ये हैं मुंबई का वो डिब्बावाला जो फ्री में देता है बुजुर्गों को टिफिन
वृद्धावस्था उम्र का ऐसा पड़ाव, जिसमें शरीर कमजोर पड़ जाता है। जिस उम्र में व्यक्ति स्वयं के काम करने में असमर्थ होता है, उस उम्र में दिल्ली के एक वृद्ध मार्क डीसूजा फ्री टिफिन सर्विस चला रहे हैं। इस टिफिन सर्विस की खास बात ये हैं कि, ये सिर्फ ओल्ड एज ग्रुप के लिए चलाया जाता है। तो हैं न रोचक काम जिसे एक वृद्ध चला रहा है, वृद्धों के लिए। मार्क अपनी इस डिफरेंट पहल के जरिए कितने ही लोगों के बीच खुशियां बांट रहे हैं और लोगों को उनके टिफिन का इंतजार भी रहता है। तो बताते हैं किस तरह काम होता है टिफिन सर्विस में-
मार्क डीसूजा ने तीन साल पहले अपनी टिफिन सर्विस शुरु की थी। आज वे करीब 24 वरिष्ठ नागरिकों को टिफिन सर्विस के जरिए खाना पहुंचा रहे हैं। उनकी इस यूनिक सोच ने कई वृद्धों के जीवन में खुशियां लायी हैं। टिफिन लेने वाले लोगों का कहना हैं कि वे किसी को पता चलने ही नहीं देते की ये उनकी फ्री सर्विस है, और जब भी वे टिफिन लाते हैं बहुत खुश होकर लोगों के हाथों में देते हैं। मार्क का यहीं अंदाज उन्हें डायरेक्ट लोगों से जोड़ता है।
टिफिन के साथ खुशियां बांटती सर्विस
मुंबई के बोरीवली इलाके में रहने वाली 98 साल की एंजेला फ्रनांडिस अकेले रहती हैं। वे एक रिटायर्ड स्कूल टीचर हैं, और अपनी पेंशन से घर चलाती हैं। इस उम्र में अपने लिए खाना बनाने में उन्हें तकलीफ होती है, ऐसे में मार्क डीसूजा के फ्री टिफिन सर्विस के जरिए एंजेला का जीवन खुशियों से भर गया है।
इस पहल में पत्नी ने दिया साथ
कम उम्र में ही मार्क ने अपने माता-पिता को खो दिया था। टिफिन सर्सिव मार्क की ही सोच थी, जिसे साक्ष्य का रुप देने में उनकी पत्नी ने साथ दिया। मार्क की पत्नी ट्यूशन चलाती हैं, एक रोज उन्होंने अपने पति के हाथों में 5 हजार रुपए देते हुए कहा- तुम्हें जो काम शुरु करना है, कर लो। बस यहीं से शुरु हुआ मार्क के सपने का हकीकत में बदलना।
आज पूरा डीसूजा परिवार कर रहा काम
कुछ लोगों के लिए शुरु कि गई टिफिन सर्सिव से आज करीब 25 ओल्ड एज लोगों को खाना दिया जा रहा है। इस काम को करने में आज पूरा डीसूजा परिवार मार्क का साथ दे रहा है, सभी मिलकर काम करते हैं। जिसमें सब्जी खरीदना, सफाई करना, खाना पकाना, टिफिन बॉक्स पैक करने जैसे कम हैं। इस काम में रोज का कुल खर्चा 15 हजार रुपए होता है। इतना आगे आने के बाद भी आज भी मार्क रोज खुद ही लोगों को टिफिन देने जाते हैं।
इस उद्देश्य से शुरु किया ये काम
मार्क का कहना हैं, कि बुढ़ापे में लोग खुदको बहुत अकेला महसूस करने लगते हैं, उन्हें ऐसा लगता है जैसे वे किसी चार दीवारों में फंसकर रह गए हैं। ऐसे में जब मैं लोगों के पास टिफिन लेकर जाता हूं तो वे मुझसे अपने मन की बात शेयर करते हैं, कुछ मेरी सुनते हैं। हम आपस में मित्र बन जाते हैं। उनका अपनापन अंधेरे जीवन में रोशनी लाने का काम करता है। जिन लोगों के पास मैं जाता हूं उन्हें लगता है उनका ख्याल रखने वाला भी कोई हैं। इस सर्विस का मकसद बुढ़ापे के अंधियारे जीवन को रोशन करना है।
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