किसी सेलिब्रिटी द्वारा किये गये विज्ञापन के मामले में उसकी क्या जिम्मेदारी होनी चाहिये? यह मामला पिछले दिनों उस समय जोर पकड़ गया जब लोगों ने ट्विटर पर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को निशाने पर ले लिया। लोगों ने आम्रपाली मिसयूज धोनी नामक टैग बनाकर धोनी का ध्यान इस बात की ओर दिलाना शुरू कर दिया कि कैसे आम्रपाली बिल्डर ने उन्हें ब्रांड एंबेसेडर बनाकर पहले लोगों का भरोसा जीता और अब तय समय से चार साल अधिक हो जाने के बावजूद वह उन्हें फ्लैट का पजेशन नहीं दे रहा है। मामला इतना बढ़ गया कि खुद धोनी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह आम्रपाली बिल्डर से बात करेंगे। इसके बाद कंपनी भी हरकत में आयी और उसने कहा कि इस मामले से धोनी का कोई लेनादेना नहीं है और वह जल्द से जल्द इसे निपटायेगी।
इस प्रकरण ने एक बार फिर उस पुरानी बहस को छेड़ दिया है कि आखिर किसी उत्पाद या ब्रांड का प्रचार करते समय उसके प्रचार से जुड़े सेलिब्रिटी को किन बातों का ध्यान रखना चाहिये? क्या उसे उस उत्पाद की गुणवत्ता से जुड़े दस्तावेजों का अध्ययन करना चाहिये? क्या उसे कोई डिस्क्लेमर चलाना चाहिये कि वह केवल पैसे लेकर यह विज्ञापन कर रहा है? या फिर उसे यह तय कर लेना चाहिये कि वह कुछ खास किस्म की चीजों के विज्ञापन नहीं करेगा।
एक ओर किमकार्दाशियां जैसे सेलिब्रिटी हैं जो ट्विटर के जरिये धोखे से ब्रांड प्रमोशन करके करोड़ों रुपये कंपनियों से ले रहे हैं। जबकि उनके फॉलोअर्स अपने भोलेपन में यह मान बैठते हैं कि वह ट्विटर पर जिन चीजों का जिक्र कर रही हैं, वास्तविक जीवन में भी उन्हीं ब्रांड का प्रयोग करती हैं। यह ग्राहकों के साथ एक किस्म की धोखाधड़ी है। इन दिनों एक पान मसाला के विज्ञापन में अजय देवगन को देखकर भी लोग जमकर अपनी नाराजगी प्रकट कर रहे हैं। जबकि अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा एक मशहूर ब्रांड की इलायची का विज्ञापन करती हैं जबकि हर कोई जानता है कि इलायची की आड़ में कंपनी पान मसाला का विज्ञापन कर रही है। नैतिक पहलू की बात करें तो खुद हमारे देश में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां अलग-अलग क्षेत्र की सितारा शख्सियतों ने कुछ खास चीजों का विज्ञापन करने से साफ मना कर दिया था।
पी गोपीचंद
सन 2001 में ऑल इंगलैंड बैडमिंटन टूर्नामेंट जीतने वाले पुलेला गोपीचंद ने एक कोला कंपनी का विज्ञापन मुंहमांगे पैसे मिलने पर भी नहीं किया था क्योंकि वह मानते थे कि कोला पीन स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। यह उस समय की बात है जब गोपीचंद अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे। वह प्रकाश पाडुकोण के बाद यह खिताब जीतने वाले देश के मात्र दूसरे खिलाड़ी हैं। गोपीचंद ने कहा कि अगर बच्चों के रोल मॉडल इन ड्रिंक्स के साथ विज्ञापन में नजर आयेंगे तो बच्चे अपने माता-पिता को इसे खरीदने के लिये जरूर मजबूर करेंगे।
अमिताभ बच्चन
