इस वैज्ञानिक ने की थी टेलीस्कोप की खोज, मौत के बाद हुआ था न्यूटन का जन्म
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किसी भी इंसान को दूसरी दुनिया के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता रहती है। वो जानना चाहता है कि पृथ्वी से बाहर का संसार कैसा दिखता है, वो कैसे अलग है। इसके बारे में जानने के लिए हमारे पास आज कई सारी किताबें और इंटरनेट पर ढेर सारी जानकारियां मौजूद है। आज हम आसानी से जान सकते हैं कि पृथ्वी से बाहर की दुनिया कैसी है।
दुनिया में एक दौर ऐसा भी था जब लोग इसके बारे में जानने के लिए अपनी पूरी उम्र निकाल दिया करते थे। ऐसे कई वैज्ञानिक हैं जिन्होंने बाहर की दुनिया के बारे में कई सिद्धांत दिए है। गेलिलियो गैलिली भी उन्हीं वैज्ञानिकों में से एक है। इनका जन्म आधुनिक इटली के पीसा नामक शहर में 15 फरवरी 1564 को हुआ था।
अधिकांश लोग गैलिलियो को एक खगोल विज्ञानी के रूप में याद करते है जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली और खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ की अपने प्रेक्षणों कसे ऐसे चौकानेवाले तथ्य उजागर किये जिससे खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नीव रखी।
गेलिलियो गैलिली के बारे में बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि खगोल विज्ञानी होने के अलावा वो एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकविद और दार्शनिक थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसलिए गेलिलियो गैलिली को“ आधुनिक खगोल विज्ञानं का जनक” और “आधुनिक भौतिकी का पिता” के रूप में भी सम्बोधित किया जाता है।
गैलिलियो गैलिली में इतनी सारी ख़ासियत होने के बावजूद भी वे दर्शन शास्त्र को मानते थे और धार्मिक प्रवृति के थे। लेकिन वे अपने प्रयोगों के परिणामों को धार्मिक या दर्शन शास्त्र की दृष्टि से नहीं देखते थे। वे पूरी ईमानदारी के साथ इसकी व्याख्या भी करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले जाने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा।
सन 1609 में जब गेलिलियो गैलिली को दूरबीन के बारे में पता चला तो उन्होंने केवल विवरण सुनकर ही उससे भी कही ज़्यादा परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली जिसे हम टेलीस्कोप कहते है। इसके बाद गेलिलियो ने शुरू की ग्रहों की खोज। गेलिलियो गैलिली ने चाँद देखा, उसके उबड खाबड़ खड्डे देखे। उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो उन्होंने देखा और उससे जो निष्कर्ष निकाला, उसने सौरमंडल को ठीक ठीक समझने में बड़ी मदद की।
आधुनिक विज्ञान का पिता
गेलिलियो गैलिली ने आज से बहुत पहले गणित, सैधांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी में परस्पर संबध को समझ लिया था। परावलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वो इस निष्कर्ष पर पहुचे थे कि एक समान त्वरण की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग में चलकर वापस पृथ्वी पर गिरेगा, बशर्ते हवा में घर्षण का बल अपेक्ष्नीय हो।
यही नही, उन्होंने ये भी कहा कि उनका सिध्दांत जरुरी नही कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर लागू हो। उन्हें इस बात का भी ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण और अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटिया आई होगी, जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रही थी। उनकी इस अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकविद आइन्स्टाइन ने उन्हें “आधुनिक विज्ञान का पिता” की पदवी दे डाली।
जिसे हम आपेक्षिकता का सिद्धांत कहते है, उसकी नीव भी गेलिलियो गैलिली ने ही डाली थी। उन्होंने कहा था “भौतिकी के नियम वही रहते है, चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग में एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था ना परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है”। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमो को आधारभूत ढांचा दिया था।
सूर्य ने बदली गेलिलियो की ज़िन्दगी
गैलिलियो ने टेलीस्कोप की मदद से जब ग्रहों का निरीक्षण किया तो वे समझ गये थे कि बृहस्पति ग्रह का अपना अलग संसार है। उसके इर्द गिर्द घूम रहे पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा के लिए बाध्य नही है। तब तक यही माना जता था कि ग्रह और सूर्य सभी पिंड पृथ्वी के परिक्रमा करते है। हालांकि निकोलस कोपरनिकस गेलिलियो से पहले ही ये कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है ना कि पृथ्वी की, लेकिन इसे मानने वाले बहुत कम थे। गेलिलियो की इस खोज से सौरमंडल के सूर्य केन्द्रित सिद्धांत को बल मिला था।
इसके साथ ही गेलिलियो ने कोपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया था। यह बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओ के विरूद्ध जाती थी गेलिलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन 1633 में चर्च ने गेलिलियो को आदेश दिया कि वो सार्वजनिक रूप से कहे कि ये उनकी सबसे बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन फिर भी उनको कारावास दे दिया गया।
बाद में कारागार में रहते हुए उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया तो उन्हें गृह कैद दे दिया गया जिसमे उनको घर पर ही कैद में रखा गया। 8 जनवरी 1642 को गृह कैद झेल रहे गेलिलियो की मृत्यु हो गयी। उनकी मुर्त्यु के कुछ महीनों बाद ही न्यूटन का जन्म हुआ था। इस तरह हम कह सकते है कि उस समय एक युग का अंत और दुसरे नये क्रांतिकारी युग का आरम्भ हुआ था। आज भी हम गेलिलियो के सिद्धांतो को अपनी पाठ्यपुस्तको में देख सकते है।
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