ये है रीयल रणछोड़ दास, चलती ट्रेन में कराई डिलीवरी
आपने फिल्म थ्री इडियट तो देखी ही होगी। इस फिल्म के लास्ट में जब करीना कपूर की बहन की डिलीवरी होना होती है तो शहर की सारी सुविधाएं ठप हो जाती है और फिर आमिर खान यानि रणछोड़दास अपनी इंजीनियरिंग वाली टेक्नीक से करीना कपूर की मदद से डिलीवरी करता है। आखिर में जब बच्चे की आवाज गूंजती है न तब तो दिल रो ही पड़ता है। कुछ ऐसा ही एक ट्रेन में हुआ है जिसमें एक मेडिकल स्टूडेंट ने बिना किसी अनुभव के एक महिला की डिलीवरी की। उसके लिए ये केस काफी क्रिटिकल था फिर भी उसने ये जोखिम लिया। आइए आपको बताते हैं ट्रेन में हुई इस डिलीवरी की पूरी कहानी।
विपिन खाड़से जो कि एक मेडिकल स्टूडेंट है ट्रेन की जनरल बोगी में एक महिला की डिलीवरी करके हीरो बन गए है। विपिन ने एक महीने पहले ही इंटर्नशिप शुरू की थी और डिलीवरी करने की प्रोसेस उन्होंने सिर्फ प्रैक्टिकल के दौरान देखी थी। प्रेक्टिल में भी उन्हें नाॅर्मल डिलीवरी का ही अनुभव था।
उन्होंने अपनी फेसबुक पोेस्ट में बताया कि मैं सात अप्रैल को अपने घर अकोला से नागपुर जा रहा था। वर्धा जंक्शन के बाद किसी ने चेन खींच कर ट्रेन रोकी। पता चला कि एक महिला प्रेग्नेंट है और उसकी डिलीवरी होना हैं। उसके रिश्तेदार और टिकट चेकर किसी अच्छे डाॅक्टर की तलाश कर रहे थे।
विपिन ने बताया कि मैं भी डाॅक्टर था लेकिन मेरे पास अनुभव नहीं था इसलिए मैं चुप रहा सोचा कि उन्हें कोई अच्छा डाॅक्टर मिल जाएगा लेकिन जब अंत में कोई नहीं मिला तो मैंने मदद करने का फैसला लिया। हम स्लीपकर कोच से सुबह दस बजे जनरल बोगी में गए। वहा महिला बर्थ पर लेटी थी भीड़ ने उसे घेर रखा था और वो पसीने में तर थी। वो बार-बार बेहोश हो रही थी।
जब उन्होंने डिलीवरी का प्रोसेस शुरू किया तो उन्हें पता चला कि बच्चे के सिर की बजाय उसका कंधा बाहर निकल रहा हैं। इस कंडीशन को मेडिकल लैंग्वेज में शोल्डर प्रेजेंटेशन कहा जाता है। इसमें बच्चा बाहर नहीं आ पाता और जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरा रहता है। विपिन इस कंडीशन को देखकर काफी घबरा गए थे क्योंकि ऐसी कंडीशन का सामना उन्होंने पहले नहीं किया था।
इस समय उनके पास सर्जिकल ब्लेड, एक रोल बैंडेज और मेडिकल दस्ताने थे जो हर इंटर्नशिप करने वाले स्टूडेंट के पास होते है। हालात बहुत मुश्किल थे इसलिए विपिन ने गर्वनमेंट मेडिकल काॅलेज नागपुर के स्त्रीरोग विभाग के सीनियर रेजिडेंट डाॅक्टरों को फोन किया। डाॅक्टरों ने वाॅट्सएप पर कुछ तस्वीरें मांगी और विपिन को प्रोसेस सजेस्ट की।
विपिन ने बताया कि डाॅक्टरों ने उन्हें एक छोटा सा कट लगाने के लिए कहा। इसे एपिसियोटाॅमी कहा जाता हैं इसमें हाथ से शिशु को सीधा किया जाता है। मैने वैसे ही किया। इस दौरान महिला के शरीर से लगातार पानी निकल रहा था इसलिए हम उसे पानी भी पिला रहे थे। विपिन ने बताया कि जब मैं कट लगा रहा था तो दो महिलाएं जिन्हें डिलीवरी का थोड़ा बहुत अनुभव था वो अपनी दो अंगुलियों से महिला की वजाइना को दोनो तरफ चैड़ा कर रही थी ताकि बच्चा बाहर निकल सके।
हम किसी तरह शिशु को बाहर निकालने में सफल हुए लेकिन चैलेंज अब भी खत्म नहीं हुआ। डिब्बे में खूब गर्मी पड़ रही थी ऐसे में बच्चा संास नहीं ले पा रहा था। पैदा होने के बाद बच्चा रोया भी नहीं। मैने तुरंत शिशु विशेषज्ञ को काॅल किया तो उन्होंने बच्चे की पीछ पर थपकी देने और उसके गले में फंसी चीज़ों को साफ करने के लिए कहा।
मैने वो किया तो बच्चा रूक-रूक कर सांस लेने लगा। बच्चे को बाहर निकालने के बाद मैं महिला महिला का खून बहने से रोकने की कोशिश कर रहा था। बच्चे के संास पर मेरा ध्यान नहीं गया था। मैनें स्टेराइल रोल बैंडेज और ट्रेनों में मिलने वाली ठंडी पानी की बोतलों ेस खून रोकने में कामयाब हुए।
सबसे ज़्यादा राहत तो तब मिली जब बच्चे ने सांस ली और वो रोया। बच्चा जैसे ही रोया तो ट्रेन के उस डिब्बे में खड़े हर शख्स की आंखें खुशी के मारे नम हो गई। उस समय पूरा डिब्बा एक परिवार की तरह काम कर रहा था विपिन को जिस चीज की जरूरत होती वो उसे तुरंत देते। नागपुर स्टेशन पर एंबुलेंस और डाॅक्टर की टीम खड़ी थी और जैसे ही ट्रेन रूकी जच्चा-बच्चा को एंबुलेंस में ले जाया गया। महिला को तुरंत ड्रिप चढ़ाई गई। खुशी के इस माहौल में बच्चे के पिता ने आकर 101 रूपए मेरे हाथ पर रख दिए।
जब मैनें अपने काॅलेज के रेजिडेंट डाॅक्टर्स को इसकी सूचना दी तो उन्होंने जश्न मनाना शुरू कर दिया। मेरे टीचर ने शोल्डर प्रजेंटेशन जैसी जटिल डिलीवरी को सफल तरीके से करने पर मेरी सराहना की। इस सच्ची घटना को पढ़ने के बाद आपको भी एक बार थ्री इडियट की याद आ ही गई होगी लेकिन फिल्मी दुनिया से दूर जब ये घटना सच में हुई तो सच में खुशी से आंख नम करने वाली घटना है।
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