Thursday, August 31st, 2017
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बारह साल की उम्र में सायरा बनना चाहती थी दिलीप कुमार की बेगम




Entertainment
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बीते ज़माने की एक अदाकारा थीं ,नाम था नसीम बानो। भारत-पाक  विभाजन के समय नसीम अपने बेटे और बेटी को लेकर लंदन आ गईं और वहीं अपने बच्चों की परवरिश करने लगीं। लेकिन आज़ादी के बाद जब भी वे भारत छुट्टियां मनाने आतीं तो उनकी खूबसूरत बेटी अल्लाह से दुआएं किया करती  कि उसे अम्मी जैसी अदाकारा बना दे और अगर श्रीमति दिलीप कुमार बना दे तो सोने में सुहागा। अल्लाह भी मेहरबान हुआ उस बच्ची पर और उसकी दोनों मुरादें पूरी कर दीं। हम बात कर रहे है बालीवुड की बेहतरीन अभिनेत्रियों में से एक सायरा बानो की। जिन्होनें फिल्मी दुनिया में अपनी एक अलग छाप छोड़ी ।
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23 अगस्त 1941 को जन्मी सायरा का दिलीप कुमार के प्रति काफी लगाव था। वे घंटो बैठकर उनकी शूटिंग देखा करती थीं लेकिन ये सब कुछ यहां से शुरू नहीं हुआ था। ये शुरू हुआ था सायरा की अम्मी नसीम बानो के ज़माने से। उनकी अम्मी नसीम बानो उस दौर की बेहतरीन अभिनेत्रियों में शुमार थीं।उस समय ऐसा माना जाता था कि फिल्मों में आने वाली लड़कियाँ निचले तबकों से हुआ करती हैं। ऊँचे-रईस खानदान की नसीम ने जब फिल्मों में आने की जिद की, तो परिवार का विरोध झेलना पड़ा। लेकिन जब सोहराब मोदी जैसे निर्माता-निर्देशक ने नसीम को फिल्म हेमलेट में ओफिलिया का रोल ऑफर किया, तो सबका गुस्सा काफ़ूर हो गया। तीस के दशक की कई बेहतरीन फिल्मे नसीम के खाते में है।
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नसीम ने अपनी जिंदगी का हमसफर बनाया अहसान मियाँ को। अहसान नसीम को बहुत चाहते थे और उनकी खातिर उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया। 23 अगस्त 1941 को मसूरी में सायरा बानो का जन्म हुआ। उनके जन्म के कुछ सालों बाद ही 1947 में भारत-पाक का विभाजन हो गया। जिसके बाद अहसान मियाँ यानी सायरा के अब्बू पाकिस्तान जा बसे और नसीम बानो अपने दोनो बच्चों के साथ लंदन आ बसीं। छुट्टियां मनाने जब सायरा बानो भारत आती, तो वे घंटो तक बैठकर दिलीप कुमार की फिल्मों की शूटिंग देखा करती थी।
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शम्मी कपूर की ‘जंगली’ से ली बॉलीवुड में एंट्री
सायरा का बचपन का सपना कि वो उनकी अम्मी जैसी हीरोइन बनें जल्द ही सच हुआ और 1959 में उन्होनें बॉलीवुड में प्रवेश किया। नसीम के पुराने दोस्त रहे फिल्मालय के शशधर तथा सुबोध मुखर्जी ने फिल्म जंगली में शम्मी कपूर के साथ सायरा बानो को लॉन्च किया। उनकी पहली फिल्म बड़े पर्दे पर हिट हुई और उनकी अदाकारी की तारीफ भी हुई।
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राजेंद्र कुमार पर आया था दिल
1960 के दशक में जब सायरा की कई फ़िल्में सुपरहिट हो रही थींतभी उनका दिल राजेंद्र कुमार पर आया। राजेन्द्र तब जुबली कुमार के नाम से जाने जाते थे।  राजेंद्र कुमार के साथ आई उनकी फिल्म ‘आई मिलन की बेला’ से ही दोनों के रोमांस के चर्चे शुरू हो गए थे। राजेंद्र कुमार उस समय शादीशुदा थे और उनके तीन बच्चे थे। उस समय उनकी पत्नी भी इस बात से काफी नाराज़ थीं। हालांकि दोनों के बीच का रोमांस ज्यादा दिन नहीं चला और जल्द ही दोनों अलग हो गए। इन्हें अलग करने में मुख्य भूमिका निभाई सायरा बानो की मां नसीम बानो और दिलीप कुमार नें।
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दिलीप के परिवार से बड़ी नजदीकियां
राजेंद्र कुमार और सायरा बानो की मोहब्बत के चर्चे जब उनकी अम्मी नसीम के कानों में पहुंचे तो उन्हें बेहद गुस्सा आया और वे अपनी बेटी के इस प्यार की दुश्मन बन गई। इन्हें अलग करने के लिए उन्होंने दिलीप कुमार की मदद ली। जिन दिनों उनकी अम्मी को सायरा बानों के शादीशुदा राजेंद्र कुमार से प्यार होने की ख़बर लगी तभी उन्होंने दिलीप कुमार के पाली हिल वाले बंगले के पास जमीन खरीदकर घर बनवा लिया था। सायरा का दिलीप के घर आना-जाना और बहनों से मेल-मिलाप जारी था।
नसीम ने पड़ोसी दिलीप साब की मदद ली और उनसे कहा कि सायरा को वे समझाइश दें ताकि राजेन्द्र कुमार से पीछा छूटे। बेमन से दिलीप कुमार ने यह काम किया क्योंकि वे सायरा के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं थे और शादी का तो दूर-दूर तक इरादा नहीं था।
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अपने जन्मदिन पर शादी का रखा प्रस्ताव
23 अगस्त 1965 क, जब सायरा का जन्मदिन था उस दिन दिलीप को भी बुलाया गया लेकिन उन्होंने आने में असमर्थता जता दी थी। मगर सायरा को राजेंद्र कुमार के आगमन की ज्यादा उत्सुकता थी। राजेंद्र कुमार अपनी पत्नी के साथ उस पार्टी में पहुंचे वहीं दूसरी ओर सायरा की अम्मी दिलीप कुमार को मनाकर ले आईं ताकि वे सायरा से राजेंद्र कुमार के बारे में बात कर सकें। दिलीप को ये सब काफी अजीब लगा क्योंकि वे सायरा के बारें में ज्यादा कुछ जानते नहीं थे और ये उनकी जिदंगी का सवाल था।
चूंकि सायरा की अम्मी की जिद के आगे दिलीप कुमार पार्टी में पहुंचे तो वे दिलीप कुमार को देखकर काफी खुश हो गईं। दिलीप कुमार अपनी बात अलग ढंग से मनवाने के लिए भी जाने जाते है तो उन्होंने सायरा बानो से राजेंद्र कुमार को लेकर कहा कि

