ प्रेम चोपड़ा के सिने करियर के लिये मील का पत्थर साबित हुयी। बॉलीवुड के पहले शोमैन राजकपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म में वह एक मवाली गुंडे की एक छोटी सी भूमिका में दिखाई दिये। इस फिल्म में उनका बोला गया यह संवाद प्रेम नाम है मेरा प्रेम चोपड़ा दर्शकों के जेहन में आज भी ताजा है।
अमिताभ के दोस्त बनकर मिला फिल्म फेयर
वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म ’’दो अनजाने’’ प्रेम चोपड़ा की एक और अहम फिल्म साबित हुयी। अमिताभ बच्चन और रेखा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में प्रेम चोपड़ा ने अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभाई थी। अपने दमदार अभिनय के लिये वह सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए।
वर्ष 1983 में प्रदर्शित फिल्म ’सौतन’ प्रेम चोपड़ा अभिनीत महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। सावन कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म में राजेश खन्ना, पद्मिनी कोल्हापुरी और टीना मुनीम ने मुख्य भूमिकाएं निभाई। इस फिल्म में उनका संवाद ’मैं वो बला हूं जो शीशे से पत्थर को तोड़ता हूं’आज भी दर्शको की जुबान पर है।
प्रेम चोपड़ा के सिने सफर में उनकी जोड़ी मशहूर निर्माता निर्देशक देवानंद, मनोज कुमार, राजकपूर, मनमोहन देसाई और यश चोपड़ा के साथ काफी पसंद की गयी। प्रेम चोपड़ा ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में अब तक लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया है। प्रेम चोपड़ा उम्र के इस पड़ाव में भी फिल्मों में नज़र आती है। पिछले कुछ सालों में वे तीन चार फिल्मों में नज़र आए है जिनमें उनकी एक्टिंग आज भी पहले की तरह ही जिंदा है। उनके जन्मदिन पर यहीं दुआ करते है कि वे स्वस्थ रहे और दुरूस्त रहे।