राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के जन्मदिन पर पीएम मोदी ने उन्हें बधाई दी है। पीएम ने ट्वीट करके कहा कि ’’राष्ट्रपति मुखर्जी देश की धरोहर हैं। उनके विवेक और सूझबूझ का कोई सानी नहीं है। मैं हमारे प्रिय राष्ट्रपति को उनके जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं और उनके लंबे एवं स्वस्थ्य जीवन की कामना करता हूं।’’ प्रणब ने आज यानी शुक्रवार को अपनी जिंदगी के 80 साल पूरे कर लिए है। उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं उनके यहां तक के सफर से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में…
बचपन का नाम था पोलटू
प्रणब दा को बचपन में पोलटू या दकनम नाम से जाना जाता था। 13 नंबर को वे अपना लकी नंबर मानते हैं। जहां वे भारते के 13वें राष्ट्रपति हैं वहीं उन्हें रहने के लिए भी 13 नंबर का सरकारी बंगला मिला है। तेज बुद्धि वाले प्रणब ने 11 दिसंबर 1935 में मिराती गांव के स्वतंत्रता सेनानी कामदा किंकर मुखर्जी के घर जन्म लिया था जो कि पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में आता है।
जर्नलिस्ट भी रह चुके हैं प्रणब दा
प्रणब दा ने बीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एम.ए. की डिग्री और एल.एल.बी की डिग्री ली। अपने करियर के शुरुआती दौर में वे कोलकाता के डिप्टी एकाउंटेंट जनरल के ऑफिस में क्लर्क हुआ करते थे। 1963 में विद्यानगर कॉलेज में वे पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रहे। इसके अलावा उन्होंने ’डैशर डाक’ में पत्रकार के रुप में भी काम किया। जब 1969 में उन्होंने अजय मुखर्जी की अध्यक्षता वाली बांग्ला कांगेस में शामिल हुए तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजर उन पर पड़ी। इसके बाद प्रणब ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
जब जिंदगी में आईं शुभ्रा
13 जुलाई 1957 को उनकी शादी बांग्लादेश के ढाका में जन्मीं शुभ्रा से हुई थी। शुभ्रा जब 10 साल की थीं तब ही वे कोलकाता आ गई थीं। उन्हें इस बात का एहसास शुरु से ही था कि एक दिन वे भारत के राष्ट्रपति की पत्नी होने का गौरव जरुर प्राप्त करेंग। प्रणब और शुभ्रा की दो बेटे और एक बेटी है। प्रणब दा की बेटी शर्मिष्ठा एक कथक डांसर हैं। वहीं उनके बेटे अभिजीत उस वक्त राजनीति में उतरे जब उनके पिता राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बने थे।
जब राजीव गांधी से हुए थे खफा
बांग्ला कांग्रेस के सदस्य रहते हुए उन्होंने 1969 में राज्य सभी की सीट जीती। बांग्ला कांग्रेस का जल्द ही कांग्रेस में विलय होने वाला था। 2004 में उन्होंने पहली बार लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा। जिसमें जंगीपुर लोकसभा सीट से उन्होंने जीत हासिल की। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब को उम्मीद थी कि पार्टी का उत्तराधिकारी उन्हें ही चुना जाएगा। लेकिन ये हक इंदिरा के बेटे राजीव को मिल गया और राजीव ने प्रणब को कैबिनेट में शामिल ही नहीं किया। राजीव की इस बात से खफा होकर प्रणब ने पार्टी छोड़ कर अपनी नई पार्टी की स्थापना की, जिसका नाम उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी रखा। जब 1991 में पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री बने तब प्रणब को योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। तब से ही उनके नेतृत्व को पार्टी के विभिन्न मतभेदों को सुलझाने से लेकर नीतिगत मामलों पर उचित माना जाने लगा।
कई विभागों की संभाली कमान
उन्होंने इंदिरा गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह जैसे मंत्रियों के साथ काम किया। डॉ. मनमोहन के नेतृत्व में काम करना उनके लिए थोड़ा कठिन रहा क्योंकि जब डॉ. मनमोहन सिंह आरबीआई के गवर्नर थे उस समय प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे। प्रणब ने वित्त, रक्षा, विदेश और वाणिज्य मंत्रालय जैसे विभागों को संभाला है लेकिन उन्हें गृह मंत्रालय को संभालने का गौरव कभी प्राप्त नहीं हुआ। प्रणब दा ने राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने के बाद कुल 7 मुजरिमों की दया याचिका को खारिज किया। इनमें अजमल कसाब और अफजल गुरु की दया याचिका भी शामिल थीं।
बंगाली लहजे पर है गर्व
प्रणब दा को अपने बंगाली लहजे पर बहुत गर्व है। वे अंग्रेजी भी बंगाली लहजे में ही बोलते हैं। पीएम इंदिरा गांधी ने उन्हें एक इंग्लिश ट्यूटर लगवाने और अपने इंग्लिश बोलने के लहजे को सुधारने के लिए भी कहा था लेकिन उन्होंने इंदिरा की इस सलाह को नहीं माना क्योंकि वे बंगाली लहजे के साथ ही सहज थे। प्रणब दा चीनी राजनीतिज्ञ देंग जियाओपिंग से प्रेरित हैं। वे लगभग 40 वर्षों से रोज डायरी लिखते आ रहे हैं। उनका मानना है कि जिंदगी में हमारे साथ जो भी अच्छा-बुरा होता है, हमें उसका रिकॉर्ड रखना चाहिए। प्रणब दा एक अच्छे पाठक भी हैं वे एक साथ तीन किताबें पढ़ते हैं।
चावल-मछली करी के हैं शौकीन
प्रणब को चावल के साथ मछली करी बहुत पसंद है। वे मंगलवार को छोड़कर हर रोज चावल-मछली करी खाते हैं। इसके अलावा वे खसखस के भी शौकीन हैं। वे पूर्णतः धार्मिक व्यक्ति हैं और दुर्गा मां में विश्वास रखते हैं।
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