‘‘वे नौजवान, सुंदर, शिक्षित स्त्री हैं, फिर ऐसे रिश्ते के लिए क्यों जिद पर अड़ी हैं, जिसके नतीजे में सिवाय दुःख के कुछ नहीं मिल सकता?’’ 

दिलीप कुमार ने जब ये बातें सायरा बानो से कहीं तो उन्होंनें पलट कर दिलीप कुमार से पूंछा

 ‘‘तो क्या आप मुझसे शादी करने के लिए तैयार हैं?’’

 दिलीप यह सवाल सुनकर चकित रह गए, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। 
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उनके इस सवाल को सुनकर दिलीप कुमार ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन इसके बाद इन दोनों की शादी के लिए पहल शुरू हो गई। नसीम और एस. मुखर्जी अक्सर दिलीप कुमार से मिलकर सायरा से विवाह के बात छेड़ा करते थे। सायरा भी इसके बाद अपनी तरफ से कोशिश करने लगीं। एक बार जब दिलीप कुमार मद्रास में बीमार हुए तो सायरा पहली फ्लाइट पकड़कर मद्रास पहुँचीं और वहां दिलीप कुमार की नर्स की तरह सेवा की। ठीक होने के बाद वे अक्सर मिलने लगे और दिलीप कुमार का झुकाव भी सायरा बानो की तरफ हो गया। 11 अक्टूबर 1966 को उन्होनें सायरा बानो से शादी कर ली।
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दिलीप कुमार की जिंदगी में आई दूसरी सायरा
दिलीप कुमार वैसे तो बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे। शादी के बाद दोनों ने फिल्मों में काम जारी रखा। दोनों ने साथ में कई फिल्में भी कीं। फिल्म ‘विक्टोरिया नंबर 203’ के समय वे गर्भवती थी और अपना अधिकतर समय फिल्मों में ही देती थीं। इसके परिणामस्वरूप उनका बच्चा मृत पैदा हुआ जिससे दिलीप कुमार टूट गए। 1979 में दिलीप कुमार की जिंदगी में एक तूफान आया और एक दूसरी औरत इन दोनों के बीच आ गई। ये औरत हैदराबाद की ‘अस्मा’ थी। कथित तौर पर अस्मा और दिलीप कुमार ने 30 मई 1980 को बंगलोर में शादी की पर बहुत जल्द ही इस शादी को तोड़ दिया। अस्मा से तलाक के बाद दिलीप कुमार और सायरा बानू फ़िर से एक हो गए।
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सायरा बनी दिलीप का एकमात्र सहारा
इन दिनों दिलीप कुमार बुढ़ापे की दहलीज़ पर हैं। अल्जाइमर की बीमारी के चलते सायरा ही उनकी एकमात्र याददाश्त और सहारा हैं। कुछ पार्टियों और फिल्मी प्रीमियर के मौके पर वे नज़र भी आते हैं। सायरा बानो ने अपने खाली समय को सामाजिक सेवा में भी लगाया है। मुंबई के दंगों के बाद घायल लोगों के ज़ख्मों पर मरहम लगाने और फिर से एक नई जिंदगी की शुरुआत करने के काम में वे मदद करती हैं।

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