कांग्रेस का पतन या पतझड़
127 साल पुरानी कांग्रेस, जिसने इस देश पर लंबे समय तक राज किया। कई दिग्गज व्यक्तित्व के धनी इसके सिपहसालार रहे, जिन्होंने इसे नित नई ऊंचाईयों से नवाजा। देखा जाए तो केंद्र में हमेशा यह एक मात्र राष्ट्रीय पार्टी रही, जिसके आगे कोई भी पार्टी संपूर्ण देश पर राज नहीं कर पाई। गाहे-बगाहे जनता पार्टी जो अब भारतीय जनता पार्टी बन गई है, कभी-कभार उभरी भी, सरकार भी बनाई किंतु कभी भी संपूर्ण राष्ट्र पर अपना कब्जा नहीं कर पाई। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी प्रकार राजनैतिक दलों में नित नए परिवर्तन समय-समय पर होते रहे हैं। आज हम समय देख रहे हैं, देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस के विघटन का। कांग्रेस की जो स्थिति आज है वह कभी भी नहीं रही। चुनाव दर चुनाव कांग्रेस को नए-नए घाव मिल रहे हैं जो कहीं ना कहीं उसके पतन की ओर इंगित कर रहे हैं। जिस प्रकार प्रकृति के चक्र में हर चीज का समय सुनिश्चित होता है, जीवन व मृत्यु का चक्र चलता रहता है, लगता है इसी प्रकार कांग्रेस भी अपनी उम्र पूरी करने की कगार पर आ गई है। क्या यह इसका पतन है? या जिस प्रकार पतझड़ का मौसम आता है, फिर बहार आती है, उसी तर्ज पर कांग्रेस के भी पत्ते भर गिर रहे हैं फिर नई कोंपलें फूटेंगीं, फिर बहार आएगी।
गांधी परिवार का बेअसर होता तिलिस्म
आजादी के पूर्व की कांग्रेस एक अलग बात थी और बाद की कांग्रेस अलग। हमें बात करना चाहिए आजादी के बाद की कांग्रेस की, जिसे देखा जाए तो नेहरू और गांधी परिवार ने ही चलाया है। जिसकी धुरी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती आई है। कांग्रेस को एक सूत्र में पिरोए रखने का कार्य भी इन्होंने किया। किंतु आज देखा जाए तो यहां गांधी परिवार का जादू अब खत्म सा होता दिखाई दे रहा है। उनमें इसे बांधे रखने की क्षमता खत्म होती सी दिखाई दे रही है। उनकी जो पार्टी पर पकड़ होनी चाहिए वह भी नज़र नहीं आ रही है या यूं कहें कि अब इसके बिखरने की वजह भी यही गांधी परिवार ही है। पार्टी चाहे इसके लिए इन्हें जिम्मेदार नहीं माने किंतु हकीकत तो यही है। बात इंदिरा गांधी की करें तो उन्होंने बड़ी दबंगता से इसे ऊंचाईयों पर पहुंचाया। हालांकि उनके समय में ही मूल कांग्रेस में बिखराव शुरू हो गया था, जिससे हटकर उन्होंने कांग्रेस (इंदिरा) पार्टी का गठन किया और उस पर अपनी पकड़ बना कर संपूर्ण देश में फैल गइंर्। संजय गांधी इसका अगला चेहरा थे। बड़ी ही दबंगता से उन्होंने भी राजनैतिक सफर शुरू किया था किंतु बदकिस्मती थी कि वे दुर्घटना का शिकार हो गए। इंदिराजी की अचानक मौत ने संपूर्ण पार्टी को सकते में ला दिया था। उस समय कांग्रेस में दिग्गजों की कोई कमीं नहीं थी, किंतु उन सभी में संपूर्ण पार्टी को बांधे रखने की क्षमता की कमी थी, तब राजीव गांधी का पर्दापण हुआ।
