प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुरू से अब तक डिजिटल इंडिया के नारे लगाते आ रहे हैं। अपने हर भाषण में वे डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देते हैं और बताते हैं कि अब डिजिटल इंडिया में ज्यादातर लोग डिजिटल ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन ये बात आखिर कितनी सही है इस बात का अंदाजा आरबीआई द्वारा जारी की गई रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
हाल ही में जारी हुई आरबीआई की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में ई-ट्रांसजेक् शन की हालत बहुत बुरी है। यहां ई-ट्रांजेक्शन फेल है। नोटबंदी के बाद जुलाई महीने में इं-ट्रांजेक्शन में जबरदस्त गिरावट आई है और ये पिछले पांच महीनों में सबसे कम दर्ज किया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नवंबर 2016 में ई-पेमेंट से 94 लाख करोड़ का ट्रांजेक्शन हुआ है, जो दिसंबर में बढ़कर 104 लाख करोड़ और मार्च में 149 लाख करोड़ हुआ। इसके बाद जुलाई में इसमें गिरावट देखी गई और ये 104 लाख करोड़ ही देखा गया।
बता दें कि 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लाग ूकरने के बाद मोदी सरकार ने इसकी वकालत करते हुए चार बड़े मुद्दे- काला धन, नकली नोट, टेरर फंडिंग और लैस कैश जैसी सोसायटी जैसी चुनौतियां पेा की थीं। लेकिन इन चुनौतियों पर सरकार खरी नहीं उतरी है।
आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया है कि नोटबंदी के दौरान मात्र 99 फीसदी अमान्य नोट बैंकों में जमा हुए हैं। जबकि नोटबंदी से पहले कुल 15.44 लाख करोड़ की कीमत के 1000 और 500 के नोट ट्रेंड में थे। इनमें से कुल 15.28 लाख करोड़ के नोट बैंकों तक पहुंचे हैं। सिर्फ 1.4 फीसदी हिस्से को छोड़कर बाकी सभी हजार रूपए के नोट सिस्टम में वापस लौट चुके हैं। साल 2016-17 के दौरान 632.6 करोड़ रूपए के 1000 रूपए के नोट चलन में थे , जिनमें से 8.9 करोड़ रूपए वापस नहीं आए हैं।
शर्म करे आरबीआई: चिदंबरम
आरबीआई की जारी हुई रिपोर्ट के बाद यूपीए सरकार में वित्त मंत्री रह चुके पी.चिदंबरम ने कहा है कि आरबीआई ने 16 हजार करोड़ रूपए हासिल किए, लेकिन नए नोट छापने में 21 हजार करोड़ रूपए गवां दिए। उन्होंने कहा है कि- नोटबंदी की सलाह देने वाले अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए। चलन से बाहर किए गए 15,44,000 करोड़ रूपए से सिर्फ 16 हजार करोड़ वापस नहीं लौटे हैं। यह वर्तमान में चलन में मौजूद नोटों का मात्र एक फीसदी है। जिस आरबीआई ने नोटबंदी की सलाह दी थी, उसे अब शर्म आनी चाहिए।