सदी के महानायक कहे जाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी उस वक्त पेप्सी का विज्ञापन करना बंद कर दिया जब जयपुर में एक बच्ची ने अचानक उनसे पूछ दिया कि वह उस पेय पदार्थ का विज्ञापन क्यो करते हैं जिसे उसकी टीचर जहर कहती है। अमिताभ ने कहा कि उन्हें इस सवाल का जवाब नहीं सूझा और तत्काल उन्होंने फैसला कर लिया कि अब वह इसका विज्ञापन नहीं करेंगे। इतना ही नहीं वह शराब और तंबाकू का विज्ञापन भी नहीं करते क्योंकि वह इन उत्पादों का सेवन न तो करते हैं और न ही इसे अच्छा मानते हैं।
अमिताभ यह भी कहते हैं कि अब उन्होंने किसी भी विज्ञापन के लिए हां करने के पहले क्लाइंट से मिलना और उत्पाद के बारे हर अच्छी बुरी जानकारी जुटाना शुरू कर दिया है। निश्चित रूप से यह सराहनीय है।
सचिन तेंडुलकर
क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंडुलकर ने भी एक भारी धनराशि के बदले सिगरेट और शराब का विज्ञापन करने से मना कर दिया था। गौरतलब है कि यह विज्ञापन उनको सीधे तौर पर करना भी नहीं था क्योंकि देश का कानून इन उत्पादों का विज्ञापन करने की इजाजत नहीं देता। ऐसे में कंपनियां अपने किसी अन्य उत्पाद के बहाने सिगरेट या शराब का विज्ञापन करती हैं।
कंगना रानाउत
हाल ही में कंगना रानाउत ने एक फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन करने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि यह रंगभेदी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने बहुत मजबूती से यह बात कही थी कि किसी भी व्यक्ति के साथ रंग के आधार पर कोई भेद नहीं होना चाहिये और ऐसी कोई वजह नहीं है जिसके चलते कोई व्यक्ति अपना रंग बदलने की बात सोचे।
इसके अलावा भी क्रमश: अक्षय कुमार और अभय देओल जैसे नामी कलाकार पान मसाला और सिगरेट का विज्ञापन करने से मना कर चुके हैं क्योंकि ये उत्पाद सेहत के लिये हानिकारक हैं।
आ सकता है कानून
अगर संसदीय समिति की एक नई सिफारिश कानूनी रूप ग्रहण कर सकती है कि तो सेलिब्रिटी के लिए जाने परखे बिना किसी उत्पाद का विज्ञापन करना खासा मुश्किल हो सकता है। दरअसल एक संसदीय समिति ने अपनी ताजा सिफारिश में कहा है कि अगर कोई सेलिब्रिटी किसी भ्रामक विज्ञापन में काम करता है तो उसे 5 साल की जेल और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना चुकाना पड़ सकता है। अगर इस सिफारिश को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में शामिल कर लिया गया तो हालात बहुत मुश्किल हो सकते हैं।
यह बात उन सेलिब्रिटीज के लिए खासतौर पर दिक्कत पैदा कर सकती है जो तमाम चैनलों पर मोटा-पतला, गोरा काला होने की और डायबिटीज से लेकर कैंसर तक की दवाओं के विज्ञापन करते हैं और महालक्ष्मी यंत्र बेचते हैं। इसलिए क्योंकि ये विज्ञापन सीधे तौर पर चमत्कारिक औषधि का निषेध करने वाले अधिनियम के तहत दंडनीय हैं।
समिति ने कहा है कि किसी भी सेलिब्रिटी को ब्रांड प्रमोशन का अनुबंध हस्ताक्षर करने से पहले उस उत्पाद के गुणों और अवगुणों की पूरी जानकारी लेनी होगी क्योंकि उपभोक्ता कानून के तहत उनको उसके प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। केंद्र सरकार ने सांसद जे सी दिवाकर रेड्डी के अधीन इस समिति का गठन ही इसलिए किया था ताकि झूठे विज्ञापनों पर रोक लगाई जा सके।