एक दिन बाद पितृपक्ष शुरू हो रहा है। इसे कनागत भी कहा जाता है। इस बार पितृपक्ष 6 सितंबर से शुरू होकर 20 सितंबर तक है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद पितरों का श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि किसी मनुष्य का विधि विधान के साथ श्राद्ध न किया जाए तो उसे इस लोक में मुक्ति नहीं मिलती और वह एक भूत के रूप में इस दुनिया में भटकता रहता है।
श्राद्ध करने के लिए पुराणों में बताया गया है कि पितरों के परिवार में या तो सबसे बड़ा या सबसे छोटा बेटा और अगर बेटा न हो तो और कोई नाती, पोते, भतीजा या भांजा पिंडदान दे सकते हैं। लेकिन कई बार लोगों को पिंडदान करने का सही तरीका नहीं पता होता और वे अनजाने में गलतियां कर बैठते हैं, जिससे उनके पितृ नाराज हो जाते हैं और इसका अंजाम उनके अपने बच्चों को भुगतना पड़ता है।
कई लोगों का श्राद का समय पता नहीं होता है। कुछ लोग श्राद के नाम पर सुबह-सुबह हलवा प़ुरी बनाकर मंदिर में पंडित को दान कर देते हैं, तो आपको बता दें कि ऐसा करने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता। ऐसे श्राद्ध करने वालों को पितरों का आशीर्वाद नहीं मिलता और क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है। श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज के बिना ही खाना किचन में बनाना चाहिए। जिसमें उड़द की दाल बड़े, चावल, दूध, घी से बने पकवान खीर, मौसमी सब्जी बनाई जाती है। आलू , मूली, बैंगन, अरबी जो सब्जियां जमीन से उगती हैं, पितरों को नहीं चढ़ाई जाती हैं।