Tuesday, September 12th, 2017 05:59:18
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हमेशा रिसेप्टिव रहो चैलेंज के लिए, जो बनना है आप बन जाओगे – चित्रांशी बोस




हमेशा रिसेप्टिव रहो चैलेंज के लिए, जो बनना है आप बन जाओगे – चित्रांशी बोसEducation & Career

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‘‘जब मैं १३ साल की थी तब ही डिसाइड कर लिया था कि बड़े हो कर किस फिल्ड में जाना हैं। इसके बाद 9th-10th क्लास में ही मीडिया फिल्ड में अपना हाथ आज़माने लग गई थी। तब मैंने न्यूज़ एंकर के तौर पर काम करना शुरू किया था और काम के दौरान ही यह समझ गई थी कि मुझे न्यूज़ सेक्टर में तो बिल्कुल नहीं जाना है।’’ ये कहना है And TV ग्रुप में मैनेजर चित्रांशी बोस का। अपने खेलने-कूदने की उम्र में यह डिसाइड करना बहुत बड़ी बात होती है। उनके यही डिसिज़न आज उनके लिए बहुत ही मददगार साबित हुए हैं, और आज वह इतनी कम उम्र में & TV  ग्रुप में मैनेजर बन गई हैं।  उनका कहना है, ‘‘स्ट्रगल पीरियड को कभी भी बेचारे बन कर मत जिओ उसे इंजॉय करो क्योंकि वहीं आपको बाद में सबसे ज्यादा याद आने वाला है। आज बड़े-बड़े एक्टर्स से उनकी स्टार लाइफ से पहले उनके स्ट्रगल के बारे में पूछा जाता है और जब वो बताते हैं तब उसे उतना ही इंजॉय भी करते हैं।’’

 Youthens News टीम से Surbhi Bhatewara द्वारा की गई बातचीत के संपादित अंश कुछ इस प्रकार हैं-

1. कैसे इस इंडस्ट्री में आने का ख्याल आया ?
यह बात शुरू से ही साफ थी कि मुझे इस इंडस्ट्री में आना है। बचपन से सिगिंग का भी शौक था तो में जब सिर्फ 13 साल की थी  तब ही मैंने दूरदर्शन भोपाल में पार्टीसिपेट किया और सिंगिंग शुरू कर दी। बस तब से ही दिमाग में था कि मुझे इस इंडस्ट्री में जाना है। क्या करना है वो क्लीयर नहीं था पर एंटरटेनमेंट और मीडिया में जाना है यह जरूर क्लीयर था।”

2. बहुत से स्टूडेंट्स ऐसे होते हैं जो इस इंडस्ट्री में आने के बाद भी नहीं समझ पाते हैं कि उन्हें करना क्या है? वह इतना समझते हैं कि उन्हें प्रोडक्शन हाउस में जाना है पर करना क्या है? तो इस चीज को वो कैसे समझें?
यह मुझे भी समझ में नहीं आया था और यह किसी को भी समझ नहीं आ सकता जब तक आप मुंबई इंडस्ट्री में आकर काम नहीं करोगे। आप कहीं भी हो, क्या वर्क प्रोफाइल पर आपको काम करना पड़ता है, यह मुंबई आकर ही समझ आता है। वो तब आसान होता है जब आप यहां आओ और देखो कि अगर असिस्टेंट डायरेक्टर है तो उनकी क्या रेस्पोसिबिलिटी रहती  है, आर्ट डायरेक्टर, प्रोडक्शन हेड ये सब क्या काम करते हैं? उसके बाद क्लीयर होता है कि आपको करना क्या है। मैं अपने आप को खुश किस्मत समझती हूं कि मुझे सबकुछ क्लीयर था। अपने कॉलेज खत्म होने के बाद मैंने इंदौर में एक चैनल लॉन्च किया था जिसमें मैंने प्रोग्रामिंग की थी। इसमें हम लोगों ने 12 शोज़ बनाए थे। कंटेंट डिसाइड करना, टाइम स्लॉट डिसाइड करना, स्पॉनसर कौन होगा ये सब मैंने इस काम के दौरान सीखा और मुंबई आने के बाद मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं आई। अतः इंटर्नशिप करो इसलिए नहीं कि आपको अपने सीवी में अपडेट करना है। इंडस्ट्री में कोई सीवी नहीं देखता। वो बस आपसे पूछते हैं और आपकी सेंसिबिलिटी चेक करते हैं।