राजीव गांधी ने हिचकौले लेती कांग्रेस को जैसे-तैसे संभाला ही था कि अचानक से वे भी दुर्घटना का शिकार हो गए। किंतु यहां पार्टी के महत्वपूर्ण क्षत्रप नरसिम्हारावजी ने संभाला जो गैर गांधी परिवार के पहले व्यक्ति थे। यहीं वह समय था जब गांधी परिवार का कंट्रोल कांग्रेस से खत्म हो रहा था। किंतु फिर मझदार में फंसी कांग्रेस को गति व ऊंचाई देने का कार्य सोनियाजी ने किया। जिस बखूबी से इन्होंने कांग्रेस को संभाला, उनकी काबिलियत के तो उनके विरोधी भी कायल हो गए। किंतु इसका सेंट्रल एक्सेल बदल कर राहुल गांधी पर आ गया, जिसे वह संभाल नहीं पा रहे हैं। बस यहीं पर फिर कांग्रेस का पतन शुरू हो गया। किसी भी आर्गेनाइजेशन के लिए उसका सेंट्रल कंट्रोल बहुत बढ़िया होना चाहिए। जितना वह मजबूत होगा उतना ऑर्गेनाइजेशन अच्छा चलेगा। उदाहरण के तौर पर नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए एक मजबूत केंद्र बनकर उभरे तो पूरे देश में छा गए। ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पास सेना नायकों की कमी है, किंतु उनको बांधे रखने वाला सेनापति कमजोर साबित हो रहा है।
कांग्रेस का भविष्य
लगातार हर जगह से हटती कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष भी नहीं दे पा रही है। देशभर में या तो भाजपा की सरकारें हैं या क्षेत्रिय पार्टियों की सरकारें कार्य कर रही हैं। ऐसे में केंद्र में मजबूत विपक्ष को बनाए रखने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी कांग्रेस के ऊपर आ जाती है जो कि वह भी अच्छे से नहीं निभा पा रही है। दबे-छुपे विरोध के स्वर कांग्रेस में उठ भी रहे हैं पर वह भी सीधे तौर पर गांधी परिवार पर बोल नहीं पा रहे हैं। जहां भी थोड़ी बहुत सफलता हासिल हो रही है वह क्षेत्रिय स्तर पर उनके क्षेत्रिय नायकों की वजह से है किंतु वह भी कब तक दम भर पाएंगे, यदि केंद्र में ही नेतृत्व कमजोर होगा। मजबूत विपक्ष के बिना सरकार भी निरंकुश हो जाती है और वे जनता के हित से हटकर कई गलत फैसले भी ले लेती है। वर्तमान समय में मजबूत और अच्छा विपक्ष कही नज़र नहीं आ रहा है, जो कि देश के लिए भी खतरनाक है। कांग्रेस का व मजबूत विपक्ष का होना वर्तमान राजनीति की आवश्यकता है। प्रकृति का नियम भी यही कहता है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रकृति के नियम के अनुसार भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है। किस प्रकार के इसमें परिवर्तन होता है। अभी तक तो जो उथल-पुथल हो रही है वह सब छोटे स्तर पर दिखलाई पड़ रही है, विपक्ष में भी और कांग्रेस में भी।
अंत में … यह पतन है या पतझड़
अक्सर यह देखने में आता है कि बस अब तो सब खत्म हो गया। अब तो बचा पाना मुश्किल है और शायद कई जगहों पर यह सत्य भी साबित होता है। किंतु हर बार ऐसा ही हो यह जरूरी नहीं। जिस प्रकार एक वृक्ष एक मौसम में पतझड़ का सामना करता है, उसकी सभी पत्तियां एक-एक करके सूख कर बिखरती जाती है, किंतु फिर मौसम करवट लेता है। फिर उसमें नई कोंपले अपना स्थान लेती है। फिर वह वृक्ष हरा-भरा-घना हो जाता है। क्या कांग्रेस का यह पतन साबित होगा या पतझड़? यह सब हमें देखना हैं। उम्मीद की किरण हमेशा रखना चाहिए।
जय हिंद
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