हिन्दी गज़लों के सूरज थे ‘दुष्यंत कुमार’
हर वो इंसान जो साहित्य से ज़रा-सा भी नाता रखता है इस नाम से शत-प्रतिशत वाकिफ़ होगा। दुष्यंत कुमार कोई आम कवि नहीं, वे पहले इंसान थे जिन्होंने हिन्दी भाषा में गज़ल लिखने का साहस किया। इससे पहले तक गज़लें सिर्फ उर्दू की जागीर हुआ करती थीं। उन्होंने हिन्दी और उर्दू का ऐसा मिश्रण किया कि क्या कहना। इन गज़लों के अल्फ़ाजों ने दिलों को चीर कर रख दिया। एक आलोचक के सवाल उठाने पर उन्होंने कहा था, ‘‘मैंने उर्दू शब्दों का उस रूप में इस्तेमाल किया है जिस रूप में वे हिन्दी में घुल-मिल गए हैं’’। दुष्यंत की कई गज़लें इंदिरा गाँधी की निर्मम व्यवस्था पर करारा प्रहार करती हैं। जैसे कि ‘एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है, आज शायर ये तमाशा देखकर हैरान हैं’। उनकी रचनाएं सड़क से संसद तक गूंजती थीं। वे बेख़ौफ लिखते थे। वे केवल व्यवस्था के विरुद्ध ही एक बगावत का स्वर ले कर नहीं उभरे उन्होंने इसके अलावा भी बहुत लिखा। उनके उपन्यास ‘छोटे-छोटे सवाल’, ‘आंगन में एक वृक्ष’ भी खूब चर्चित हुए। उनके गज़ल संग्रह ‘साये में धूप’ की चमक आज भी उतनी ही है जितनी उनके दौर में थी।
दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितम्बर 1933 में उत्तर प्रदेश के नवादा में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिन्दी में एमए किया। उन्हें इलाहाबाद से विशेष लगाव था। वहां उनकी दोस्ती के बड़े चर्चे हुआ करते थे। यहीं उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया। दुष्यंत ने आकाशवाणी भोपाल में भी कुछ समय तक काम किया। शुरूआत में वे दुष्यंत कुमार परदेशी के नाम से लिखते थे। दुष्यंत की गज़लों की मूलतः दो उपलब्धियां रहीं, एक तो यह कि उन्होंने शायरी को मुल्क से जोड़ा और मुल्क की हालिया परिस्थितियों पर शायर की नज़र केंद्रित की। वे उस दौरान गर्द में डूबे देश के लिए सूरज के समान थे। कौन भूल सकता है- ‘हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए’ या फिर ‘जिस तरह चाहो बजाओ तुम हमें, हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं’। 30 दिसंबर 1975 में हिन्दी साहित्य को एक बहुत बड़ी हानि हुई। जब महज़ 42 वर्ष की उम्र में हिन्दी गज़लों का सूरज अचानक यूं ही ढल गया और दुष्यंत कुमार इस संसार को अलविदा कह गए। लेखक अनिरुद्ध सिन्हा लिखते हैं- ’दुष्यंत कुमार किसी इंसान का नाम नहीं, ये एक युग का नाम है, जहां से हिन्दी गज़ल की विकास यात्रा आरम्भ होती है’। ऐसे महान कवि को मैं नमन करता हूं और आज 1 सितंबर, उनके जन्मदिन पर आप तक पहुंचाता हूं उनकी कुछ उम्दा गज़लें-
“चीथड़े में हिन्दुस्तान”
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है।
ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए,
यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है।
एक बूढा आदमी है मुल्क में या यों कहो,
इस अंधेरी कोठारी में एक रौशनदान है।
मस्लेहत-आमेज़ होते हैं सियासत के कदम,
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है।
इस कदर पाबंदी-ए-मज़हब की सदके आपके
जब से आज़ादी मिली है, मुल्क में रमजान है।
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला की हिन्दुस्तान है।
मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूं,
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है।
“घना कोहरा”
मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह का,
क्या कारोगे सूर्य का क्या देखना है।
हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।
दोस्तों अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में सम्भावना है!
“रेल”
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जिस में राह भूल जाता हूं
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूं
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूं
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूं
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूं
“गज़ल”
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे
इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे
हौले-हौले पांव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे
थोडी आंच बची रहने दो थोडा धुंआ निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आयेंगे
उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आये तो यहां शंख सीपियां उठाने आयेंगे
फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आयेंगे
रह-रह आंखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढे तो शायद दृश्य सुहाने आयेंगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुंचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे
हम क्यों बोलें इस आंधी में कई घरौंदे टूट गये
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जयेंगे
हम इतिहास नहीं रच पाये इस पीडा में दहते हैं
अब जो धारायें पकडेंगे इसी मुहाने आयेंगे!