देश में भाजपा का विजय रथ जिस तेजी से बढ़ रहा है उसने पार्टी शासित राज्यों के नेतृत्व की बेचैनी बढ़ा दी है. खासतौर से उन राज्यों में जहां इस वर्ष या अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं. मध्यप्रदेश भी ऐसे राज्यों में शामिल है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस चुनौती से भलीभांति अवगत हैं कि मध्यप्रदेश में तीन कार्यकाल पूर्ण कर रही भाजपा को चौथी दफा जीत हासिल करने के लिए जोर तो लगाना पड़ेगा, साथ पार्टी के पक्ष में माहौल बनाये रखना पड़ेगा. हालाँकि वे इस बात से आश्वस्त दीखते हैं विपक्ष एकजुट नहीं हो सका है और उन्हें सशक्त चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं है.
भाजपा के पक्ष में देश का माहौल तो तैयार है. उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों में इस साल के प्रारम्भ में हुए चुनावों ने यह साबित किया है और हाल के कुछ सर्वे भी यही संकेत देते हैं, लेकिन इन्हीं के साथ प्रदेश में हुए एक उपचुनाव ने शिवराज के कान खड़े कर दिए. अटेर का यह चुनाव जीतकर कांग्रेस ने चुनौती पेश करने के संकेत दिए हैं. कांग्रेस की परेशानी यह है कि उसके दिग्गज स्वयं को स्वयंभू मानते हैं और एक होने की हर सम्भावना को उलटने को तैयार नजर आते हैं. कांग्रेस की इस परेशानी को अब दिल्ली आलाकमान भी समझने लगा है और इससे निबटने के प्रयास भी किये जा रहे हैं. बड़बोले दिग्विजय सिंह के पर कतरे गए हैं. उनसे दो राज्यों का प्रभार छीन लिया गया, साथ सूत्रों का कहना है कि दिग्विजय को मध्यप्रदेश की राजनीती में ज्यादा दखल न देने के निर्देश दिए गए हैं.
दिग्विजय को किनारे किये जाने के बाद कांग्रेस की राजनीती अब ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ पर केंद्रित होती दिखाई दे रही है. हालाँकि पार्टी अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी के साथ संसद सज्जन वर्मा का नाम भी जब तब उछलता है लेकिन शीघ्र ही थम जाता है. सिंधिया की प्रदेश में सक्रियता के मद्देनजर यह समझा जा सकता है 2018 के चुनाव के लिए वे ही कांग्रेस के नंबर वन चेहरा होंगे और कमलनाथ को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश की कमान थमाई जा सकती है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को फ्री हैंड
मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया अब कांग्रेस का चेहरा होंगे। उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाकर फ्री हैंड देते हुए टिकट बांटने की जिम्मेदारी भी सौंपी जाने की पूरी सम्भावना है। पिछले दिनों दिल्ली में राहुल गांधी के बंगले पर आयोजित कांग्रेस हाईपाॅवर कमेटी की बैठक में उत्तरप्रदेश में मिली करारी हार की समीक्षा की गई. इस बैठक में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मोतीलाल बोरा, सुरेश पचौरी, मनीष तिवारी, कमलनाथ सहित अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। बैठक मेें यह निष्कर्ष निकला कि उत्तरप्रदेश में पार्टी का कोई चेहरा न होने और सपा से गठबंधन हार का कारण रहा। जबकि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। इसी को आधार बनाते हुए मप्र में सत्ता हासिल करने और गुटबाजी को समाप्त करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने का विचार किया गया। सिंधिया के नाम को हरी झंडी मिलने के साथ ही राहुल गांधी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब मध्यप्रदेश में चुनाव होने तक दिग्विजय सिंह का कोई दखल नहीं रहेगा। उन्हें प्रदेश की राजनीति से दूर रखा जाएगा। यदि उनका कोई समर्थक है तो उसे टिकट देने की अनुशंसा कर सकेंगे लेकिन टिकट देना या न देना उनके हाथ में नहीं होगा। इसका मतलब है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए किसे चुनना है और किसे नहीं यह सब सिंधिया पर निर्भर करेगा। क्योंकि कांग्रेस आलाकमान ने सिंधिया को फ्री हैंड जो दिया है। लेकिन कमलनाथ सिंधिया का मार्गदर्शन करते रहेंगे। ताकि दिग्विजय सिंह की तिकड़मों से बचा जा सके। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने यह भी स्वीकार किया कि पिछले चुनाव में दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अजय सिंह सहित अन्य नेताओं की मिली भगत के कारण सिंधिया को आगे न करपाना बड़ी भूल थी। जिसका परिणाम सबके सामने हैं लेकिन अब देरी करना और भी खतरनाक हो सकता है।
लेखक- वरिष्ठ पत्रकार विभूति शर्मा