3. मुंबई जैसी सिटी में आपके लिए शुरूआत में सर्वाइव करना कितना मुश्किल रहा था?
मेरे लिए इतना मुश्किल नहीं रहा क्योंकि मैंने इंदौर से ही यहां के प्रोडेक्शन हाउस में अप्लाए करना शुरू कर दिया था और किस्मत से दो प्रोडक्शन हाउस के रिप्लाए भी मेरे पास आ गए थे। फिर मुंबई जाने के बाद मैंने उसमें से एक प्रोडक्शन हाउस में आवेदन किया जो आोप्टीमिस्टिक था। वो अभी कॉमेडी दंगल और कॉमेडी सर्कस जैसे शोज़ बनाते हैं। उन्होंने मुझसे कहा आप आइये काम कीजिए हम तब ही आपके काम को देख लेंगे। उन्हें नहीं जानना था मैंने इससे पहले क्या किया, उन्होंने मेरा सीवी भी नहीं देखा। अगर कोई क्रिएटिव या प्रोडक्शन फील्ड में आना चाहता है तो लाइफ उतनी डिफिकल्ट नहीं है पर अगर एक्टिंग में जाना चाहते हैं तो बहुत डिफिकल्ट है।

4.आपने बीटीवी न्यूज़ से बतौर एंकर और प्रोड्यूसर काम शुरू किया था, आज & tv में ग्रुप मैनेजर हैं। कितना स्ट्रगल करना पड़ा इस पोजिशन तक पहुंचने के लिए?
स्ट्रगल नहीं है, काम अच्छा करते गए और अवसर मिलते गए  so, that is called as jumping the ladder. तो जो आपके वर्टिकल प्रमोशन होते हैं वो इस तरह से होते चले जाते हैं। यह एक सीढ़ी है जो आप जंप करते चले जाते हो अगर सही वक्त पर काम किया जाए तो।

5. फ्रेशर्स जब मीडिया इंडस्ट्री में आते हैं शुरूआत में 3 से 4 महीने तक फ्री में काम करते हैं पर उसके बाद भी उन्हें जॉब की ग्यारंटी नहीं रहती है। और आखिरी में छोड़कर उन्हें कहीं और जॉब करना पड़ती है।
यह कोई बैंक वाला जॉब नहीं है। यह एक ऐसी इंडस्ट्री है जहां पर आपका दिमाग, आपकी सेंसिबिलिटी काम करती है। पहले दिन से आपको पैसे नहीं मिलते क्योंकि जिसने आपको काम पर रखा है उसे यह नहीं पता है कि जिसको नौकरी पर रखा वह उसके कितने काम का है। आपके पास कोई कॉन्सेप्ट है, और अगर कोई बंदा आपके पास नौकरी के लिए आया है लेकिन उसे उसके बारे में कुछ पता ही नहीं तो वो उनके कुछ काम का ही नहीं है। मेरे शो को उस बंदे की जरूरत है क्या ? यह तभी पता चल पाएगा जब मैं उसका काम देखूंगी। वह कितने आइडियाज़ मुझे दे रहा है, कितना मुझे हेल्प कर रहा है। यह डिसाइड करेगा कि मुझे उसे जॉब पर रखना है या नहीं। इसलिए मीडिया इंडस्ट्री इतनी चैलेंजिंग होती है और यहां पर जॉब की कोई ग्यारंटी नहीं होती है।

6. ‘‘मीडिया इंडस्ट्री – बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है, इस इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए, कितना सही है ये।’’ क्योंकि आज मीडिया सेक्टर में जॉब की कमी नहीं है।
यह मायने रखता है कि आप कौन सी आयु में इस इंडस्ट्री में आए हो। कॉलेज से निकलने के बाद अगर आप सोचते हो कि आपको जॉब ऐसी जॉब मिले जैसी आइआइटीयन को मिल जाती है तो ऐसा यहां कुछ नहीं होता है। कॉलेज से निकलने के बाद अगर इस इंडस्ट्री आते हैं तो आप अपने आपको कम से कम 3-4 साल दो और एकदम चिल रहो। इसे आप स्ट्रगल पीरियड बोल रहे हो तो दरअसल आप अपने आपको तैयार कर रहे हो और उसे इंजॉय करो। यह समय वापस नहीं आएगा। यह बहुत महत्वपूर्ण समय होता है और इंट्रेस्टिंग भी होता है। इसमें अगर आप खुद को गरीब समझ कर स्ट्रगल करोगे तो सच में भी यह बहुत डिफिकल्ट हो जाएगा। आज अमिताभ जैसे बड़े एक्टर से क्यों उनके स्ट्रगल के बारे में पूछते हैं क्योंकि वही सबसे ज्यादा इंर्पोटेंट पीरियड रहता है।

