डिग्रीधारक बेरोजगार-खतरनाक ज्वालामुखी
कोटा की छात्रा का कोचिंग क्लास बंद करने का अंतिम संदेश
22 फर्जी यूनिवर्सिटी की लिस्ट सामने आने और रिजर्व बैंक के गर्वनर के बयान ने एक बड़ी समस्या को उजागर कर दिया जोकि हमेशा दबी-छुपी आवाज बन कर बाहर आती रही थी किंतु उसकी विकरालता को सभी जिम्मेदार पद नजरअंदाज कर रहे हैं। ये ‘डिग्रीधारक बेरोजगारों’ की फौज दिन-प्रतिदिन बढ़ना एक भयावह ज्वालामुखी का रूप धारण कर चुकी है जिनकी आहट कभी आत्महत्याओं से तो कभी चोरी-डकैती जैसी हरकतों में युवाओं के बढ़ते प्रतिशत से लगाया जा सकता है। डिग्रीधारक बेराजेगार से मतलब साफ झलकता है कि हमने विभिन्न विषयों में पारंगत होने का सर्टिफिकेट तो दे दिया किंतु वे उस काबिल नहीं है कि उसे कमाई का साधन बना सके। न जॉब, न व्यापार लायक ये युवा, जिन्हें हमारी यूनिवर्सिटी ने, कॉलेजों ने पढ़ाई करा कर एक डिग्री पकड़ा दी, और अपने कर्तव्यों को पूरा होना समझ लिया। अब ये युवा दर-दर नौकरी-व्यापार के लिए भटक रहे हैं।
बड़ी नौकरी मन-माफिक मिल नहीं रही है और छोटी नौकरी को तैयार भी हो जाते हैं तो उसे ढंग से मन लगाकर कर नही पाते हैं यही वजह उन्हें डिप्रेशन में, किसी ग्लानि की तरफ ले जाती है। यही ग्लानि विद्रोह के अलग-अलग रूपों में देखने को मिलती है। उस पर घर-परिवार, समाज की उलाहना जले पर नमक छिड़कने के समान लगती है। बड़ी ही आसानी से बगैर सोचे-समझे उन आरोपों की झड़ी लगा देते हैं, ‘जैसे आज का युवा तो गलत रास्तों पर जा रहा है, अनैतिक कार्यो मे संलग्न है, सिर्फ बदमाशी और मस्ती चाहिए उसे, वह विधवन्सकारी हो गया है’ इत्यादि-इत्यादि। किंतु कभी किसी ने सोचा है ये क्यों हो रहा है? इसके लिए कौन-कौन जिम्मेदार है? कौन सी बातें उन्हें इस ओर धकेल रही हैं? बस आरोप लगा, भला-बुरा कह कर हम अपनी जिम्मेदारियों से अपना मुंह मोड़ लेते हैं। सक्सेस की कहानी चंद युवा ही लिख पाते हैं, जो एक्स्ट्राआर्डिनरी होते हैं। किंतु वह 1 प्रतिशत भी नहीं हैं उन्हें देखकर-दिखाकर हम 99 प्रतिशत को अंधेरे में ढकेल रहे हैं, आक्रोशों के साथ। ये 1 प्रतिशत तो बगैर किसी सर्पोट के ही अपना मुकाम पा सकते हैं, किंतु ये स्कूल-कॉलेज, कोचिंग इन्हीं की आड़ में अपना गोरखधंधा चला रहे हैं, और बस डिग्रियां ही बांट रहे हैं। यदि आप इन संस्थाओं का लेखा-जोखा देखेंगे तो स्वतः ही समझ जाएंगे कि कितने युवा किस मुकाम तक पहुंचे, और कितने युवा दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अभी हाल ही में कोटा की एक छात्रा के सुसाइड नोट में वहां की कोचिंग क्लासेस को बंद करने के लिए एक निवेदन किया। यह वहां की सच्चाई को उजागर करता है। यह सिर्फ कोटा की सच्चाई नही है अपितु पूरे देश भर में इसका जाल फैला हुआ है। शिक्षा पूर्ण रूप से व्यावसाय में तब्दील हो चुकी है। ना इसके लिए सरकार गंभीर दिखाई देती है और ना ही समाज तंत्र और साधु-संत जो कभी शिक्षा की धुरी होती थी वह भी आज सिर्फ अपने-अपने धर्म की पताका फहराने में मशगूल हैं।
निश्चित तौर पर हम सभी को संपूर्ण शिक्षा प्रणाली पर गंभीरता से सोचना चाहिए, विचार-विमर्श करना चाहिए क्योंकि यह न सिर्फ इस देश का भविष्य का प्रश्न है, किंतु हर एक व्यक्ति की अगली पीढ़ी के भविष्य का प्रश्न भी है, जो हमारे बच्चे हमसे पूछेंगे कि हमनें उनके भविष्य को किस प्रकार का बनाया है। शिक्षा में असफलताओं के चलते हम और कितने बच्चों की बलि लेंगे। जिन बच्चों ने आत्महत्याएं नहीं की है, क्या उनके सुसाइड नोट का इंतजार करेंगे? हालांकि ये दर-दर भटक रहे युवा किसी मरे समान ही नजर आते हैं। इसलिए वक्त रहते हमे इस पर तुरंत ही सोच लेना चाहिए।