एक बार फिर गरमाया कावेरी विवाद, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हो रहा विरोध
अंग्रेजों के समय से चला आ रहा कावेरी जल विवाद एक बार फिर चर्चा में है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस संबध में कर्नाटक सरकार को आदेश दिया है कि तमिलनाडु में किसानों की हालत सुधारने के लिए अगले 10 दिनों तक 15,000 क्यूसेक कावेरी जल छोड़ा जाए। कोर्ट के इस आदेश के बाद से कर्नाटक के लोगों में नाराज़गी का माहौल बना हुआ है। वे इस फ़ैसले का विरोध कर रहे है। साथ ही जगह-जगह पर प्रदर्शन करते नज़र आ रहे है। आलम ये है कि कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया को सर्वदलीय बैठक को बुलाना पड़ा। बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी। 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भावनात्मक अपील करते हुए कहा था कि ”जीयो और जीने दो।”
कावेरी जल विवाद एक नज़र में
-कावेरी जल विवाद अंग्रेजों के समय का माना जाता है।
-1924 में इस मामले पर पहली बार समझौता हुआ लेकिन कुछ समय बाद केरल और पुडुचेरी इस विवाद में शामिल हुए थे।
-1972 में बनी एक कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की।
-1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एक समझौता किया गया। इस समझौते की घोषणा संसद में हुई थी । बावजूद इसके ये विवाद थमा नहीं ।
कुछ सालों बाद 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल की मांग की।चार साल बाद यानी कि 1990 में ट्रिब्यूनल का गठन हुआ। और ट्रिब्यूनल ने तय किया कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा।
-1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया । लेकिन ये विवाद थमा नहीं और तब से लेकर अब तक ये विवाद चलता आ रहा है।
क्या है इस विवाद की जड़?
इस विवाद की जड़ दो राज्यों की सोच है। एक ओर कर्नाटक का मानना है कि वह ब्रिटिश शासन के दौरान रियासत था। जबकि तमिलनाडु ब्रिटिश का गुलाम था। इसीलिए 1924 का समझौता न्यायसंगत नहीं है। वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत मानता है। साथ ही तमिलनाडु कहता है कि जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी उसे वहीं मिले।