7. जिस तरह से टीवी से इंटरनेट की तरफ ट्रांसफॉर्मेशन हो रहा है युवा हर चीज़ इंटरनेट पर ही देखना पसंद करते हैं तो क्या चैलेंजेस टीवी इंडस्ट्री को अब फेस करना पड़ रहे हैं?
बहुत टफ हो रहा है। अगर टेक्नीकली बात करें तो पहले टीवी देखने की जो संख्या होती थी वह 3000 थी पर आज वह संख्या घटकर सिर्फ 800 रह गई है। इन दोनों के बीच का जो गेप है वह कहीं और अपना एंटरटेनमेंट सर्च कर रहे हैं। और वह है इंटरनेट। इसकी वजह से आज बहुत सी ऑडियंस उस तरफ शिफ्ट हो गई है, जिससे कंटेंट भी चेंज हो रहा है। आज नागिन जैसे शोज़ क्यों बन रहे हैं क्योंकि ऑडियंस वैसी बनती चली जा रही है। और अगर इंटरनेट गांव तक पहुंच गया और लोग भी मोबाइल पर ही टीवी देखने लगे तो वेब सीरिज भी आज से 20 साल बाद ससुराल सीमर का बनाने लगेगा। इसलिए डिफिकल्टी तो आ रही है पर एक बात यह भी है कि व्यूअर्स आज इंटरनेट पर भी टीवी सीरियल्स देख रहें हैं। उन्होंने अभी एक्सप्लोर करना शुरू नहीं किया है। तो जब व्यूअर्स नेटफिल्क्स जैसे कंटेंट पर शिफ्ट होने लगेगा तब कंटेंट भी शिफ्ट होगा। फिर भी बहुत चैलेंजिंग है जैसे ऑडियंस टीवी से इंटरनेट की तरफ शिफ्ट हो रही है। शिफ्टिंग की वजह से बजट पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है।

8. राइटिंग स्किल्स को यंग राइटर्स कैसे इंप्रूव कर सकते हैं?
खूब पढ़ो और खूब लिखो। सबसे ज्यादा डिफिकल्ट होता है खाली पेज पर लिखना शुरू करना। तो कोशिश करो क्रिएटिवली लिखने की। लेख जितना सिंपल होता है, राइटिंग उतनी ज्यादा निखर कर आती हैं। अब वो समय नहीं रहा कि आप उर्दू या कठिन शब्दों में लिखोगे तो आपकी राइटिंग अच्छी लगेगी। जितना सरल आप लिखोगे उतना खूबसूरत वह लगेगा। घूमने की कोशिश करो, जितना ट्रेवल करोगे, उतने लोगों से मिलोगे, जितना मिलोगे उतनी कहानियां मिलेंगी, उतना लिखने का मज़ा आएगा और उतना अच्छा आप लिख पाओगे। you have to be a good reader,  to become a good writer, you have to be a good listener. 

9. आप अभी तक एकंर, आरजे, चैनल प्रोड्यूसर, क्रिएटिव डायरेक्टर/राइटर का काम कर चुकी हैं। क्या मैसेज आप यूथ को देना चाहेंगी कि मीडिया इंडस्ट्री में आना है तो यह बातें जरूर याद रखें।
पहली बात- कुछ भी चैलेंज आएं हमेशा तैयार रहें। किसी भी चीज़ के लिए टेंशन नहीं लेना है।
दूसरी बात- कोई सेटलमेंट का सोच कर मत आओ कि अगर यह अचीव कर लिया तो मैं सेटल हो जाउंगा।
तीसरी बात-  हमेशा रिसेप्टिव रहो चैलेंज के लिए,  जो बनना है आप बन जाओगे।

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