यहाँ से है गुजरता आतंक से छुटकारे का अहिंसक रास्ता
टेंट की दीवार से पीठ टिकाए बैठे अल-क़ायदा के 9 यमनी क़ैदियों के हाथों में उनकी पहचान के लिए ख़ास इलेक्ट्रॉनिक टैग लगे हुए थे. अपने हाथ बांधे बैठे ये 9 क़ैदी सहमे से दिख रहे थे. इनमें अधिकतर पुरुष थे और बीते 15 साल से अमरीकी सेना द्वारा चलाए जा रहे ग्वांतानामो बे में क़ैद थे. उनमें से एक शख़्स इसी साल अप्रैल में यहां आया था. BBC को इन कैदियों की तस्वीरें लेने की इजाज़त नहीं मिल पाई .
BBC के सुरक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर ने उन कैदियों से पूछा कि क्या उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का सऊदी अरब के दौरे के दौरान दिया गया इस्लाम और सहिष्णुता पर दिया भाषण सुना? उन्होंने ये भाषण TV पर सुना था. यह सवाल सुन कर उनके चेहरे पर मुस्कान तैर गई और वे एक-दूसरे को देखने लगे. उनमें से एक ने अपना हाथ अपने सीने पर रखा और कहा कि मुझे नहीं पता कि वो ईमानदारी से कह रहे थे या नहीं. सच्चाई जानने के लिए मुझे उनके दिल में झांककर देखना होगा. उनमें से सबसे उम्रदराज़ शख़्स ने सीने तक लंबी अपनी भूरी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा कि मेरा भी यही कहना है. लेकिन हम उन्हें उनके काम से ही जानेंगे. उनमें से एक ने कहा कि अब व्हाइट हाउस में सरकार बदल गई है. अब वहां जॉर्ज डब्ल्यू बुश नहीं हैं जिन्होंने उन्हें ग्वांतानामो बे भेजा था.
BBC के सुरक्षा संवाददाता फ्रैंक गार्डनर की इनके साथ मुलाकात होना ही अपने आप में सहज नहीं था. उन्हें पश्चिमी देशों से आए पत्रकारों और अकादमिक जानकारों से मिलने के लिए एक टेन्ट में लाकर बैठाया गया था. सऊदी अधिकारियों की निगाहें उन्हीं पर टिकी थी. उन्हें पता था कि उनके हर शब्द पर सबके कान लगे हुए है कि कहीं वो हिंसक इशारे वाली कोई बात न कह दें. इस सुधार गृह से उनकी रिहाई इसी पर तो टिकी थी. यहां से रिहाई मिलने के बाद उन्हें रियाद शहर में रहना होगा क्योंकि उनका अपना देश यमन अब जंग की गिरफ्त में है. वहां उनके लिए पैर फैला चुके अल-क़ायदा में वापस जाना कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगा. Click next page for full report
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